नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जमानत के सख्त नियमों का पालन करते हुए किसी आरोपी को लंबे समय तक जेल में रखना न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने प्रधानमंत्री के आपराधिक कृत्यों (पीएमएलए), गैरकानूनी गतिविधियां (यूएपीए) और नशीली दवाओं के मामलों (एनडीपीएस) में त्वरित सुनवाई की आवश्यकता पर जोर दिया है। सुनवाई में देरी और कठोर जमानत शर्तों को लागू कर आरोपियों को जेल में रखना उचित नहीं है।यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की। जस्टिस अभय एस. ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज की बेंच ने कहा कि कार्यपालिका को उन कानूनों पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिनमें आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करने का भार सौंपा जाता है। यह केस 2022-2016 के दौरान का है, जब सेंथिल बालाजी परिवहन मंत्री थे और अब वे पिछले 15 महीने से जेल में बंद हैं। फिलहाल इस मामले का निपटारा निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता, इसीलिए उन्हें जमानत दी जा रही है।
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की। जस्टिस अभय एस. ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज की बेंच ने कहा कि कार्यपालिका को उन कानूनों पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिनमें आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करने का भार सौंपा जाता है। यह केस 2022-2016 के दौरान का है, जब सेंथिल बालाजी परिवहन मंत्री थे और अब वे पिछले 15 महीने से जेल में बंद हैं। फिलहाल इस मामले का निपटारा निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता, इसीलिए उन्हें जमानत दी जा रही है।मामले में हजारों आरोपी और सैकड़ों गवाह
मामले में हजारों आरोपी और सैकड़ों गवाहकोर्ट ने जानकारी दी कि इस मामले में करीब 2,000 आरोपी और 500 गवाह हैं, जिससे सुनवाई और फैसले में काफी समय लग सकता है। न्यायालय ने कहा कि अब तक की सुनवाई में बालाजी के बैंक खाते में 1.34 करोड़ रुपये जमा होने का कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है। हालांकि, यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता।
कोर्ट ने जानकारी दी कि इस मामले में करीब 2,000 आरोपी और 500 गवाह हैं, जिससे सुनवाई और फैसले में काफी समय लग सकता है। न्यायालय ने कहा कि अब तक की सुनवाई में बालाजी के बैंक खाते में 1.34 करोड़ रुपये जमा होने का कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है। हालांकि, यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता।
कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को जमानत की सख्त धारा 45 (1) (II) का दुरुपयोग करने से रोका है, क्योंकि आरोपी पहले से ही लंबे समय से हिरासत में हैं। कोर्ट ने बालाजी को निर्देश दिया है कि वे हर सोमवार और शुक्रवार को ईडी के समक्ष उपस्थित रहें और मनी लॉन्ड्रिंग केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट में भी हाजिर हों।
जमानत के सख्त नियमों का गलत प्रयोग न हो
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद। जमानत के कठोर नियमों को किसी को जेल में डालने का हथियार नहीं बनाया जा सकता। यह आवश्यक है कि न्याय व्यवस्था में संतुलन बना रहे और कानून का पालन न्यायसंगत ढंग से हो।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी न केवल कानूनी प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो। जमानत एक अधिकार है, और इसके सख्त नियमों का उपयोग आरोपियों को अनुचित रूप से लंबे समय तक जेल में रखने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट का यह रुख कानून की पारदर्शिता और निष्पक्षता को दर्शाता है। न्यायपालिका और कार्यपालिका को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा कि कानून का उद्देश्य सिर्फ सजा देना न हो, बल्कि न्याय भी सुनिश्चित करना हो।
इसके साथ ही, जमानत के मामलों में पारदर्शिता और त्वरित न्यायिक प्रक्रिया बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे मामलों में जहां सैकड़ों गवाह और हजारों आरोपी हों, वहां कानून को बिना किसी दबाव के निष्पक्षता से काम करना चाहिए। सेंथिल बालाजी के मामले में अदालत का निर्णय और उसकी टिप्पणी एक महत्वपूर्ण नजीर है, जो न्याय प्रणाली में संतुलन और पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर देती है।
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