प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी के बीच संबंधों को लेकर बहस लंबे समय से जारी है। मोदी सरकार के कार्यकाल में अडानी समूह ने देश-विदेश में अपनी व्यावसायिक गतिविधियों का तेजी से विस्तार किया है। हालांकि, यह विस्तार विवादों और आलोचनाओं से अछूता नहीं रहा है।
अडानी समूह का अंतरराष्ट्रीय प्रसार मोदी सरकार की कूटनीतिक पहलों से निकटता से जुड़ा रहा है। विभिन्न देशों में अडानी समूह के निवेश, जैसे ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, और केन्या में, कई बार मोदी की आधिकारिक यात्राओं या विदेशी नेताओं के भारत आगमन के तुरंत बाद सामने आए। हालांकि, ये परियोजनाएं भारत के हितों पर हमेशा सकारात्मक प्रभाव नहीं डाल पाईं।
केन्या में एयरपोर्ट परियोजना और विवाद
2024 में केन्या की राजधानी नैरोबी स्थित जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (जेकेआईए) को अडानी समूह को देने की प्रक्रिया ने व्यापक विरोध और कानूनी विवादों को जन्म दिया। अडानी समूह को तरजीह देने के आरोपों ने पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए। एक व्हिसलब्लोअर ने इस परियोजना से जुड़े भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए, जो अडानी समूह ने खारिज कर दिए।
तंजानिया: बंदरगाह परियोजना में चीन से प्रतिस्पर्धा
तंजानिया में बागामोयो बंदरगाह परियोजना, जिसे पहले चीन नियंत्रित कर रहा था, अब अडानी समूह के लिए एक प्रमुख अवसर बन गई। हालांकि, यह निवेश चीन और भारत के बीच वैश्विक व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को भी रेखांकित करता है।
म्यांमार: तख्तापलट और परियोजना का नुकसान
म्यांमार में बंदरगाह परियोजना में अडानी समूह को भारी वित्तीय घाटा झेलना पड़ा। तख्तापलट के बाद बढ़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और मानवाधिकार हनन के आरोपों ने परियोजना को अस्थिर कर दिया। 2023 में अडानी ने परियोजना से मात्र 3 करोड़ डॉलर में बाहर निकलने का फैसला किया, जबकि प्रारंभिक निवेश 19.5 करोड़ डॉलर से अधिक था।
कूटनीति और विवाद का प्रभाव
मोदी सरकार द्वारा अडानी समूह को बढ़ावा देने के आरोप न केवल भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करते हैं, बल्कि यह सवाल भी उठाते हैं कि क्या राष्ट्रीय हितों को कॉरपोरेट लाभ के लिए बलिदान किया जा रहा है। केन्या, श्रीलंका और अन्य देशों में अडानी समूह की परियोजनाओं पर उठे सवाल भारत की छवि और आर्थिक नीति की पारदर्शिता पर गंभीर असर डालते हैं।
श्रीलंका में अडानी का संघर्ष: ऊर्जा और भू-राजनीति का टकराव
श्रीलंका की नई वामपंथी सरकार ने हाल ही में अडानी समूह को दी गई $440 मिलियन की पवन ऊर्जा परियोजना की समीक्षा शुरू की है। राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व में सरकार ने इस सौदे की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।
अडानी की श्रीलंका यात्रा कोलंबो बंदरगाह परियोजना से शुरू हुई थी। हालांकि, इसे स्थानीय ट्रेड यूनियनों और राजनीतिक दलों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। 2021 में, कोलंबो पोर्ट के ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ECT) परियोजना को रद्द कर दिया गया। इसके बाद, वेस्ट कंटेनर टर्मिनल (WCT) पर सहमति बनी, जिसमें अडानी को 85% हिस्सेदारी दी गई।
