जिंदगी में जब कभी भी जिस समय भी कोई समस्या जन्म लेती है ठीक उसी समय उसका समाधान भी पैदा हो जाता है.
महान चिंतकों का कथन है कि जिंदगी में जिस समय कोई समस्या जन्म लेती है उसके साथ ही उसका समाधान भी जन्म लेता है। मुश्किल से मुश्किल हालात में भी दिन सिर्फ 24 घंटे का ही होता है। वक्त आखिर ठहरता कहां है जैसा भी हो गुजर ही जाता है।
अंधेरी से अंधेरी रात भी अपनी कोख में दिन का एक खूसूरत उजाला लिए होती है। जीवन कभी-कभी ऐसे दौर से गुजरता है जैसे एक ट्रेन किसी सुरंग से गुजरती है अंधेरों से भरी सुरंग से। पर क्या हम अपनी टिकट फेंक कर उस ट्रेन से बाहर कूद जाते हैं? नहीं न? क्योंकि हमें यकीन होता है कि ट्रेन का चालक हमें सुरक्षित रूप से उसे सुरंग से बाहर ले ही जाएगा।
जिंदगी की ट्रेन भी जब दुखों और मुसीबतों की सुरंग से गुजर रही होती है, चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा होता है, तभी तो जरूरत होती है उस भरोसे की। जिंदगी के उस ड्राइवर पर भरोसे की, जो सुरंग के उस पार हमें ले ही जाएगा। बस हमें याद रखना चाहिए कि कभी-कभी सुरंग बहुत छोटी होती है और कभी तो बहुत बड़ी।
लेकिन, आखिरकार यह है तो एक सुरंग ही। जिसके दूसरी ओर उजाला होता ही है।
एक घर में 5 दिए जल रहे थे। एक दिन पहले दिए ने सोचा, इतना जल कर भी मेरी रोशनी की कोई कीमत नहीं होती। मेरी कोई पूछ परख ही नहीं होती। आज मैं सबके लिए बेकार हो गया हूं, इससे तो अच्छा है कि मैं बुझ ही जाऊं और ये सोच कर वह दिया बुझ गया।
जानते हैं वह दिया कौन सा था ? वह दिया था उत्साह का। जोश का। उत्साह का प्रतीक था वह दिया। उसे देखकर दूसरे दीए ने कहा जो कि शांति का प्रतीक था, मुझे भी बुझ ही जाना चाहिए। क्योंकि मैं भी दुनिया को लगातार शांति की रोशनी देते आ रहा हूं लेकिन फिर भी लोग हैं कि नफरत और हिंसा करते हैं। यह सोच कर वह दिया भी बुझ गया।
तीसरा दिया जो कि भाईचारे का प्रतीक था उन्हें देखकर वह भी बुझ गया। अब ना तो कोई उत्साह था, न शांति था, ना कोई भाईचारा। ऐसे में चौथा दिया जो कि एकता का प्रतीक था वह भला कैसे जलते रहता? आखिरकार वह भी बुझ ही गया। लेकिन एक दिया था जो अभी भी चल रहा था। एक छोटा सा दिया, अपने मध्यम से से लौ लिए, टिमटिमाते हुआ सा वह दिया निरंतर जलता हुआ।
इतने में कहीं से एक छोटा सा बच्चा घर में आ गया। उसे चार बुझे हुए दियों को देखकर अफसोस नहीं हुआ बल्कि पाँच वें जलते हुए दिए को देखकर वह खुशी से झूम उठा और उस नन्हे से दिए से उसने वह चारों बुझ गए दियों को जलाकर फिर से रोशन कर दिए। जानते हैं वह पांचवा दिया कौन सा दिया था? उम्मीद का। आशा का दिया।
उम्मीद वक्त का बहुत बड़ा सहारा होता है। उम्मीद है तो हर लहर किनारा होता है। मुश्किल वक्त में अगर किसी चीज की बहुत जरूरत होती है तो वह है उम्मीद की। आशा की। सहयोग की। एक दूसरे के साथ मिलकर खड़े होने के एहसास की। बहुत फर्क पड़ता है, हौसलों और उम्मीदों के उड़ान की। जब एक साथ खड़े होकर एक दूसरे का सहयोग करते हुए जब हम अपने हितों को छोड़कर दूसरों के हितों के बारे में भी सोचते हैं। बहुत फर्क पड़ता है, जब हम एक दूसरे की ताकत को पहचानते हैं। जब एक-एक रेशों को जोड़कर एक मजबूत रस्सी का निर्माण करते हैं। बहुत फर्क पड़ता है। हर एक छोटी से छोटी सकारात्मक चीज से भी। बहुत फर्क पड़ता है।
हजारों ख्वाहिशें ले कर के हम हर रोज मरते हैं। और फिर, यही किस्सा हम रोज कई बार करते हैं। हम जीते हैं? कि मरने का इंतजार करते हैं? जाने क्यों, जिंदगी से प्यार करते हैं ?
बहरहाल, जैसे भी हो, हर सिचुएशन में, हर हाल में, जिंदगी को जी लेने की उम्मीद से बहुत फर्क पड़ता है।
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