कॉमरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन, बंगाल की वाम राजनीति और साहित्य-सिनेमा जगत के लिए एक बड़ी क्षति है। वे न केवल एक असाधारण राजनेता थे, बल्कि एक ज्ञानी, कलाकार और मानवतावादी भी थे। उनका जाना मार्क्सवाद और कम्युनिज्म के लिए एक बड़ा नुकसान है, क्योंकि वे इन विचारधाराओं के वफादार और सच्चे प्रतीक थे।
बुद्धदेव भट्टाचार्य का जीवन राजनीतिक और सांस्कृतिक संघर्षों से भरा हुआ था। वे एक साधारण शिक्षक से उभरकर मेहनतकश वर्ग के असाधारण नेता बने। उन्होंने पश्चिम बंगाल में 1977 से 2011 तक लगातार वाम मोर्चा की सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे माकपा के शीर्ष निकाय पोलित ब्यूरो के सदस्य भी थे।
बुद्धदेव भट्टाचार्य ने राज्य में औद्योगीकरण और आईटी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां बनाईं। उनके कार्यकाल में ही आईटी उद्योग में 70% की वृद्धि देखी गई। हालांकि, भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर उनकी लोकतांत्रिक उदारता ने उन्हें कुछ राजनीतिक नुकसान भी पहुंचाया, जिससे वामपक्ष को 2011 के विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।
बुद्धदेव भट्टाचार्य ने मार्क्सवाद और माकपा से अपना गहरा जुड़ाव कभी नहीं तोड़ा। वे अंतिम सांस तक इन विचारों के वफादार रहे। उन्होंने अपनी मृत देह का उपयोग जरूरतमंदों के लिए ट्रांसप्लांट करने का निर्देश दिया है, जो उनके उदार और मानवतावादी स्वभाव को दर्शाता है।
उनके निधन पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने श्रद्धांजलि व्यक्त की है, जो उनकी स्वीकार्यता और मार्क्सवाद की प्रासंगिकता को दर्शाता है। कॉमरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य, जिन्होंने अपने जीवन भर वामपंथ और मेहनतकश वर्ग के लिए लड़ाई लड़ी, उनका सम्मानजनक निधन हुआ है। उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।
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