इसके अलावा, श्रीलंका में अडानी की पवन ऊर्जा परियोजना भी विवादों में है। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबाव में यह सौदा अडानी को सौंपने का आरोप लगा। नई सरकार का दावा है कि यह सौदा देश की ऊर्जा संप्रभुता को खतरे में डालता है और इसे रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
बांग्लादेश: ‘महंगे’ बिजली सौदे का विवाद
बांग्लादेश में अडानी समूह ने झारखंड के गोड्डा में 1,600 मेगावाट का कोयला-आधारित बिजली संयंत्र स्थापित किया, जो विशेष रूप से बांग्लादेश को बिजली निर्यात करने के लिए है। हालांकि, यह परियोजना शुरुआत से ही विवादों में घिर गई।
अडानी पर यह आरोप है कि उसने बांग्लादेश के साथ भेदभावपूर्ण और असमान समझौता किया। रिपोर्ट्स के अनुसार, बांग्लादेश को अडानी के बिजली संयंत्र से औसत बिजली लागत से पांच गुना ज्यादा कीमत पर बिजली खरीदनी पड़ी। इस विवाद ने बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शनों को जन्म दिया और अंततः प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत में शरण लेनी पड़ी।
नए प्रशासन ने इस अनुबंध को संशोधित करने की मांग की है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इसे अपारदर्शी और भेदभावपूर्ण बताया है।
इज़राइल में अडानी: एक सामरिक विवाद
अडानी समूह ने इज़राइल के हाइफा बंदरगाह का प्रबंधन हासिल कर लिया है, जो पश्चिम एशिया में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने की एक रणनीतिक कोशिश है। हालांकि, यह सौदा विवादों से अछूता नहीं रहा।
भारत सरकार पर यह आरोप लगाया गया कि इस सौदे के जरिए वह इज़राइल की विवादास्पद नीतियों का मौन समर्थन कर रही है। इसके अलावा, अडानी ने इज़राइल की हथियार निर्माता कंपनियों के साथ मिलकर भारत में हथियार निर्माण इकाइयां भी स्थापित की हैं।
भारत की विदेश नीति और अडानी के वैश्विक विस्तार पर सवाल
अडानी के ये विवादास्पद सौदे भारत की विदेश नीति और एक निजी व्यवसाय के बीच संबंधों को उजागर करते हैं। आलोचकों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति अडानी के व्यावसायिक हितों के इर्द-गिर्द घूम रही है।
श्रीलंका और बांग्लादेश में अडानी के सौदों ने भारत के लिए भू-राजनीतिक चुनौतियां पैदा की हैं। इज़राइल में उनका निवेश पश्चिम एशिया में भारत के संबंधों की नई दिशा की ओर इशारा करता है।
विवादों के केंद्र में अडानी
अडानी समूह के वैश्विक निवेश न केवल आर्थिक, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक विवादों को भी जन्म दे रहे हैं। श्रीलंका, बांग्लादेश और इज़राइल में उनके प्रोजेक्ट्स ने इन देशों की आंतरिक राजनीति और भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित किया है।
क्या अडानी के यह सौदे भारत के लिए अवसर हैं, या वे नई भू-राजनीतिक समस्याएं खड़ी कर रहे हैं? यह सवाल अब और भी गंभीर हो गया है।
क्या निजी कंपनियों का विदेश नीति में इतना प्रभाव उचित है?
