जांजगीर-चांपा (पब्लिक फोरम)। मड़वा ताप विद्युत संयंत्र से विस्थापित किसानों और श्रमिकों की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) जिला परिषद कोरबा के सचिव पवन कुमार वर्मा, किसान सभा के जिला सचिव कमलेश चौहान और जिला परिषद सदस्य राम मूर्ति दुबे ने अपना सक्रिय समर्थन दिया है। आंदोलन स्थल पर पहुंचकर उन्होंने कहा, “कोरबा जिले के हम सभी साथी आपके संघर्ष में आपके साथ खड़े हैं। मड़वा ताप विद्युत प्रबंधन और शासन-प्रशासन को जल्द से जल्द आपकी मांगों को पूरा करना चाहिए, नहीं तो आने वाले दिनों में आंदोलन को और विस्तार दिया जाएगा।”
भू-विस्थापितों की न्यायपूर्ण मांगें
मड़वा ताप विद्युत कामगार एवं भू-विस्थापित श्रमिक संघ (एटक) जिला जांजगीर-चांपा के बैनर तले, भू-विस्थापित किसान और श्रमिक 14 अक्टूबर 2024 से मड़वा प्लांट के प्रवेश द्वार चौक, दर्राभांठा, चांपा में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हैं। उनकी प्रमुख मांग है कि अधिग्रहित भूमि के बदले उन्हें नौकरी दी जाए, जो पुनर्वास नीति 2007 के तहत उनका अधिकार है।
वादे जो अब तक अधूरे हैं
2007 में जब परियोजना के लिए ग्राम मड़वा-तेन्दुभांठा के किसानों की सिंचित भूमि का अधिग्रहण किया गया था, तब उन्हें मात्र 3,64,000 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा मिला। पुनर्वास नीति के अनुसार, भू-विस्थापित खातेदारों और सह-खातेदारों को नौकरी देने और नौकरी मिलने तक जीवन निर्वाह भत्ता प्रदान करने का वादा किया गया था। लेकिन आज तक न तो नौकरी मिली है और न ही भत्ता।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल ने मड़वा-तेन्दुभांठा को गोद ग्राम घोषित करते हुए बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरी के लिए प्रशिक्षण जैसी सुविधाएं नि:शुल्क देने का आश्वासन दिया था। लेकिन ये सभी वादे अधूरे रह गए, जिससे भू-विस्थापित परिवारों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
आंदोलन का विस्तार और प्रशासन की उदासीनता
हड़ताल के 25 दिन बीत जाने के बावजूद शासन, प्रशासन और छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल ने उनकी उचित मांगों पर ध्यान नहीं दिया है। इस उपेक्षा से नाराज होकर भू-विस्थापितों ने 8 नवंबर 2024 से अनिश्चितकालीन क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि इस दौरान किसी भी भू-विस्थापित या उनके परिवार के सदस्य के साथ कोई अप्रिय घटना होती है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी शासन, प्रशासन और विद्युत प्रबंधन की होगी।
सामाजिक संगठनों का समर्थन
इस आंदोलन में राजेश शुक्ला (एटक जिला सचिव), लक्ष्मी नारायण साहू (महासचिव, पेपर मिल यूनियन), जानकी पटेल (अध्यक्ष, मनरेगा यूनियन), रघुनंदन सोनी (उपाध्यक्ष, मड़वा ताप विद्युत कामगार एवं भू-विस्थापित श्रमिक संघ, एटक), नवधा बरेठ, अन्नू समेत सैकड़ों भू-विस्थापित साथी शामिल हैं। क्रमिक भूख हड़ताल के दूसरे दिन दिलदार यादव, रमेश केंवट और ठाकुर राम बरेठ ने भूख हड़ताल पर बैठकर अपना विरोध जताया।
न्याय की आस और मानवता की पुकार
भू-विस्थापितों की यह लड़ाई सिर्फ उनके हक और अधिकारों के लिए नहीं, बल्कि न्याय और मानवता की पुनर्स्थापना के लिए है। उनका कहना है कि वे अपने परिवारों के भरण-पोषण और सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शासन और प्रशासन से उनकी अपील है कि वे उनके साथ किए गए वादों को पूरा करें, ताकि वे सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्राप्त कर सकें।
यह आवश्यक है कि संबंधित अधिकारी और प्रबंधन उनकी समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान करें। आंदोलन की गंभीरता को समझते हुए, संवाद के माध्यम से एक सकारात्मक दिशा में कदम बढ़ाना समय की मांग है।
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