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सहयोग पोर्टल विवाद: क्या सरकार कर रही है इंटरनेट पर सेंसरशिप? एक्स ने उठाए गंभीर सवाल

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। सोशल मीडिया की दुनिया में एक नया तूफान खड़ा हो गया है। एलन मस्क की कंपनी एक्स ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। एक्स का कहना है कि उसे केंद्र सरकार के ‘सहयोग पोर्टल’ पर आने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह पोर्टल, जिसे सरकार ने साइबर अपराध से लड़ने और गैरकानूनी सामग्री को हटाने के लिए बनाया है, अब सेंसरशिप के आरोपों के घेरे में आ गया है। एक्स ने इसे ‘अनियंत्रित सेंसरशिप का हथियार’ करार दिया है, जिससे इंटरनेट की आजादी और अभिव्यक्ति के अधिकार पर सवाल उठने लगे हैं। आइए, इस मामले की गहराई में उतरते हैं और समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है।

सहयोग पोर्टल पर बवाल क्यों?
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि सहयोग पोर्टल क्या है। यह एक ऐसा ऑनलाइन मंच है, जिसे गृह मंत्रालय ने बनाया है। इसका मकसद है कि पुलिस, सरकारी एजेंसियां और सोशल मीडिया कंपनियां आपस में तालमेल बिठाकर गैरकानूनी सामग्री को जल्द से जल्द हटा सकें। पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट में ‘शबाना बनाम दिल्ली सरकार’ मामले में इसकी जरूरत पर जोर दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि तुरंत कार्रवाई के लिए इंटरनेट कंपनियों और कानून लागू करने वालों के बीच सीधा संपर्क जरूरी है। अक्टूबर 2023 में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने एक आदेश जारी कर सरकारी एजेंसियों को सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 79 के तहत सामग्री ब्लॉक करने का अधिकार दिया। सहयोग पोर्टल इसी का नतीजा माना जा रहा है।

लेकिन एक्स का कहना है कि यह पोर्टल कानून के दायरे से बाहर जा रहा है। कंपनी का आरोप है कि सरकार धारा 79(3)(बी) का गलत इस्तेमाल कर रही है। यह धारा कहती है कि अगर कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सरकार बताए कि उसकी सामग्री गैरकानूनी है, तो उसे हटाना होगा, वरना वह कानूनी सुरक्षा खो देगा। एक्स का दावा है कि सहयोग पोर्टल के जरिए सरकार धारा 69ए के सख्त नियमों को नजरअंदाज कर रही है, जो सामग्री ब्लॉक करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे खास कारणों और प्रक्रियाओं को अनिवार्य करता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन?
एक्स ने अपनी याचिका में 2015 के मशहूर ‘श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ’ मामले का हवाला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने का सिर्फ एक ही सही तरीका है- या तो कोर्ट का आदेश हो या धारा 69ए की प्रक्रिया का पालन हो। इस धारा में साफ नियम हैं: ब्लॉक करने का कारण लिखित में देना, एक स्वतंत्र समिति की मंजूरी और प्रभावित पक्ष को सुनवाई का मौका देना। लेकिन सहयोग पोर्टल में ऐसा कुछ नहीं दिखता। एक्स का कहना है कि यह पोर्टल मंत्रालयों, राज्य सरकारों और यहां तक कि स्थानीय पुलिस को भी ब्लॉकिंग का अधिकार दे रहा है, बिना किसी जवाबदेही या चुनौती देने के मौके के। क्या यह इंटरनेट पर खुली सेंसरशिप की राह नहीं खोल रहा?

इंसानी नजरिए से क्या है खतरा?
कल्पना करें कि आप एक आम नागरिक हैं। आप सोशल मीडिया पर अपनी बात रखते हैं- शायद सरकार की आलोचना, शायद कोई संवेदनशील मुद्दा। अचानक आपकी पोस्ट गायब हो जाए, बिना किसी कारण या सुनवाई के। सहयोग पोर्टल के मौजूदा ढांचे में ऐसा संभव है। यह न सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट है, बल्कि एक आम इंसान के मन में डर भी पैदा करता है। क्या हमारा डिजिटल भविष्य अब सरकार के हाथों में होगा? यह सवाल हर उस शख्स को परेशान कर रहा है जो इंटरनेट को अपनी आवाज मानता है।

सरकार का पक्ष क्या है?
सरकार का कहना है कि सहयोग पोर्टल का मकसद साइबर अपराधों से लड़ना है, न कि सेंसरशिप करना। उसका दावा है कि यह सिर्फ एक तकनीकी मंच है, जो गैरकानूनी सामग्री को तेजी से हटाने में मदद करता है। लेकिन एक्स का सवाल है- अगर मकसद साफ है, तो धारा 69ए की प्रक्रिया क्यों छोड़ी जा रही है? सरकार ने अभी तक पोर्टल की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की है, जिससे संदेह और गहरा हो रहा है।

कानूनी जंग का अगला कदम
एक्स ने न सिर्फ दिल्ली हाई कोर्ट में, बल्कि कर्नाटक हाई कोर्ट में भी इस मुद्दे को उठाया है। कर्नाटक में उसकी याचिका में सहयोग को ‘सेंसरशिप पोर्टल’ कहा गया है। दोनों कोर्ट में सुनवाई जारी है। एक्स की मांग है कि गृह मंत्रालय सहयोग की सारी जानकारी सार्वजनिक करे, ताकि यह साफ हो कि यह कानूनी ढांचे का पालन कर रहा है या नहीं। अगर कोर्ट ने एक्स के पक्ष में फैसला दिया, तो यह इंटरनेट की आजादी के लिए बड़ी जीत होगी। लेकिन अगर सरकार की बात मानी गई, तो डिजिटल दुनिया में नई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं।

आपकी आवाज, आपका हक
यह मामला सिर्फ एक्स और सरकार की लड़ाई नहीं है। यह हर उस इंसान की कहानी है जो इंटरनेट पर अपनी बात रखता है। सहयोग पोर्टल के पीछे का सच क्या है? क्या यह वाकई साइबर अपराध से लड़ेगा या अभिव्यक्ति की आजादी को कुचल देगा? जवाब का इंतजार है। तब तक यह सवाल हम सबके दिलों में गूंज रहा है- क्या हमारी आवाज सुरक्षित है? गृह मंत्रालय को चाहिए कि वह पारदर्शिता दिखाए और लोगों का भरोसा जीते। क्योंकि आज इंटरनेट सिर्फ तकनीक ही नहीं, बल्कि हमारी जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है।

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