शोषण और उत्पीड़न की बीहड़ों से उपजी एक आवाज़
वीरांगना फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को पिता देवीदीन, माता मुला देवी के यहां गांव- घूरा क पुरवा (गोरहा), जालौन, उत्तर प्रदेश में एक वंचित परिवार में हुआ, छः भाई बहनों में दूसरे नम्बर पर थी फूलन देवी,11वर्ष की उम्र में अधेड़ उम्र के व्यक्ति पुत्तीलाल से विवाह हुआ, पति द्वारा शारिरिक शोषण के बाद बीमारी की हालात में भागकर वापस माता पिता के पास, चाचा द्वारा पिता की जमीन पर जबरजस्ती विवाद की खिलाफत करने पर चचेरे भाई द्वारा 17 वर्ष की उम्र में पुलिस थाने में बंद करवा दिया गया जहाँ पुलिस द्वारा शारिरिक शोषण किया गया, थाने से घर आने पर पुनः चचेरे भाई और चाचा के अन्याय के खिलाफ विरोध करती रही तो चाचा ने बाबू गुज्जर डैकत से मिलकर 1979 में फूलन देवी का अपहरण करवाकर बीहड़ पहुचा देता है।
बीहड़ में बाबू गुज्जर फूलन देवी का लगातार शारिरिक शोषण करता है, जिसे देखकर उसी गैंग में शामिल विक्रम मल्लाह बाबू गुज्जर को जान से मार देता है, और गैंग का सरदार बन जाता है, गैंग के मुख्य सरदार बाबू गुज्जर की मौत से गुस्साए श्रीराम ठाकुर और लाला राम ठाकुर धोखे से विक्रम मल्लाह को मार देते है और फूलन देवी को बंधक बनाकर 1980 में बेहमई गांव लाते है, फूलन देवी को एक कमरे में भूखे प्यासे बंद कर देते है, यहां उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म होता है, वहा मौजूद सभी बारी-बारी से उसके जिस्म को जानवरों की तरह नोचते है, उसके साथ हो रहे दुष्कर्म और दी जा रही यात्नओं की जानकारी उनके रिश्तेदार माधव को मिलती है, तो वे छुपते- छुपाते मौके पर पहुंचकर और फूलन देवी को वहां से बचाकर ले बीहड़ ले जाते हैं।
बीहड़ में पहुचने पर फूलन देवी, बाबा मुस्तकीम के सहयोग से अपने साथी मान सिंह और अन्य अपने पुराने साथियों को इकट्ठा करके गिरोह का खुद सरदार बनती है, और महज़ 18 वर्ष की उम्र में 14 फ़रवरी 1981 को बेहमई गांव के 22 लोगों एक साथ खड़ा करके मरवा देती है, बेहमई कांड से नई दिल्ली में संसद, और मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश की विधानसभाओं में तूफ़ान मच जाता है, उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता मुलायम सिंह यादव तात्कालिक मुख्यमंत्री वी पी सिंह से इस्तीफा माँगते है और वी पी सिंह सौ दिन में दस्यु उन्मूलन करने की घोषणा करते है, लेकिन दस्यु उन्मूलन न कर पाने के कारण मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देते है, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अपील और भिंड के एस पी राजेन्द्र चतुर्वेदी और प्रसिद्ध लेखक कल्याण मुखर्जी के अथक प्रयास से अपनी चार शर्तों पर
1- मध्यप्रदेश प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण,
2-अपने किसी भी साथी को ‘सज़ा ए मौत’ न देने का आग्रह,
3- आत्मसमर्पण कर रहे सभी को जमीन के पट्टे दिए जाय,
4- आठ वर्ष से अधिक जेल में न रखा जाय।
उपरोक्त शर्तोंनुसार 13 फ़रवरी 1983 को भिंड में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने तीन सौ पुलिस और दस हजार जनता और अपने पूरे परिवार की उपस्थिति में रायफल उठाकर जनता का अभिवादन करते हुए आत्मसमपर्ण कर देती है, फूलन देवी पर 22 हत्या, 30 लूटपाट, 18 अपहरण के मुकदमे दर्ज थे, लेकिन ग्वालियर केंद्रीय जेल में 11 वर्ष बिना किसी मुकदमे का सामना किए जेल में बंद रही, इसी बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार ने 1993 में फूलन देवी पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की घोषणा कर दी, औऱ 1994 में फूलन देवी को जेल से छूटने के बाद डॉ राम दास द्वारा स्थापित पेटृली मक्कल काची संस्था द्वारा शराब निषेध और महिला अश्लीलता साहित्य के सम्मेलन में आमत्रित किया जाता है, जहां से उनकी सार्वजनिक रूप से कार्यक्रमों में भागीदारी की शुरुआत होती है।
15 फ़रवरी 1995 उम्मेद सिंह से विवाह किया और इसी वर्ष हिंदू धर्म त्याग कर नागपुर के प्रसिद्ध दीक्षाभूमि में बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गई, समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर मिर्जापुर-भदोही से ग्यारवीं लोक सभा 1996 में जीती, बारहवीं लोकसभा का चुनाव 1998 में हार गई, और पुनः तेरहवीं लोकसभा वही से उसी चुनाव चिह्न पर 1999 जीत गई,
25 जुलाई 2001 को रूड़की निवासी पंकज सिंह ऊर्फ़ शेर सिंह राणा फूलन देवी से मिलने आया और कहा कि हम ‘एकलव्य सेना’ संगठन से जुड़ना चाहते है, खीर खाई, और फिर घर के गेट पर फूलन देवी को गोली मार दी, फ़िर अपने बयान में बोला कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है, 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने पंकज सिंह उर्फ़ शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
वीरांगना फूलन देवी कुल जमा 38 वर्ष की उम्र में दुनिया भर में चर्चित हो गई कम उम्र में शादी, बीहड़ में केवल चार वर्ष, जेल में ग्यारह वर्ष, राजनीतिक व सामाजिक जीवन केवल पांच वर्ष रहा लेकिन इतने कम समय में सामाजिक न्याय के उस दौर के सभी नायकों के साथ गहरे और बहुत ही जीवंत रिश्ते बन गए थे।
-डॉ कमल उसरी
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