🔻वाराणसी में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर पद्मश्री से सम्मानित हॉकी के जादूगर मोहम्मद शाहिद का घर गिराया गया।
🔻परिवार ने एक दिन की मोहलत मांगी, लेकिन प्रशासन ने नहीं सुनी।
🔻इस घटना ने विकास की मानवीय कीमत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
वाराणसी (पब्लिक फोरम)। शिव की नगरी कहे जाने वाले काशी में रविवार को विकास का बुलडोजर जब पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित ओलंपियन मोहम्मद शाहिद के घर पर गरजा, तो ढहती दीवारों के साथ सिर्फ एक मकान ही जमींदोज नहीं हुआ, बल्कि वे यादें और सम्मान भी मलबे में तब्दील हो गए, जिसने दशकों तक भारतीय हॉकी को गौरव दिलाया था। सड़क चौड़ीकरण के लिए हुई इस कार्रवाई ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या विकास की प्रक्रिया में मानवीय संवेदनाओं और राष्ट्रीय नायकों के सम्मान के लिए कोई जगह नहीं बची है?
आंसुओं और मिन्नतों के बीच चलता रहा बुलडोजर
रविवार को वाराणसी की कचहरी रोड पर उस समय दिल दहला देने वाला मंजर देखने को मिला, जब प्रशासन की टीम भारी पुलिस बल के साथ सड़क चौड़ीकरण अभियान के तहत मकानों को गिराने पहुंची। इस अभियान की जद में 1980 के मॉस्को ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले हॉकी के दिग्गज मोहम्मद शाहिद का पुश्तैनी घर भी आ गया।
परिवार के सदस्यों ने अधिकारियों के हाथ जोड़े, एक दिन की मोहलत मांगी ताकि वे खुद सम्मानजनक तरीके से उस घर को हटा सकें, जो सिर्फ ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि उनकी यादों और शाहिद की विरासत का प्रतीक था। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में एक बुजुर्ग को पुलिस अधिकारी से यह कहते हुए सुना जा सकता है, “मिश्रा जी, मैं आपके पैर पकड़ रहा हूं… बस आज की मोहलत दे दीजिए, कल हटा लेंगे।” लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई और बुलडोजर ने उस आशियाने को गिराना शुरू कर दिया।

“यह सिर्फ एक घर नहीं, देश की विरासत थी”
मोहम्मद शाहिद का यह घर सिर्फ उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि देश के खेल प्रेमियों के लिए भी एक ऐतिहासिक स्थल था। इसी घर की गलियों से निकलकर शाहिद ने हॉकी की दुनिया में भारत का नाम रोशन किया था। कांग्रेस नेता अजय राय ने इस घटना पर दुख जताते हुए कहा, “यह सिर्फ़ एक घर नहीं था, बल्कि देश की खेल विरासत की पहचान थी।”
परिवार का आरोप है कि प्रशासन ने पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया है। शाहिद के एक रिश्तेदार ने आरोप लगाया कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण सड़क को जानबूझकर 21 मीटर की बजाय 25 मीटर चौड़ा किया जा रहा है, जबकि अन्य इलाकों में ऐसा नहीं किया गया।
प्रशासन का तर्क और अनसुलझे सवाल
प्रशासन का कहना है कि सड़क चौड़ीकरण के लिए यह कार्रवाई जरूरी थी और प्रभावित लोगों को पहले ही मुआवजा दिया जा चुका है। एडीएम सिटी आलोक वर्मा ने बताया कि मोहम्मद शाहिद के मकान में नौ हिस्सेदार थे, जिनमें से छह ने मुआवजा ले लिया था और उन्हीं का हिस्सा तोड़ा गया है। प्रशासन ने यह भी दावा किया कि परिवार में शादी की बात सुनकर उन्हें समय देने की पेशकश की गई थी, लेकिन जरूरी दस्तावेज मुहैया नहीं कराए गए।
हालांकि, प्रशासन के इन तर्कों के बावजूद कई सवाल अधूरे रह जाते हैं:
जब परिवार खुद घर हटाने को तैयार था, तो एक दिन की मोहलत देने में क्या हर्ज था?
क्या देश को गौरव दिलाने वाले एक पद्मश्री सम्मानित खिलाड़ी की विरासत को इस तरह जमींदोज करना उचित है?
विकास की योजनाओं को लागू करते समय मानवीय संवेदनाओं को प्राथमिकता क्यों नहीं दी जा सकती?
यह घटना “बुलडोजर की राजनीति” पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या विकास का मॉडल इतना कठोर हो गया है कि वह अपने नायकों के सम्मान और आम नागरिक की पीड़ा को महसूस करने में असमर्थ है। मोहम्मद शाहिद की ढहती दीवारों की गूंज आज पूरे देश से पूछ रही है – क्या हमारे राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार सिर्फ तस्वीरों और भाषणों तक ही सीमित रह गए हैं?
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