विषय – मैं और तुम
(पति द्वारा पत्नी को समर्पित)
विधा : अतुकांत पद्य
मैं और तुम,
घर बैठे ये बातें करते
प्रिय वंदिनी भार्या कहती, कि
कुछ लिख दो
दो शब्द मुझ पर,
सब पर लिखते, रचनाओं से उद्बोधित करते
हृदय को सबके, अपने लेखनी पे उतारते,
मैं शब्द नही ढूंढ पाता,
क्या लिखूं, तारीफ करूँ,
कि वैवाहिक कष्टों की भरपाई लिखूं,
कहता न लिख पाऊं तेरे लिए,
मन मस्तिष्क में बस तू ही
समाई।
लिखना चाहूं पर,
मर्यादा न तोड़ना चाहूं,
बात सुन मेरी,
प्रिय मुझसे बोली,
सुना दो कुछ, नया
जो लिखा किसी और पर,
खुश होती, मुस्काती, कमर कस
काम पर लगती,
पर एहसास न कराती मन क्रोध का,
हँसकर मैं भी कहता,
चुटकी, आहें भरकर
सुनाता
लिखे रचनाओं का रस पहुंचाता,
पर स्वयं सहमा, उसके लिए
बस ‘सुन प्रिये, रानी मेरी’ ही
कह पाता।
समझती वो भी, हर वक्त
तानों से मेरी रचित काव्य
का आनन्द लेती,
ज्ञान मुझे कराती,
लिख जाओ कुछ भी दूसरों पर,
पर दिल ममें बसी, ‘मैं’
खुद शब्द पिरोती हूं,
चाहे ‘तुम’ कुछ कहो
या लिखो,
हर जज्बात पर ‘मैं’
और वाणी ‘तुम’
कहते हो।
हँसते हँसते हर रोज,
मेरी रचनाओं की तारीफें करती,
मुँह फुलाये, न चाहे
पर मुस्काये,
दोनों अपने आप पे,
“मैं और तुम”
हृदय समाहित
फिर लग जाते
दोनों दैनिक
विश्राम पे।
रविन्द्र दुबे
कोरबा, छत्तीसगढ़
रविन्द्र की रचना
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