छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा की स्थिति बेहद चिंताजनक है। प्रदेश में 3000 से अधिक स्कूलों में प्राचार्य नहीं हैं और शिक्षकों के 8194 पद खाली पड़े हैं। सहायक शिक्षकों के 22000 से अधिक और व्याख्याताओं के 2524 पद भी रिक्त हैं। 56333 सरकारी स्कूलों में से 300 से अधिक स्कूल शिक्षकविहीन हैं, जबकि 5500 स्कूलों में सिर्फ एक ही शिक्षक है। इसके अलावा, 3978 प्राइमरी, मिडिल, हाई और हायर सेकंडरी स्कूल एक ही परिसर में संचालित हो रहे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ रहा है।
संविधान में स्पष्ट निर्देश है कि सरकार को स्कूली उम्र के प्रत्येक बच्चे के लिए उसके निवास स्थान के पास शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए। इसके लिए नए स्कूल भवनों का निर्माण और शिक्षकों की भर्ती आवश्यक है। लेकिन भाजपा सरकार इन प्राथमिकताओं को नजरअंदाज कर रही है। हर साल 10-15 हजार शिक्षक सेवा निवृत्त होते हैं, लेकिन उनके पदों को बिना किसी हलचल के खत्म कर दिया जाता है।
भाजपा सरकार युक्तियुक्तकरण के नाम पर स्कूलों को बंद कर रही है और शिक्षकों का तबादला कर रही है। यह कदम सरकार की असल प्राथमिकताओं की ओर इशारा करता है, जो स्कूली शिक्षा की वास्तविक चुनौतियों से आंख मूंद कर अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। इस मुहिम का प्रदेश के शिक्षक संगठनों और मध्यान्ह भोजन मजदूर एकता यूनियन (सीटू) ने कड़ा विरोध किया है।
भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में भी 2000 से ज्यादा स्कूलों को बंद किया गया था, जिससे ग्रामीण बच्चों की शिक्षा पर बुरा असर पड़ा। अब भाजपा के मौजूदा कार्यकाल में 4077 और स्कूल बंद किए जा रहे हैं, जिसमें 35000 से ज्यादा बच्चे शिक्षा से बाहर हो जाएंगे। इनमें अधिकांश बच्चे ग्रामीण, आदिवासी और आर्थिक रूप से कमजोर तबके से हैं।
स्कूल बंदी से मध्यान्ह भोजन और सफाई कर्मियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। इन स्कूलों के बंद होने से 12000 से अधिक मध्यान्ह भोजन और अंशकालीन सफाई मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में मध्यान्ह भोजन मजदूरों के वेतन में 50 प्रतिशत वृद्धि का वादा किया था, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।
मध्यान्ह भोजन मजदूर एकता यूनियन (सीटू) ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपकर युक्तियुक्तकरण की कार्यवाही रद्द करने की मांग की है। इसके साथ ही, प्रभावित स्कूलों के पालकों, शिक्षकों और ग्रामीणों के साथ मिलकर यूनियन एक बड़े आंदोलन की तैयारी कर रही है।
प्रदेश में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने स्वामी आत्मानंद स्कूलों के माध्यम से उत्कृष्ट शिक्षा केंद्र स्थापित करने का प्रयास किया था। लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद इन स्कूलों में शिक्षकों की कमी और संसाधनों के अभाव के कारण ये केंद्र धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर मुफ्त शिक्षा का दावा किया जा रहा है, लेकिन बच्चों को महंगी और खराब गुणवत्ता वाली निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने पर मजबूर किया जा रहा है। ऐसे में ग्रामीण और शहरी गरीब परिवारों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है, जो उनकी पहले से ही कमजोर आय का एक बड़ा हिस्सा खा रहा है।
“असर” (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 15 साल उम्र तक के 13.6% बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। स्कूली बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की क्षमता भी कमजोर है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पांचवीं कक्षा के केवल 52.7% बच्चे ही कक्षा-2 के स्तर का पाठ पढ़ पाते हैं, जबकि केवल 22.8% बच्चे ही भाग की क्रिया कर सकते हैं और 11.3% बच्चे ही अंग्रेजी का वाक्य पढ़ सकते हैं।
स्कूलों के बंद होने का सीधा असर शिक्षा के निजीकरण पर पड़ रहा है। पिछले 10 वर्षों में बंद हुए स्कूलों की जगह आरएसएस-संचालित सरस्वती शिशु मंदिर जैसे स्कूलों की संख्या बढ़ी है, जो शिक्षा के भगवाकरण के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। ये स्कूल ऐसी पुस्तकों का उपयोग कर रहे हैं जो अवैज्ञानिक दृष्टिकोण और हिंदुत्व की अवधारणा पर आधारित हैं, जिससे बच्चों को सांप्रदायिक विचारधारा के प्रति प्रेरित किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में शिक्षक और मजदूर संगठनों के विरोध के बाद फिलहाल युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया को रोका गया है। लेकिन असली लड़ाई नई शिक्षा नीति के नाम पर चलाए जा रहे शिक्षा के निजीकरण और भगवाकरण के खिलाफ है। यह लड़ाई केवल शिक्षा के भविष्य की ही नहीं, बल्कि संविधान को बचाने की भी है। छत्तीसगढ़ को भी इस लड़ाई में पूरे देश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना होगा।
छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा पर संकट: युक्तियुक्तकरण, स्कूल बंदी और शिक्षा का भगवाकरण
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