कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के पंचायत सचिवों की लंबी लड़ाई आखिरकार एक सकारात्मक मोड़ पर पहुंची है। 17 मार्च से जारी हड़ताल को बुधवार को स्थगित कर दिया गया। उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा और पंचायत विभाग के आला अधिकारियों के साथ हुई सौहार्दपूर्ण बैठक में सचिवों की मांगों पर सहमति बनी, जिसने न केवल उनकी मेहनत को सम्मान दिया, बल्कि हजारों परिवारों के लिए नई उम्मीद जगाई। यह कहानी है संघर्ष, एकता और बलिदान की, जो हर हिंदुस्तानी के दिल को छू लेगी।
हड़ताल का अंत, नई शुरुआत
लगभग एक महीने तक चली इस हड़ताल ने छत्तीसगढ़ के ग्रामीण प्रशासन को ठप कर दिया था। पंचायत सचिव, जो गांवों के विकास की रीढ़ हैं, अपनी जायज मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे थे। उनकी मांग थी- शासकीयकरण, चिकित्सा व्यय प्रतिपूर्ति, वेतन विसंगतियों का समाधान और हड़ताल अवधि के वेतन की स्वीकृति।
उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा, पंचायत विभाग के सचिव भीम सिंह और संचालक प्रियंका ऋषि महोबिया के साथ हुई चर्चा में इन मांगों पर गंभीरता से विचार किया गया। सरकार ने सचिवों के हक में कई बड़े फैसले लिए, जिसके बाद हड़ताल स्थगित करने का ऐलान हुआ। यह न केवल सचिवों की जीत है, बल्कि ग्रामीण भारत की आवाज को बुलंद करने का प्रतीक भी है।
सरकार के वादे: उम्मीद की नई राह
बैठक में कई महत्वपूर्ण सहमतियां बनीं, जो सचिवों के भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगी:
– शासकीयकरण का सपना: पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने एक कमेटी गठित की है, जो जनवरी 2026 तक अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपेगी। इसके बाद पंचायत सचिवों का शासकीयकरण होगा, जो उनकी नौकरी को स्थायित्व और सम्मान देगा।
– चिकित्सा सुविधा: शासकीयकरण से पहले चिकित्सा व्यय प्रतिपूर्ति के लिए अलग से मार्गदर्शिका जारी की जाएगी, ताकि सचिवों और उनके परिवारों को स्वास्थ्य सुरक्षा मिले।
– वेतन विसंगतियों का समाधान: 15 वर्ष की सेवा पूरी करने वाले सचिवों के वेतन सत्यापन में उत्पन्न समस्याओं को तुरंत दूर किया जाएगा।
– हड़ताल अवधि का वेतन: हड़ताल के दौरान रुके वेतन को तत्काल स्वीकृत किया जाएगा, जिससे सचिवों को आर्थिक राहत मिलेगी।
इन फैसलों ने सचिवों के चेहरों पर मुस्कान ला दी, लेकिन उनकी नजर अब सरकार के वादों की समयबद्ध पूर्ति पर टिकी है।

बलिदान की गाथा: तीन योद्धाओं को श्रद्धांजलि
हड़ताल केवल मांगों की लड़ाई नहीं थी, बल्कि एकता और बलिदान की मिसाल भी थी। इस दौरान तीन पंचायत सचिवों ने अपनी जान गंवाई। छत्तीसगढ़ पंचायत सचिव संघ के प्रदेश अध्यक्ष उपेंद्र सिंह पैकरा ने इन शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “हमारे तीन साथियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। उनकी याद हमें हमेशा अपने हक के लिए लड़ने की प्रेरणा देती रहेगी।” यह पल हर उस व्यक्ति के लिए भावुक था, जो इस आंदोलन का हिस्सा था।
एकता की ताकत: सचिवों का आभार
उपेंद्र सिंह पैकरा ने सभी जिला और ब्लॉक अध्यक्षों के साथ-साथ पंचायत सचिवों का आभार जताया, जिन्होंने इस आंदोलन को मजबूती दी। उन्होंने कहा, “यह जीत हमारी एकता की जीत है। हमने दिखा दिया कि जब हम एक साथ खड़े होते हैं, तो कोई भी मांग असंभव नहीं।” सचिवों ने अब अपने कार्य पर लौटने का फैसला किया है, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन फिर से शुरू हो सकता है।
ग्रामीण भारत की रीढ़: पंचायत सचिव
पंचायत सचिव गांवों के विकास का आधार हैं। मनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन, ग्रामीण आवास जैसी योजनाओं को धरातल पर उतारने में उनकी भूमिका अहम है। फिर भी, लंबे समय से उनकी मांगें अनसुनी थीं। इस हड़ताल ने न केवल उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाया, बल्कि ग्रामीण भारत की अनदेखी समस्याओं को भी राष्ट्रीय पटल पर लाया।
आगे की राह: उम्मीद और सतर्कता
हड़ताल भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन सचिवों का संघर्ष अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ। उनकी नजर अब जनवरी 2026 पर टिकी है, जब शासकीयकरण की प्रक्रिया शुरू होगी। साथ ही, वे सरकार के अन्य वादों पर भी पैनी नजर रखेंगे। यह आंदोलन केवल पंचायत सचिवों की जीत नहीं, बल्कि हर उस कर्मचारी की प्रेरणा है, जो अपने हक के लिए लड़ रहा है।
छत्तीसगढ़ के पंचायत सचिवों की यह जीत न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे देश के मेहनतकश कर्मचारियों के लिए एक मिसाल है। यह कहानी है मेहनत, बलिदान और एकता की, जो हमें सिखाती है कि सच्चाई और हक की लड़ाई कभी व्यर्थ नहीं जाती। जैसे ही सचिव अपने कार्य पर लौट रहे हैं, उनके दिल में एक नई उम्मीद है- एक बेहतर भविष्य की, जहां उनकी मेहनत को सम्मान और सुरक्षा मिले।
आप क्या सोचते हैं? क्या यह जीत ग्रामीण भारत के लिए एक नई शुरुआत है? अपनी राय हमारे साथ साझा अवश्य करें।
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