रायपुर (पब्लिक फोरम)। विश्व आदिवासी दिवस (9 अगस्त) की पूर्व संध्या पर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में माहौल गरमा गया है। सदियों पुराने बूढ़ादेव तालाब का नाम बदले जाने और उसकी देखरेख को लेकर उपजे विवाद ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। गोंडवाना जनजाति समाज ने अपनी ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का आरोप लगाते हुए तालाब का नाम उसके मूल स्वरूप ‘बूढ़ादेव’ के नाम पर बहाल करने की पुरजोर मांग उठाई है। इस मुद्दे को लेकर भूमका बैगा सेवईक समूह ने 9 अगस्त को तालाब पर विशेष पूजा-अर्चना और प्रदर्शन का ऐलान किया है, जिससे यह दिन केवल एक उत्सव न रहकर अधिकार और पहचान की लड़ाई का प्रतीक बन गया है।
विरासत पर संकट: नाम बदलने से उपजा आक्रोश
विवाद का केंद्र रायपुर के हृदय-स्थल में स्थित ऐतिहासिक बूढ़ादेव तालाब है, जिसे अब स्वामी विवेकानंद सरोवर के नाम से जाना जाता है। गोंडवाना समाज के दस्तावेजों और ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, इस तालाब का निर्माण 13वीं-14वीं शताब्दी में गोंडवाना शासक राजा रायसिंह जगत ने करवाया था और इसका नामकरण गोंड समुदाय के आराध्य ‘बूढ़ादेव’ के नाम पर किया गया था। यह तालाब न केवल जल का स्रोत था, बल्कि आदिवासी संस्कृति और आस्था का एक जीवंत केंद्र भी था।
हालांकि, समय के साथ इस ऐतिहासिक तालाब का नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद सरोवर कर दिया गया। आदिवासी संगठनों का आरोप है कि यह उनकी गौरवशाली विरासत को खत्म करने और उनकी पहचान को धूमिल करने की एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। भूमका बैगा सेवईक समूह ने अपने बयान में कहा, “जनजातियों के गौरवशाली इतिहास के साक्ष्यों को मिटाने और बदलने का प्रयास सदियों से निरंतर जारी है। बूढ़ादेव तालाब रायपुर का नाम बदल दिया जाना इसका जीता-जागता उदाहरण है। ऐतिहासिक विरासत और पहचान मिट जाने से हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।”
पूजा पद्धति पर भी विवाद: समिति की संरचना पर भी उठे सवाल
मामला सिर्फ नाम तक ही सीमित नहीं है। तालाब परिसर में स्थित मंदिर की प्रबंधन समिति को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं। भूमका समूह ने दावा किया है कि मंदिर के संचालन के लिए बनी समिति में केवल ब्राह्मण समुदाय के लोग ही हैं, जिन्हें आदिवासी पेन-पुरखा (देव) सेवा पद्धति का कोई भी ज्ञान नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि “बूढ़ादेव के आड़ में वे अपनी आजीविका चला रहे हैं,” जबकि वास्तविक परंपराओं और अनुष्ठानों की अनदेखी हो रही है। यह स्थिति आदिवासी समुदाय के भीतर गहरे असंतोष और पीड़ा का कारण बन रही है, जिन्हें लगता है कि उनके ही आराध्य स्थल पर उनकी ही पूजा पद्धतियों को दरकिनार किया जा रहा है।
9 अगस्त को विशेष “सेवा गोगो” का आयोजन
इस उपेक्षा और अपनी पहचान पर हो रहे हमले के खिलाफ, भूमका समूह ने 9 अगस्त, विश्व आदिवासी दिवस के दिन, सुबह 8 बजे से शाम तक बूढ़ादेव तालाब पर एक विशेष “सेवा गोगो” (पूजा-अर्चना) का आयोजन किया है। इस आयोजन का उद्देश्य जनजातीय आदिवासी समाज के लिए सुख, शांति और समृद्धि की कामना करना है। साथ ही, यह कार्यक्रम तालाब के नामकरण और प्रबंधन के मुद्दे पर सरकार और आम जनता का ध्यान आकर्षित करने का एक माध्यम भी होगा। आयोजकों ने सभी सामाजिक और राजनीतिक संगठनों से अपील की है कि वे इस दिन इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से बूढ़ादेव तालाब का नाम बहाल करने की मांग को जोर-शोर से उठाएं।
एक मानवीय और भावनात्मक अपील
यह विवाद केवल एक तालाब या एक नाम का नहीं है, बल्कि यह एक पूरे आदिवासी समुदाय की अपनी जड़ों, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों के सम्मान को बचाने की लड़ाई है। यह उन अनगिनत आदिवासियों की भावनाओं का प्रतीक है, जो विकास और आधुनिकीकरण की दौड़ में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। बूढ़ादेव तालाब का मुद्दा छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज के लिए एक भावनात्मक और संवेदनशील विषय है, जो अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी विरासत को संरक्षित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर उनकी यह मांग न केवल तार्किक है, बल्कि उनकी आत्मा की आवाज भी है, जिसे अनसुना नहीं किया जा सकता।
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