नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। उच्चतम न्यायालय आज एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसे संभल की शाही जामा मस्जिद समिति ने दायर किया है। यह याचिका निचली अदालत द्वारा मस्जिद का सर्वेक्षण कराने के आदेश को चुनौती देती है। समिति ने दावा किया है कि यह आदेश जल्दबाजी में और न्यायिक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना पारित किया गया, जिससे सांप्रदायिक तनाव और हिंसा भड़कने की आशंका है।
मामला क्या है?
उत्तर प्रदेश के संभल जिले के चंदौसी क्षेत्र में स्थित 16वीं सदी की शाही जामा मस्जिद को लेकर विवाद तब खड़ा हुआ जब एक मुकदमे में यह आरोप लगाया गया कि मस्जिद का निर्माण एक प्राचीन मंदिर को तोड़कर किया गया। इस मामले में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) ने मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया, जिसे मस्जिद प्रबंधन ने “पूजा स्थल अधिनियम 1991” का उल्लंघन बताया।
क्यों पहुंची याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट?
मस्जिद प्रबंधन समिति ने दावा किया कि यह मामला बेहद संवेदनशील है और इसे निचली अदालतों के माध्यम से ले जाने से सांप्रदायिक सौहार्द्र को खतरा हो सकता है। उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण आदेश के बाद 24 नवंबर को हिंसा भड़क उठी, जिसमें चार लोगों की जान चली गई। समिति ने इसे धार्मिक स्थलों पर देर से किए जा रहे दावों की खतरनाक प्रवृत्ति करार दिया।
क्या कहता है मस्जिद प्रबंधन?
मस्जिद समिति का कहना है कि:
1.जल्दबाजी में फैसला: सिविल जज ने बिना कोई नोटिस जारी किए सर्वेक्षण का आदेश दे दिया।
2. कानून का उल्लंघन: पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत इस तरह के मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप वर्जित है।
3. सांप्रदायिक तनाव: इस तरह के सर्वेक्षण आदेश सांप्रदायिक भावनाओं को उकसाते हैं और देश की धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करते हैं।
4. संरक्षित स्मारक: शाही जामा मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित एक ऐतिहासिक धरोहर है।
सांप्रदायिक सौहार्द पर मंडराता खतरा
समिति ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में प्रतिवादी पक्ष को सुने बिना आदेश पारित न किए जाएं। उनका तर्क है कि इस तरह के फैसले न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का रुख क्यों अहम?
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। यह देखना होगा कि न्यायालय “पूजा स्थल अधिनियम 1991” और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के दृष्टिकोण से क्या निर्णय लेता है।
यह मामला केवल एक धार्मिक स्थल का विवाद नहीं है, बल्कि इससे जुड़े बड़े सवाल सांप्रदायिक शांति, कानून-व्यवस्था और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण से भी जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस दिशा में एक महत्वपूर्ण नजीर स्थापित करेगा।
Recent Comments