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सीताराम येचुरी: भारतीय राजनीति के सशक्त योद्धा और विचारक का अद्वितीय सफर!

सितंबर 2024 में, भारतीय राजनीति ने एक सशक्त और अनुभवी नेता को खो दिया। सीताराम येचुरी, जो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे, ने नई दिल्ली के एम्स अस्पताल में 12 सितंबर को आखिरी सांस ली। उनका जीवन विचारों, संघर्ष और भारतीय राजनीति में सक्रिय भागीदारी का एक आदर्श उदाहरण था।

शुरुआती जीवन और जेएनयू से सफर की शुरुआत
तेलुगु भाषी परिवार में जन्मे सीताराम येचुरी ने अपने शैक्षणिक और राजनीतिक सफर की शुरुआत दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज और फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से की। जेएनयू में येचुरी का प्रवेश 1973 में हुआ, और यहीं से उनका जुड़ाव वामपंथी राजनीति से हुआ। उस दौर में, जेएनयू भारतीय राजनीति के सबसे प्रखर विचारकों और छात्रों का केंद्र बना हुआ था, और येचुरी इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए।

येचुरी का उदय जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में हुआ, जहां उन्होंने तीन बार लगातार चुनाव जीते और विश्वविद्यालय में वामपंथ की स्थिति को सुदृढ़ किया। आपातकाल के दौरान उनकी गिरफ्तारी ने उनके पीएचडी के सपनों को तोड़ा, लेकिन इसके बाद वे पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए। जल्द ही, वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की केंद्रीय समिति में शामिल हो गए, और राष्ट्रीय राजनीति में उनका सफर शुरू हुआ।

वामपंथ की धारा और राष्ट्रीय भूमिका
येचुरी का योगदान सिर्फ भारतीय राजनीति तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। पूर्वी यूरोप की कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ रिश्ते मजबूत करना हो, या भारत में वामपंथी आंदोलन को नई दिशा देना—येचुरी ने हर मोर्चे पर अपनी छाप छोड़ी।

1990 के दशक में, जब भारत ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) की नीतियां अपनाईं, तब वामपंथी आंदोलन को एक बड़ा झटका लगा। लेकिन येचुरी ने अपने धैर्य और कुशल नेतृत्व से भाजपा के खिलाफ एक व्यापक धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बनाने की दिशा में काम किया। उन्होंने कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे मनमोहन सिंह सरकार के तहत कई महत्वपूर्ण नीतियों को लागू किया जा सका, जैसे कि मनरेगा, शिक्षा का अधिकार और खाद्य सुरक्षा कानून।

एक मिलनसार नेता और विचारक
सीताराम येचुरी का व्यक्तित्व जितना सशक्त था, उतना ही सरल और मिलनसार भी। उनकी सहजता और सरलता उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग करती थी। पार्टी के महासचिव होने के बावजूद, वे हमेशा खुले दरवाजों के नेता रहे। चाहे किसी राजनीतिक दल के सदस्य हों या आम नागरिक, सभी से वे सहजता से मिलते थे। पत्रकारों और आम लोगों के बीच उनकी पहुंच इतनी आसान थी कि वे कभी भी किसी प्रकार की दूरी महसूस नहीं होने देते थे।

विचारशीलता और समाज के प्रति प्रतिबद्धता
सीताराम येचुरी को हमेशा एक विचारशील नेता के रूप में देखा गया, जो भारतीय समाज की जटिलताओं को गहराई से समझते थे। चाहे सांप्रदायिकता का मुद्दा हो, या आर्थिक असमानता, उन्होंने हमेशा वामपंथी दृष्टिकोण से समाज के हर वर्ग के लिए आवाज उठाई। उनके भाषण तर्कसंगत, तथ्यपूर्ण और दिल को छूने वाले होते थे, जिनमें एक गहरा संदेश छिपा होता था।

सांप्रदायिकता और वैश्वीकरण के खिलाफ एक योद्धा
सत्तर के दशक से राजनीति में सक्रिय येचुरी ने कभी भी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उन्होंने सांप्रदायिकता और वैश्वीकरण जैसी नीतियों के खिलाफ जमकर संघर्ष किया। भाजपा के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने कभी भी अपना धैर्य नहीं खोया और लगातार सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया।

जीवन के अंतिम पड़ाव
करात और येचुरी के बीच मतभेदों की चर्चाएं हमेशा से होती रही हैं, लेकिन दोनों नेताओं की भूमिका अलग-अलग थी। करात ने पार्टी संगठन को सशक्त करने का कार्य किया, तो येचुरी ने संसदीय लोकतंत्र में पार्टी का चेहरा बनकर अपनी भूमिका निभाई। वे भारतीय राजनीति में एक स्थिर और सशक्त योद्धा के रूप में उभरे, जो कट्टरवाद और आर्थिक उदारीकरण के खिलाफ डटकर खड़े रहे।

सीताराम येचुरी की विरासत
सीताराम येचुरी का जीवन संघर्ष, विचारशीलता और समाज के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक रहा। उन्होंने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी, जिसमें विचारधारा और व्यावहारिकता का संतुलन था। उनका व्यक्तित्व और उनके विचार हमेशा उन नेताओं के लिए प्रेरणा बने रहेंगे, जो भारतीय राजनीति को एक नई दिशा में ले जाना चाहते हैं।
(आलेख: अजॉय आशीर्वाद महाप्रशास्ता, अनुवाद: संजय पराते)

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