नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) ने एलएंडटी के सीईओ सुब्रह्मण्यम द्वारा कर्मचारियों से सप्ताह में 90 घंटे काम कराने के सुझाव की कड़ी आलोचना की है। एटक ने इसे न केवल अमानवीय बताया, बल्कि इसे श्रमिकों के अधिकारों पर हमला करार दिया।
एलएंडटी के सीईओ सुब्रह्मण्यम ने हाल ही में बयान दिया कि कर्मचारियों को देश के निर्माण के लिए सप्ताह में 90 घंटे और रविवार को भी काम करना चाहिए। उनका यह बयान इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के उस सुझाव के समान है, जिसमें उन्होंने युवाओं से सप्ताह में 70 घंटे तक काम करने की अपील की थी।
श्रमिकों के अधिकारों पर खतरा
एटक ने अपने बयान में कहा कि यह सुझाव देश के श्रमिक वर्ग के अधिकारों पर सीधा हमला है। भारत में श्रमिकों ने 19वीं सदी में “8 घंटे काम, 8 घंटे परिवार और 8 घंटे आराम” के अधिकार के लिए कड़ा संघर्ष किया था। उस समय कई श्रमिकों ने अपनी जान तक गंवाई थी।
बेरोज़गारी और अमीर-गरीब की खाई
बयान में कहा गया है कि भारत में पहले से ही बेरोज़गारी अपने उच्चतम स्तर पर है। ऐसे में कर्मचारियों से अधिक घंटे काम कराने का सुझाव न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि यह युवाओं की ऊर्जा और संभावनाओं को व्यर्थ करने जैसा है।
“आखिर, जो संपत्ति मजदूर 48 घंटे काम करके बनाते हैं, वह अडानी, अंबानी और अन्य कॉरपोरेट्स की जेब में चली जाती है। भारत में अमीर और गरीब के बीच की खाई इतनी बढ़ गई है कि यह अब 80 साल पहले के स्तर तक पहुंच चुकी है।”
एटक का रुख
एटक ने सुब्रह्मण्यम के सुझाव की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह विचार मजदूर वर्ग की शारीरिक और मानसिक भलाई को नजरअंदाज करता है।
“यह न केवल अमानवीय है, बल्कि श्रमिकों के सामाजिक और पारिवारिक जीवन को खत्म करने की कोशिश है।”
एटक ने सरकार और समाज से आह्वान किया है कि वे श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हों और इस तरह के विचारों का पुरजोर विरोध करें। “काम के घंटों में वृद्धि करने से न तो देश का निर्माण होगा और न ही समाज का कल्याण।”
सरकार से मांग की गई है कि वह श्रमिक वर्ग के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और इस तरह के अमानवीय प्रस्तावों को खारिज करे।
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