उदयपुर (पब्लिक फोरम)। सीपीआई (एमएल) ने उदयपुर फिल्म महोत्सव में फिल्म हद अनहद की स्क्रीनिंग को आरएसएस के कार्यकर्ताओं द्वारा बाधित किए जाने की कड़ी निंदा की है। यह घटना लोकतांत्रिक स्थानों और प्रगतिशील कला पर बढ़ते हमलों की ओर संकेत करती है, जो फासीवादी शासन के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लगातार प्रयासों का हिस्सा है।
क्या है मामला?
उदयपुर फिल्म सोसाइटी ने सिनेमा ऑफ रेसिस्टेंस पहल के तहत 15 से 17 नवंबर तक इस तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन किया। इस महोत्सव को उपनिवेशवादी इज़राइल द्वारा मारे गए फिलिस्तीनी बच्चों और जन अधिकारों के लिए संघर्षरत प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा को समर्पित किया गया था। लेकिन महोत्सव के दूसरे दिन, आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने हद अनहद की स्क्रीनिंग को रोकने के लिए हिंसक हस्तक्षेप किया।
आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने न केवल महोत्सव को बाधित किया, बल्कि आयोजकों को समर्पण हटाने का दबाव भी बनाया। उन्होंने फिलिस्तीनी संघर्ष और प्रोफेसर साईबाबा के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां कीं। आयोजकों ने प्रशासन से सभी अनुमति पहले ही प्राप्त कर ली थी, लेकिन इसके बावजूद, प्रशासन इस गैरकानूनी गतिविधि को रोकने में विफल रहा।
प्रगतिशील सिनेमा पर हमले का मकसद
सीपीआईएमएल का मानना है कि आरएसएस की यह कार्रवाई हद अनहद जैसे प्रगतिशील सिनेमा से उनके डर को उजागर करती है। यह फिल्म कबीर की कविताओं के माध्यम से धर्म और राजनीति के गहरे संबंधों को दिखाती है। जन चेतना को बढ़ावा देने वाले सिनेमा से शोषणकारी तंत्र को खतरा महसूस होता है, और यही कारण है कि ऐसी फिल्मों को निशाना बनाया जा रहा है।
आयोजकों का साहसिक रुख
महोत्सव के आयोजकों ने इन धमकियों के बावजूद फिलिस्तीनी बच्चों और प्रोफेसर साईबाबा को समर्पण हटाने से इनकार कर दिया। यह निर्णय लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। सीपीआईएमएल ने आयोजकों की इस साहसी पहल की सराहना की है और उनके साथ खड़े रहने का वादा किया है।
लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला
सीपीआईएमएल ने इस घटना को लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है। पार्टी ने न्यायप्रिय नागरिकों से इस गुंडागर्दी के खिलाफ एकजुट होने और लोकतांत्रिक स्थानों की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने का आह्वान किया है।
सीपीआईएमएल ने स्पष्ट किया कि प्रगतिशील सिनेमा को दबाने के ये प्रयास असफल होंगे। सिनेमा ऑफ रेसिस्टेंस जैसे आंदोलन न केवल सिनेमा के जरिए अन्याय का विरोध करते हैं, बल्कि समाज में जागरूकता और बदलाव का भी आधार बनते हैं।
उदयपुर फिल्म महोत्सव में हुई यह घटना एक गहरी चेतावनी है कि कैसे लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचला जा रहा है। ऐसे में नागरिकों का दायित्व है कि वे इन हमलों का विरोध करें और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े हों।
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