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सोमवार, सितम्बर 29, 2025
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अचानकमार के जंगल से राष्ट्रपति भवन तक: आदिवासी बेटी रागनी ध्रुव की कला का परचम

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और वन्यजीवों की आत्मा को अपने कैनवास पर उतारने वाली एक आदिवासी बेटी की कला आज अंतर्राष्ट्रीय पटल पर देश का नाम रोशन कर रही है। बिलासपुर जिले के सुदूर वनांचल शिवतराई, अचानकमार की प्रतिभाशाली चित्रकार रागनी ध्रुव को उनकी असाधारण पेंटिंग के लिए देश की राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू द्वारा सम्मानित किया गया है। यह सम्मान न केवल रागनी के लिए, बल्कि पूरे आदिवासी समाज और छत्तीसगढ़ के लिए एक गौरव का क्षण है।

कला में झलकता जंगल का जीवन और परंपरा
रागनी ध्रुव की पेंटिंग आदिवासी संस्कृति, परंपरा और वन्यजीव संरक्षण के गहरे संदेशों को अपने में समेटे हुए है। उनके रंगों में प्रकृति के साथ आदिवासी समुदाय के अटूट रिश्ते की कहानी बसती है। वे अपनी कला के माध्यम से न केवल अपनी समृद्ध विरासत को सहेज रही हैं, बल्कि वन्यजीवों के संरक्षण की मार्मिक अपील भी करती हैं। उनकी यही अनूठी शैली और गहरा दृष्टिकोण था जिसने नई दिल्ली में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कला प्रदर्शनी में सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।

राष्ट्रपति का सम्मान और अंतर्राष्ट्रीय पहचान
इस प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में रागनी की कलाकृति को न केवल सराहा गया, बल्कि उसे एक विशेष पहचान भी मिली। भारत की राष्ट्रपति, जो स्वयं एक आदिवासी समुदाय से आती हैं, ने रागनी की प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें सम्मानित किया। यह सम्मान इस बात का प्रतीक है कि सच्ची लगन और प्रतिभा किसी भी परिस्थिति से निकलकर अपनी पहचान बना सकती है। इसके साथ ही, रागनी की इस अद्भुत कला को “इंटरनेशनल ट्राइब बुक” (International Tribe Book) में भी स्थान मिला है, जो कि वैश्विक स्तर पर आदिवासी कला और संस्कृति को समर्पित एक प्रतिष्ठित प्रकाशन है।

विदेशों में भी दिखेगी छत्तीसगढ़ की कला
यह सम्मान और पहचान रागनी के कलात्मक सफर की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। आने वाले समय में उनकी पेंटिंग्स को विश्व के अन्य देशों में भी प्रदर्शित किए जाने की योजना है। यह एक ऐसा अवसर होगा जब छत्तीसगढ़ के आदिवासी जीवन और भारत की समृद्ध वन्यजीव विरासत की झलक दुनिया भर के कलाप्रेमी देख सकेंगे।
एक छोटे से गांव से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी छाप छोड़ना, रागनी ध्रुव की यह यात्रा प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि कला किसी सरहद या सुविधा की मोहताज नहीं होती। हम सब उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं और आशा करते हैं कि वे अपनी कला के माध्यम से इसी तरह हमारे आदिवासी समाज और देश का नाम रोशन करती रहेंगी।

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