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विश्व मंच पर आरएसएस: वैश्विक दक्षिणपंथी शक्तियों से गठजोड़ और बढ़ती महत्वाकांक्षा

आलेख : दीपंकर भट्टाचार्य

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा प्रतिपादित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, जिसे वह अपनी विचारधारा का मानक मानता है, अब एक नए वैश्विक नाम के साथ सामने आया है – “राष्ट्रीय रूढ़िवाद”। पिछले पांच वर्षों से वैश्विक धुर दक्षिणपंथ इस नई विचारधारा के तहत एक व्यापक गठबंधन बनाने के प्रयास में जुटा है। “नैट कॉन” (नेशनल कंजरवेटिव) नामक सम्मेलनों की शृंखला के माध्यम से, यह धुर दक्षिणपंथी विचारधारा वैश्विक स्तर पर फैल रही है।

आरएसएस के वैश्विक संपर्कों का विस्तार
2019 से 2024 के बीच लंदन, वॉशिंगटन और रोम में आयोजित इन सम्मेलनों के जरिए, धुर दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रसार के लिए अमेरिका में एडमंड बर्के फाउंडेशन की स्थापना की गई, जिसका नेतृत्व इज़रायली-अमेरिकी दार्शनिक योरम हज़ोनी कर रहे हैं। इस शृंखला का नवीनतम सम्मेलन 8-10 जुलाई 2024 को वॉशिंगटन डीसी में हुआ, जिसमें पहली बार संघ के दो प्रमुख नेता, राम माधव और स्वपन दासगुप्ता, शामिल हुए। यह घटना आरएसएस के उभरते वैश्विक संपर्कों को उजागर करती है, जो भारतीय डायस्पोरा के सीमाओं से बाहर जा रहा है।

इतिहास और विचारधारा
आरएसएस का इतिहास यूरोप के धुर दक्षिणपंथी फासीवादियों से प्रभावित रहा है, जिसमें इटली के मुसोलिनी और हिटलर से गोलवलकर की प्रेरणा साफ झलकती है। वर्तमान वैश्विक धुर दक्षिणपंथी आंदोलन भी नव फासीवाद की पुनरावृत्ति का हिस्सा प्रतीत होता है। हालांकि, आज “फासीवाद” और “नाज़ीवाद” जैसे शब्द फासीवादियों के लिए भी वर्जित हैं, इसीलिए यह विचारधारा “राष्ट्रीय रूढ़िवाद” के चोले में पेश की जा रही है।

राम माधव का तर्क
राम माधव ने फासीवाद के आरोपों को सिरे से नकारते हुए, इज़राइल और यहूदियों के प्रति आरएसएस के प्रेम को उजागर किया। उन्होंने अपने श्रोताओं को भारत में लोकतंत्र के क्षरण की बातों पर विश्वास न करने की सलाह दी। उनके अनुसार, भारतीय स्वाभाविक रूप से रूढ़िवादी होते हैं और “आस्था, झंडा और परिवार” जैसी रूढ़िवादी मान्यताएँ भारतीयों के डीएनए में शामिल हैं।

वास्तविकता से परे
हालांकि, राम माधव का यह दावा वास्तविकता से परे है। आरएसएस और भाजपा ने हमेशा से ही झूठ, अफवाह और हिंसा के जरिए सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत की है। 2024 के चुनावों के परिणामस्वरूप विपक्ष की बढ़ती ताकत को लेकर भाजपा की तानाशाही प्रवृत्ति और अधिक आक्रामक हो गई है। संघ-भाजपा का यह दावा कि वे एक अरब भारतीयों का समर्थन प्राप्त करते हैं, पूरी तरह निराधार है।

वैश्विक धुर दक्षिणपंथ की ओर आरएसएस का रुख
आरएसएस अब खुद को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। राम माधव ने अमेरिका में भारतीय डायस्पोरा की तुलना इज़रायली यहूदी लॉबी से की, जो स्पष्ट रूप से आरएसएस की वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं को दर्शाता है। 2025 में अपनी शताब्दी वर्ष की तैयारी करते हुए, आरएसएस अपने को वैश्विक रूढ़िवाद के एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने के लिए और अधिक प्रयास करता दिखाई देगा।

आरएसएस के वैश्विक विस्तार और इसकी धुर दक्षिणपंथी विचारधारा की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं के बीच, दुनिया भर की फासीवाद विरोधी ताकतों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। भारत में संघ-भाजपा की उभरती शक्ति और इसके अंतरराष्ट्रीय संपर्कों के पीछे छिपे खतरों पर ध्यान देना अब पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। (लेखक भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव हैं.)

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