छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के हृदय में स्थित बूढ़ातालाब, जिसे आज स्वामी विवेकानंद सरोवर के नाम से भी जाना जाता है, केवल एक विशाल जलाशय नहीं, बल्कि गोंडवाना जनजाति के गौरवशाली इतिहास और समृद्ध संस्कृति का 600 साल पुराना जीता-जागता प्रमाण है। यह तालाब आज आधुनिकता की चकाचौंध के बीच अपने ऐतिहासिक अस्तित्व को बचाने और अपनी अनकही कहानियों को बयां करने की कोशिश कर रहा है।
इतिहास के पन्नों में बूढ़ातालाब
गोंडवाना साहित्य और ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, इस विशाल तालाब का निर्माण 13वीं-14वीं शताब्दी के बीच गोंड राजा रायसिंह जगत ने करवाया था। कहा जाता है कि राजा रायसिंह अपनी सेना के साथ चांदा और लांजी राज्यों से होते हुए खारून नदी के तट पर पहुंचे थे। इसी दौरान उन्होंने अपनी प्रजा के लिए इस विशाल तालाब को खुदवाने का निर्णय लिया। इस भागीरथी कार्य में 3000 पुरुषों और 4000 महिलाओं ने मिलकर छह महीने तक अथक परिश्रम किया और कई एकड़ों की इस ऐतिहासिक भूमि को खोदकर एक भव्य तालाब का निर्माण किया। इस निर्माण कार्य में हाथियों और बैलों जैसे पशुओं तथा कृषि औजारों का भी भरपूर उपयोग किया गया था।
राजा रायसिंह ने इस तालाब का नामकरण अपने इष्टदेव “बूढ़ादेव” के नाम पर किया, जो गोंडवाना समाज के सर्वोच्च देवता हैं। इसी तालाब के किनारे उन्होंने “रयपुर” नामक नगर बसाया, जो समय के साथ “रायपुर” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तालाब के निर्माण से जुड़े 1402 शिलालेखों की प्राप्ति का भी उल्लेख मिलता है, जिनसे रायपुर और इस तालाब के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलने की बात कही जाती है।
बूढ़ादेव का प्रतीक और गोंडवाना दर्शन
तालाब के बीचों-बीच स्थित एक टापू पर आज भी बूढ़ादेव का प्रतीक स्थापित है, जो इस स्थान के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है। हालाँकि, बाद में इसी टापू पर स्वामी विवेकानंद की 37 फीट ऊँची भव्य प्रतिमा स्थापित की गई और तालाब का नाम विवेकानंद सरोवर कर दिया गया, जिसका आदिवासी समाज द्वारा समय-समय पर पुरजोर विरोध किया जाता रहा है और छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ यह विरोध आज भी जारी है।

तालाब का निर्माण छह महीने में और 12 एकड़ भूमि पर किया जाना भी गोंडवाना जनजाति के गहरे दर्शन की ओर इशारा करता है। गोंडी दर्शन में 12 ग्रहों और 12 राशियों की मान्यता है। साथ ही, कोयापुनेमी व्यवस्था के जनक बाबा पहॉदीपारी कुपार लिंगो ने समाज को 12 सगा घटकों में विभाजित किया था और इसी आधार पर 12 महीनों की संकल्पना की थी।
कंकालीन तालाब का रहस्यमयी सुरंग
बूढ़ातालाब के साथ ही लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर एक और छोटे, कुंडनुमा तालाब का निर्माण करवाया गया था, जिसे कंकालीन तालाब के नाम से जाना जाता है। इस तालाब के बीच में कंकालीन दाई का एक पेन ठाना (देवस्थान) है। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, बूढ़ातालाब और कंकालीन तालाब एक आंतरिक सुरंग के माध्यम से जुड़े हुए हैं। यह भी कहा जाता है कि इस सुरंग में बेशुमार संपत्ति छिपी हो सकती है, जिसे खोजने का प्रयास अंग्रेजी हुकूमत ने भी किया था, लेकिन वे असफल रहे। समय के साथ इस सुरंग का मुहाना मलबे में दब गया है। कंकालीन तालाब का पानी चर्म रोगों को ठीक करने के लिए भी प्रसिद्ध माना जाता है।
आधुनिकता और संरक्षण की चुनौती
आज, 600 साल पुराना यह ऐतिहासिक तालाब शहरीकरण के दबाव और उपेक्षा का सामना कर रहा है। कभी एक वर्ग मील में फैला यह तालाब अब सिमटकर लगभग 32-33 एकड़ का रह गया है। हालांकि, हाल के वर्षों में सरकार और स्थानीय प्रशासन ने इसके सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार के लिए करोड़ों रुपए की परियोजनाएं शुरू की हैं। तालाब के चारों ओर रंगीन लाइटिंग, पाथ-वे, फव्वारे और बच्चों के लिए प्ले एरिया विकसित किए गए हैं। यहां बोटिंग की सुविधा भी उपलब्ध है, जिसमें क्रूज बोट, स्पीड बोट और पैडल बोट शामिल हैं।
इन विकास कार्यों के बीच, इस ऐतिहासिक धरोहर के मूल स्वरूप और इसकी गोंडवाना पहचान को संरक्षित रखने की एक बड़ी चुनौती है। हाल ही में, बूढ़ातालाब में कांसे से बनी बूढ़ादेव की विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित करने की भी योजना बनाई गई है, जिसके लिए पूरे छत्तीसगढ़ से दान स्वरूप कांसा इकट्ठा किया जाएगा। यह कदम इस स्थान के आदिवासी गौरव को पुनः स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
बूढ़ातालाब सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, आस्था और मानवीय श्रम का एक अनमोल संगम है। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इसके गौरवशाली अतीत को समझें और भविष्य के लिए इसे संरक्षित करें, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी गोंडवाना के इस अमूल्य धरोहर पर गर्व कर सकें।
Recent Comments