रूस की अक्टूबर क्रांति, जिसे बोल्शेविक क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, इतिहास में समाजवादी विचारधारा के आधार पर एक निर्णायक मोड़ के रूप में जानी जाती है। यह क्रांति न केवल रूस बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बनी, जिसने एक नए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तंत्र का मार्ग प्रशस्त किया।
क्रांति की पृष्ठभूमि: सुधार या क्रांति का सवाल
अक्टूबर 1917 की क्रांति से पहले रूस में कई आंदोलनों और क्रांतियों का दौर चल चुका था। 1905 और फरवरी 1917 की क्रांतियों ने ज़ारशाही के खिलाफ लोगों में असंतोष बढ़ाया। लेकिन इन क्रांतियों के बावजूद ज़मीनी बदलाव नहीं आ पाया। सवाल यह था कि क्या केवल सुधार से शोषण समाप्त हो सकता है, या क्रांति ही एकमात्र विकल्प है?
सुधारों की सीमित प्रकृति ने आम जनता, खासकर श्रमिक और किसानों को निराश किया। 1905 की क्रांति के बाद ज़ारशाही ने श्रमिक आंदोलनों को बेरहमी से कुचलने का प्रयास किया। मजदूरी में भारी कटौती, ट्रेड यूनियनों पर प्रतिबंध, और आंदोलनकारियों पर हिंसा ने जनता को संगठित और आक्रोशित किया।
बोल्शेविक बनाम मेंशेविक: विचारधारा और रणनीति का संघर्ष
ज़ारशाही के खिलाफ संघर्ष के दौरान कम्युनिस्ट आंदोलन में भी आंतरिक विभाजन था। बोल्शेविक और मेंशेविक, दो प्रमुख गुट, अलग-अलग रणनीतियों पर काम कर रहे थे। मेंशेविकों का मानना था कि ज़ारशाही की अनुमति से ट्रेड यूनियन जैसे संगठनात्मक कार्य किए जाएं। दूसरी ओर, बोल्शेविक पार्टी ने भूमिगत कार्यों के साथ जनता से संबंध बनाए रखने और चुनावी राजनीति में भाग लेने की योजना बनाई।
लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने एक व्यापक रणनीति अपनाई। उन्होंने न केवल ज़ारशाही को, बल्कि उदारवादी पार्टियों को भी बेनकाब करने का काम किया। उनका उद्देश्य जनता के संघर्ष को सशक्त बनाना और क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियां तैयार करना था।
अक्टूबर क्रांति: शक्ति सोवियतों के हाथ में
जनवरी 1917 तक रूस के हालात पूरी तरह बदल चुके थे। प्रथम विश्व युद्ध में भारी नुकसान, आर्थिक संकट और ज़ारशाही के अत्याचारों ने जनता को आक्रोशित कर दिया। मजदूरों, किसानों और महिलाओं ने बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किए। इस बीच, बोल्शेविक पार्टी ने “सारी शक्ति सोवियतों के हाथ में” का नारा दिया, जिसने आम जनता को संगठित किया।
अगस्त 1917 में लेनिन द्वारा प्रस्तुत अप्रैल थीसिस ने क्रांति की दिशा तय की। बोल्शेविक पार्टी ने अस्थायी सरकार और उदारवादी लोकतंत्र की कमजोरियों को उजागर किया। सेना के एक बड़े हिस्से ने बोल्शेविकों का समर्थन किया और सशस्त्र क्रांति का रास्ता खुला।
एक नई व्यवस्था की स्थापना
अक्टूबर 1917 में रूस में एक नई व्यवस्था का जन्म हुआ। ज़ारशाही का अंत हुआ, और सर्वहारा व किसानों की तानाशाही की नींव पड़ी। इस क्रांति ने यह साबित कर दिया कि शोषण और असमानता पर आधारित व्यवस्था को चुनौती दी जा सकती है। यह क्रांति सिर्फ रूस तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने दुनिया भर में साम्यवादी विचारधारा को नया जीवन दिया।
क्रांति का प्रभाव और आज की प्रासंगिकता
रूसी क्रांति ने यह सिद्ध कर दिया कि बदलाव संभव है। इसने पूरी दुनिया को दिखाया कि शोषित वर्ग अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर एक वैकल्पिक व्यवस्था बना सकता है। आज भी, जब हम समावेशी विकास और सामाजिक न्याय की बात करते हैं, यह क्रांति हमें प्रेरित करती है।
अक्टूबर क्रांति ने न केवल रूस बल्कि पूरी दुनिया के राजनीतिक और सामाजिक तंत्र को बदल दिया। यह क्रांति एक ऐसा उदाहरण है, जिसने साबित किया कि एक समान और शोषणमुक्त समाज के निर्माण के लिए संघर्ष और दृढ़ संकल्प जरूरी है। यह क्रांति आज भी हमें यह संदेश देती है कि परिवर्तन संभव है, बशर्ते कि हम उसके लिए तैयार हों।
(लेखक: निशांत आनंद, दिल्ली विश्वविद्यालय में कानून के छात्र)
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