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बीजेपी हटाओ, झारखंड बचाओ: CPI(ML)-MCC की एकता रैली में जनता का महा जुटान!

झारखण्ड (पब्लिक फोरम)। 9 सितंबर 2024 को झारखंड के धनबाद गोल्फ ग्राउंड में CPI(ML) और MCC की संयुक्त एकता रैली का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों मजदूर, किसान, छात्र, युवा और महिलाएं शामिल हुए। इस रैली का मुख्य उद्देश्य बीजेपी की फासीवादी सरकार को हटाकर कॉर्पोरेट लूट से देश को बचाने का संकल्प लेना था। रैली में झारखंड में बदलाव की जंग का बिगुल फूंका गया और जनता ने बड़े स्तर पर भागीदारी दिखाई।

रैली को CPI(ML) के महासचिव कामरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने संबोधित किया, जबकि MCC के अध्यक्ष कामरेड आनंद महतो ने रैली की अध्यक्षता की। CPI(ML) झारखंड राज्य समिति के बयान के अनुसार, मोदी सरकार ने देशभर में कॉर्पोरेट हितों के लिए विध्वंसकारी नीतियों का जाल बुन रखा है। छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बाद अब झारखंड को भी इस जाल में फंसाने की कोशिशें की जा रही हैं। 2019 में गैर-बीजेपी सरकार बनने के बाद से ही मोदी प्रशासन राज्यपाल कार्यालय का उपयोग कर झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रहा है।

सरकार की आलोचना करते हुए, CPIML ने कहा कि मोदी ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किसान विरोधी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के विवादित मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को तैनात किया है। चंपाई सोरेन के टूट के मामले से साफ होता है कि बीजेपी सत्ता की लालसा में किसी भी हद तक जा सकती है। प्रवर्तन निदेशालय (ED), केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और राज्यपाल का उपयोग कर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को फंसाने की कोशिश की गई, लेकिन फिर भी बीजेपी राज्य में सत्ता नहीं हथिया पाई।

रैली में झारखंड की स्थिति पर गहरी चिंता जताई गई, जहां मोदी सरकार ने अडानी को दो बड़ी परियोजनाएं सौंपी हैं। गोड्डा पावर प्लांट ने दो प्रखंडों के एक दर्जन से अधिक गांवों को विस्थापित कर दिया है, और पानी की आवश्यकता के कारण गोड्डा का उपजाऊ जिला सूखे की चपेट में आ रहा है। इसी प्रकार, हजारीबाग के बरकागांव में कोयला खनन परियोजना के खिलाफ स्थानीय लोगों द्वारा प्रतिरोध जारी है। अडानी की नजर झारखंड के कीमती खनिजों पर है, और कॉर्पोरेट समर्थित मोदी-बीजेपी सरकार झारखंड पर पूर्ण नियंत्रण करना चाहती है।

बीजेपी की नीतियों के कारण झारखंड में विस्थापन, बेरोजगारी और प्राकृतिक संसाधनों की लूट जारी है। धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, चतरा, लातेहार, दुमका, और पाकुड़ जैसे क्षेत्रों में कोयला खदानें निजी हाथों में दी जा रही हैं। विस्थापित लोग अब भी उचित पुनर्वास और अधिकारों से वंचित हैं। बीजेपी सरकार ने झारखंड के संघीय अधिकारों पर बार-बार हमला किया है, और राज्य की सामाजिक संरचना को साम्प्रदायिकता के रंग में रंगने की कोशिश की है।

2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद बीजेपी की डबल इंजन सरकार ने राज्य की कोयला, लोहा, और लिग्नाइट खदानों की नीलामी शुरू की। रघुवर दास सरकार ने सार्वजनिक भूमि और प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों के हाथों सौंपने की प्रक्रिया तेज कर दी। CNT-SPT एक्ट और विशेष आदिवासी अदालतों को कमजोर करने के प्रयास हुए, जिससे राज्य की आदिवासी जनता और विस्थापितों के अधिकारों पर आघात हुआ।

झारखंड में बीजेपी की नीतियों के कारण आदिवासी, विस्थापित, पारा-शिक्षक, सहिया, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, रसोइये, और किसान सभी पीड़ित रहे हैं। बेरोजगारी दर 18% तक पहुंच गई है, जो राष्ट्रीय औसत से भी दोगुनी है। राज्य में निजीकरण, विस्थापन और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाने का आह्वान किया गया है।

1980 के दशक में झारखंड आंदोलन का केंद्र उत्तरी छोटानागपुर था, जिसमें आदिवासी, मूलवासी, मजदूर और हाशिये पर रहने वाले समुदाय शामिल थे। श्रमिक वर्ग के नेता कामरेड ए.के. राय ने आंदोलन को मजबूत किया। बाद के दशकों में, झारखंड के लोगों और CPI(ML) के संघर्षों ने अलग राज्य की मांग को समर्थन दिया। MCC के नेता कामरेड गुरुदास भूमि माफिया के खिलाफ लड़ाई में शहीद हो गए, जबकि कामरेड महेंद्र सिंह बीजेपी की लूट के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए शहीद हो गए।

आज CPI(ML) और MCC की एकता झारखंड में कॉर्पोरेट फासीवाद के खिलाफ एक नए जन आंदोलन की शुरुआत का संकेत देती है। झारखंड के लोगों ने एक बार फिर बीजेपी की नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है और जनता के इस संघर्ष ने एकता रैली में नए जन उभार की दिशा तय की है।

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