होमदेश'समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने की मांग पर भाकपा (माले) का कड़ा प्रतिवाद: आरएसएस-भाजपा...

‘समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग पर भाकपा (माले) का कड़ा प्रतिवाद: आरएसएस-भाजपा पर लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप

संविधान की मूल आत्मा से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करेगा देश: दीपंकर भट्टाचार्य

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। भारत के संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्दों को हटाने संबंधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की टिप्पणी पर देश की राजनीति में एक बार फिर गहमा-गहमी तेज हो गई है। भाकपा (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह संघ-भाजपा की लोकतंत्र विरोधी मंशा को उजागर करता है, जो संविधान के मूल चरित्र को बदलने की दिशा में एक और खतरनाक कदम है।

सुप्रीम कोर्ट कर चुका है याचिकाओं को खारिज
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने पहले ही संविधान की प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने संबंधी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इसके बावजूद संघ द्वारा इस मुद्दे को बार-बार उठाना, भट्टाचार्य के अनुसार, देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने और संविधान के प्रति जनता की आस्था को तोड़ने की साज़िश है।

‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द केवल जोड़ नहीं, संविधान की आत्मा

भाकपा (माले) महासचिव ने स्पष्ट किया कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भले ही 42वें संविधान संशोधन के ज़रिये 1976 में प्रस्तावना में जोड़े गए हों, लेकिन इन मूल्यों की जड़ें संविधान की रचना में प्रारंभ से ही मौजूद थीं। अनुच्छेदों और मूल अधिकारों में इन सिद्धांतों की स्पष्ट झलक मिलती है, जो भारत को एक समावेशी और न्यायपूर्ण गणराज्य बनाते हैं।

आरएसएस को लोकतंत्र और संप्रभुता से भी आपत्ति: माले
दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि आरएसएस को सिर्फ ‘समाजवादी’ या ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों से नहीं, बल्कि ‘संप्रभु’, ‘लोकतांत्रिक’ और ‘गणराज्य’ जैसे पूरे संवैधानिक ढांचे से ही आपत्ति है। उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह देश की आर्थिक संप्रभुता और विदेश नीति को अमेरिका-इजराइल धुरी के समक्ष गिरवी रख रही है, साथ ही संसदीय प्रणाली को राष्ट्रपति प्रणाली की ओर धकेल रही है।

1975 का आपातकाल और आज का दौर
उन्होंने 1975 के आपातकाल का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय देश की जनता ने लोकतंत्र की कीमत समझी और 1977 के चुनावों में इंदिरा गांधी की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया। आज भी वैसा ही एक ‘स्थायी आपातकाल’ मोदी-शाह शासन में देश पर थोपने की कोशिश की जा रही है, जिसे जनता कभी स्वीकार नहीं करेगी।

2024 के जनादेश का स्पष्ट संदेश
कॉमरेड दीपंकर ने 2024 के चुनावी नतीजों की ओर इशारा करते हुए कहा कि देश की जनता ने स्पष्ट कर दिया है कि वह संविधान और लोकतंत्र पर हमले को बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने विश्वास जताया कि भारत इस अघोषित आपातकाल से बाहर निकलेगा और अपने संवैधानिक मूल्यों को और अधिक मज़बूती से अपनाएगा।

संविधान की प्रस्तावना से जुड़े शब्दों को हटाने की बात केवल शब्दों का खेल नहीं है, यह भारत के लोकतांत्रिक और समावेशी चरित्र पर सीधा प्रहार है। ऐसे में भाकपा (माले) जैसी ताकतों का विरोध केवल राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा का संघर्ष बन गया है। देश इस संघर्ष को देख रहा है, समझ रहा है – और तय समय पर जवाब भी देगा।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments