कोरबा/पाली (पब्लिक फोरम)। पंचायतों को ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए दी जाने वाली सरकारी राशि के दुरुपयोग की खबरें अक्सर सामने आती हैं, और ऐसा ही एक मामला पाली जनपद पंचायत के लाफा ग्राम पंचायत में उजागर हुआ है। यहां की निर्वाचित सरपंच संगीता सिंह और जनपद पंचायत के कुछ अधिकारियों पर पंचायत खाते से 7 लाख 33 हजार रुपये गबन करने का गंभीर आरोप लगाया गया है। इस संबंध में ग्राम पंचायत के सचिव, उपसरपंच और पंचों ने कलेक्टर को लिखित शिकायत देकर न्याय की गुहार लगाई है।
सचिव के डिजिटल हस्ताक्षर का दुरुपयोग
शिकायत के अनुसार, सरपंच संगीता सिंह ने जनपद अधिकारियों की मिलीभगत से सचिव के डिजिटल हस्ताक्षर का दुरुपयोग करते हुए पंचायत के खाते से 7 लाख 33 हजार रुपये निकाल लिए। यह राशि 15वें वित्त आयोग द्वारा विकास कार्यों के लिए जारी की गई थी, लेकिन ग्रामीणों के अनुसार, बिना किसी प्रस्ताव या पंचायत की सहमति के, यह रकम गबन की गई।
ग्राम पंचायत सचिव दूजे कुमार सिंदे और उपसरपंच लक्ष्मण पंथ के नेतृत्व में पंचायत के अन्य पंचों ने इस गबन के खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने अपनी शिकायत में स्पष्ट किया है कि सरपंच ने अपनी मनमानी से पंचायत की राशि का दुरुपयोग किया और जब वर्तमान सचिव ने इस मनमानी का विरोध किया, तो सरपंच ने जनपद अधिकारियों के साथ मिलकर उनके डिजिटल हस्ताक्षर का गलत उपयोग किया।
जनता की नाराजगी और निष्पक्ष जांच की मांग
ग्रामवासियों में इस गबन को लेकर भारी आक्रोश है। उपसरपंच लक्ष्मण पंथ का कहना है कि यदि सरपंच संगीता सिंह के कार्यकाल की पूरी निष्पक्षता से जांच की जाए, तो कई और घोटाले उजागर हो सकते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सरपंच ने पूर्व में भी तात्कालीन सचिवों के साथ सांठगांठ कर पंचायत की राशि का अनुचित तरीके से इस्तेमाल किया है।
ग्रामवासियों और पंचायत के प्रतिनिधियों ने कलेक्टर से आग्रह किया है कि दोषियों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाए और पंचायत की गबन की गई राशि वापस लाई जाए। उन्होंने इस मामले की निष्पक्ष और त्वरित जांच की मांग की है।
कलेक्टर का आश्वासन
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, कलेक्टर ने शिकायतकर्ताओं को उचित कार्रवाई और निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है। ग्रामीणों को उम्मीद है कि प्रशासन इस मामले में जल्द ही सख्त कदम उठाएगा और दोषियों को कानून के दायरे में लाएगा।
यह मामला न केवल पंचायत के वित्तीय अनुशासन पर सवाल उठाता है, बल्कि उन ग्रामीण विकास योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है, जिनके लिए यह राशि आवंटित की गई थी। जब तक ऐसी घटनाओं पर कठोर कार्रवाई नहीं होती, भ्रष्टाचार और अनियमितताएं जारी रहेंगी, और ग्रामीण जनता को उनकी हक की सुविधाओं से वंचित रहना पड़ेगा।
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