कोयला ओवर-इनवॉइसिंग का मामला
अडानी समूह के खिलाफ कोयला ओवर-इनवॉइसिंग का मामला वर्षों से चर्चा में है। इस घोटाले में इंडोनेशिया से आयातित कोयले की कीमतों को कृत्रिम रूप से बढ़ाने के आरोप लगे हैं। आरोपों के अनुसार, अडानी समूह ने निम्न-श्रेणी के स्टीम कोयले को उच्च-गुणवत्ता वाले कोयले के रूप में वर्गीकृत कर, उसकी कीमत तीन गुना तक बढ़ा दी। यह कोयला तमिलनाडु की सरकारी बिजली कंपनी को बेचा गया, जिससे उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ा।
घोटाले की शुरुआत और विस्तार
यह मामला 2012 में भारत के राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) द्वारा शुरू की गई जांच से जुड़ा है। जांच में पाया गया कि इंडोनेशिया से आयातित कोयले को ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स और सिंगापुर जैसे टैक्स हेवन के रास्ते भारत लाया गया। इस प्रक्रिया ने कोयले की कीमतों को तीन गुना तक बढ़ा दिया। 2014 तक, ऐसे कम से कम 24 शिपमेंट तमिलनाडु पहुंचे।
डीआरआई और अन्य जांचों के निष्कर्ष
डीआरआई ने आरोप लगाया कि इन बढ़ी कीमतों का बोझ आम जनता पर डाला गया, जिससे बिजली के बिल बढ़ गए। जांच में चालान, बैंकिंग रिकॉर्ड और तमिलनाडु की बिजली उपयोगिता के आंतरिक दस्तावेजों सहित कई सबूत मिले। हालांकि, अडानी समूह ने इन आरोपों से इनकार किया है।
इंडोनेशिया में अडानी का विस्तार और विवाद
अडानी समूह का इंडोनेशिया में कोयला खनन और बुनियादी ढांचे में बड़ा निवेश है। उत्तरी कालीमंतन के बुन्यु द्वीप पर स्थित कोयला खदानों से न केवल पर्यावरणीय, बल्कि स्थानीय समुदायों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
स्थानीय समुदायों पर प्रभाव
इंडोनेशियाई एनजीओ ने रिपोर्ट में बताया है कि अडानी की गतिविधियों से तिदुंग समुदाय पर गंभीर असर पड़ा है। पर्यावरणीय हानि और स्थानीय संस्कृति के लिए यह खनन कार्य खतरनाक साबित हुआ है।
इंडोनेशिया के सबांग बंदरगाह में निवेश
इंडोनेशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के पास सबांग बंदरगाह के विकास के लिए अडानी समूह ने करीब 1 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की योजना बनाई है। यह परियोजना भारत-इंडोनेशिया के रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
नेपाल में हवाई मार्ग और अडानी का प्रभाव
नेपाल के नए हवाई अड्डों के संचालन पर भारत द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर विवाद गहराया है। नेपाल के ‘हिमाल खबर’ के अनुसार, अडानी समूह को हवाई अड्डों के संचालन के अधिकार देने के लिए दबाव डाला जा रहा है।
जलविद्युत परियोजनाओं में अडानी की भागीदारी
अडानी समूह ने नेपाल और भूटान में जलविद्युत परियोजनाओं के विकास की योजना बनाई है। यह 2050 तक समूह के शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य का हिस्सा है।
ऑस्ट्रेलिया में अडानी की विवादित परियोजनाएं
कारमाइकल कोयला खदान: पर्यावरण और स्वदेशी अधिकार
ऑस्ट्रेलिया में अडानी की कारमाइकल कोयला खदान परियोजना पर्यावरण और स्वदेशी अधिकारों के संघर्ष का केंद्र रही है। वांगान और जगलिंगौ समुदाय ने इस परियोजना का विरोध किया है।
पर्यावरणीय चिंताएं
ग्रेट बैरियर रीफ को संभावित नुकसान और जलवायु परिवर्तन के खतरे ने इस परियोजना को विवादों में डाल दिया। ‘स्टॉप अडानी’ जैसे समूहों ने परियोजना के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया।
आर्थिक व्यवहार्यता पर सवाल
हालांकि खदान संचालन शुरू हो चुका है, लेकिन यह प्रस्तावित क्षमता का केवल एक छठा हिस्सा ही पूरा कर पाई है। यह अडानी समूह के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
अडानी समूह पर लगे ओवर-इनवॉइसिंग और पर्यावरणीय नुकसान के आरोप कई सवाल खड़े करते हैं। एक ओर जहां समूह अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं के जरिए अपनी आर्थिक ताकत बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर विवाद और विरोध उसके छवि को धूमिल कर रहे हैं।
आगे की राह
अडानी समूह को पारदर्शिता और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ाना होगा। पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के अधिकारों का सम्मान करना न केवल कानूनी, बल्कि नैतिक दृष्टि से भी आवश्यक है।
इस घोटाले और परियोजनाओं का निष्पक्ष और गहन विश्लेषण यह स्पष्ट करता है कि बड़े आर्थिक उद्देश्यों के लिए मानव और पर्यावरणीय मूल्यों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
(लेखक: परंजॉय गुहा ठाकुरता और आयुष जोशी। अनुवाद और प्रस्तुति: संजय पराते।)
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