अम्बेडकर जयंती के अवसर पर आइलाज डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व और सभी प्रकार के उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्त एक नए लोकतांत्रिक भारत के निर्माण में उनके योगदान को याद करते हुए उनके सपनों के भारत बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करता है. साथ ही, भारतीय संविधान के मसविदा में मुख्य भूमिका निभाने के अलावा उन्होंने जाति-उन्मूलन, लैंगिक समानता के लिए तरक्कीपसंद निगाह से संघर्ष किया और मजदूर तबके के सहयोगी होने के अलावा डॉ. अम्बेडकर एक उल्लेखनीय वकील भी थे जिन्होंने सबसे अधिक कमजोर व हाशिए पर के लोगों के मुद्दों को आगे बढाया।
आइलाज डॉ अंबेडकर द्वारा लड़े गए कुछ सबसे उल्लेखनीय मुकदमों को याद करता है जो उन्होंने खुद गरीबी, अवसरों की कमी और कानूनी प्रैक्टिस में जातिगत भेदभाव का सामना करते लड़े थे. ये उदाहरण सामाजिक न्याय वकालत के रहनुमा के बतौर सिर्फ डॉ अम्बेडकर के योगदान को याद करना ही नही बल्कि वकीलों के लिए एक नजरिया और रोडमैप भी पेश करना है।
आइलाज उनके द्वारा लड़े गए कुछ उल्लेखनीय मुकदमों को याद करता है. पेशे की शुरुआत में अम्बेडकर ने एक ब्रिटिश कम्युनिस्ट फिलिप स्प्रैट का मुकदमा लड़ा था जिनके ऊपर उनके पैम्फलेट “इंडिया एंड चाइना” के लिए राजद्रोह के अपराध का मुकदमा था. अम्बेडकर ने यह दलील दी थी कि साम्राज्यवाद के बारे में टिप्पणी करना भारत सरकार के प्रति विद्रोह नहीं है और फिलिप स्प्रैट को आरोपित होने से सफलतापूर्वक बचाव किया था।

राजनीतिक मतभेदों के बावजूद मजदूरों और बी टी रणदिवे, अब्दुल मजीद सहितअन्य ट्रेड यूनियन नेताओं की हिफाजत के लिए अंबेडकर की प्रतिबद्धता भी उल्लेखनीय है. इनकी हिफाजत के प्रति राजनीतिक मतभेदों के बावजूद डॉ अम्बेडकर की प्रतिबद्धता नही डगमगाई . हम डॉ. अंबेडकर द्वारा लेखक दिनकर राव जावलकर जिन पर बाल गंगाधर तिलक की मानहानि का मुकदमा था और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर, जिन पर 1926 की पुस्तक “देशचे दुश्मन” में तिलक को देश का दुश्मन कहने के लिए मानहानि के मुक़दमे में सफलतापूर्वक बचाव किया था।
जावलकर ने पुस्तक में तिलक के ब्राह्मणवादी वर्चस्व वाले विचारों पर सवाल उठाया था और तर्क दिया कि ब्राह्मण नेतृत्व स्वतंत्रता को सुरक्षित नहीं रख सकता क्योंकि इसने जनता को विभाजित रखा है और अपने स्वयं के जाति हितों की रक्षा की है। एक अन्य उल्लेखनीय मुकदमे में डॉ अम्बेडकर ने रघुनाथराव धोंडो कर्वे का सफल बचाव किया जिन पर अश्लीलता का आरोप लगाया गया था, क्योंकि उन्होंने यौन स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के वर्जित विषय के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए “समाज स्वास्थ्य” (सामाजिक स्वास्थ्य) पत्रिका प्रकाशित की थी। (अंबेडकर के कानूनी प्रैक्टिस के विस्तृत विवरण के लिए कृपया रोहित डे द्वारा लिखित “लॉयरिंग एज़ पॉलिटिक्स: द लीगल प्रैक्टिस ऑफ़ डॉ. अम्बेडकर, बार-एट-लॉ” देखें।)
आज पहले से कहीं अधिक वकीलों को समाज में अपनी भूमिका पर पुनर्विचार करना चाहिए। हम अत्यधिक गरीबी, सामाजिक और आर्थिक असमानताओं से घिरे हुए हैं। संविधान पर चौतरफा हमला हो रहा है व लोकतंत्र को अवैध करार दिया जा रहा है। दलितों, आदिवासियों, मुसलमानों और ईसाइयों को अधीन करने वाले धर्म को हथियार बनाया जा रहा है। भाईचारा, जिसे डॉ.अम्बेडकर लोकतंत्र की जड़ मानते थे, पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। यह कानूनी पेशे में स्पष्ट रूप से देखा जाता है जहां सामाजिक और आर्थिक असमानता ने कानूनी पेशे को बड़े पैमाने पर ग्रसित कर रखा है।
वंचित समुदायों के वकीलों, विशेष रूप से दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्गों, महिलाओं के साथ-साथ सभी समुदायों की पहली पीढ़ी के वकीलों को कानूनी पेशे में प्रवेश करने, प्रगति करने और सफल होने के लिए एक कठिन लड़ाई का सामना करना पड़ता है। वकीलों का प्रतिनिधित्व करने वाले निकायों के लोकतांत्रिक कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।
इसके अलावा, न्यायपालिका और कानूनी बिरादरी के बीच संबंधों को लोकतंत्रीकरण की आवश्यकता है; न्यायपालिका को कानूनी बिरादरी द्वारा कथित अपराधों पर अवमानना शक्तियों को लागू करने के अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा और इसके बजाय संवाद और सामूहिक कार्यप्रणाली में संलग्न होना होगा। डॉ. अम्बेडकर ऐसी स्थिति में वकीलों की भूमिका पर सीख पेश करते हैं।
सामाजिक न्याय, नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिए निडर होकर खड़े रहने वाले वकील डॉ.अंबेडकर को हम सलाम करते हैं। आइए, वकीलों के बतौर हम अंबेडकर के सामाजिक न्याय वकालत की प्रैक्टिस के रास्ते और संविधान की प्रस्तावना में निहित भारत के बारे उनके विचार को जीवित रखने का संकल्प लें।
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