कांकेर (पब्लिक फोरम)। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में घोषित ‘बचत उत्सव’ और जीएसटी दरों में कटौती को नागरिक अधिकार रक्षा मंच ने महज़ एक ढकोसला करार दिया है। मंच का कहना है कि सरकार जनता को वास्तविक राहत देने के बजाय खोखले दावे कर रही है।
मंच के संयोजक सुखरंजन नंदी और उप संयोजक नजीब कुरैशी ने प्रेस बयान जारी कर कहा कि केंद्र सरकार पिछले सात वर्षों से जीएसटी के माध्यम से जनता की जेब से करोड़ों रुपये वसूल चुकी है। अब मामूली दरों में कटौती कर इसे “दीपावली उपहार” या “बचत उत्सव” बताना जनता को गुमराह करने का प्रयास है।
नेताओं के अनुसार, केंद्र सरकार के प्रचारित आंकड़ों के पीछे की सच्चाई यही है कि इस कटौती से देश के हर नागरिक को औसतन मात्र 228 रुपये वार्षिक की बचत होगी। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि यह राशि किसी भी प्रकार से राहत नहीं कही जा सकती।
मंच ने तथ्यों के आधार पर बताया कि –
28 प्रतिशत जीएसटी दर, जो कुल आय का केवल 11 प्रतिशत हिस्सा थी, उसे 18 प्रतिशत करने से सरकार की जीएसटी आय में केवल 1.1 प्रतिशत की कमी आएगी।
इसी तरह, 12 प्रतिशत की दर को 5 प्रतिशत करने से कुल आय में सिर्फ 0.35 प्रतिशत की गिरावट होगी।
दोनों स्लैब मिलाकर जीएसटी आय में मात्र 1.45 प्रतिशत का नुकसान होगा।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में सरकार की कुल जीएसटी आय 22.08 लाख करोड़ रुपये रही थी। इसमें से 1.45 प्रतिशत यानी लगभग 32,016 करोड़ रुपये जनता के पास रहेंगे, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 0.0967 प्रतिशत (0.1 प्रतिशत से भी कम) है। इसके बावजूद सरकार इसे एक बड़े उपहार की तरह पेश कर रही है।
नेताओं ने प्रधानमंत्री के उस दावे को भी खारिज किया जिसमें कहा गया था कि जीएसटी दरों में कमी से छोटे और मझौले उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। उनका कहना है कि वर्तमान आर्थिक संकट का कारण उत्पादन नहीं, बल्कि जनता की क्रयशक्ति की कमी है। जब तक लोगों की आय और खर्च करने की क्षमता नहीं बढ़ेगी, तब तक उद्योग-धंधों का विस्तार संभव नहीं है।
मंच ने यह भी कहा कि देश की आर्थिक असमानता गहरी होती जा रही है। आज देश की 1 प्रतिशत आबादी के पास 60 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा है। इस असमानता को दूर किए बिना आर्थिक संकट से बाहर निकलना असंभव है, लेकिन केंद्र सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नहीं है।
अंत में नागरिक मंच ने सरकार से मांग की कि वह भ्रामक प्रचार बंद करे और जनता की वास्तविक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाए, जिससे आम नागरिक को ठोस आर्थिक राहत मिल सके।
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