गुरूवार, नवम्बर 21, 2024
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विनेश फोगाट के अयोग्य ठहराए जाने से सरकार पर उठे सवाल

पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगट के असाधारण प्रदर्शन के बाद, स्वर्ण पदक कुश्ती के मुकाबले में उन्हें अयोग्य ठहराए जाने से देश में फैली नाराजगी उनके साथ अभूतपूर्व एकजुटता में बदल गई है। यह सार्वजनिक आक्रोश आसानी से दरकिनार नहीं किया जा सकता, क्योंकि फोगट कोई साधारण ओलंपियन नहीं हैं और  यह भारत के लिए सिर्फ एक और स्वर्ण पदक गंवाना भर नहीं है। 50 किलोग्राम वर्ग में मात्र 100 ग्राम के कारण उनके अयोग्य ठहराए जाने की चर्चा का एक विशेष संदर्भ है, जिस पर गहन विश्लेषण की आवश्यकता है। इस मुद्दे से निपटने के भारत सरकार के तरीके से भी आम जनता नाराज हैं।

हमें अपने सभी ओलंपियनों पर गर्व है — खासकर महिला खिलाड़ियों पर ; वे पदक के साथ या बिना पदक के भी हमारी संपत्ति हैं। फिर भी, पेरिस ओलंपिक खेलों के लिए क्वालीफाई करने से पहले ही फोगट कई लोगों के लिए खास थीं। अयोग्यता के बाद से उनका साहस और हिम्मत और मजबूत हो गया है।

फोगाट भारतीय महिला खिलाड़ियों के उस संघर्ष का प्रतीक हैं, जो उनके अपने संरक्षकों द्वारा यौन शोषण की व्यापक कुप्रथा के खिलाफ़ चलाया जा रहा है। उन्होंने और उनकी अन्य पदक विजेता साथियों ने भारतीय कुश्ती महासंघ (डबल्यू एफ आई) के घिनौने चेहरे को उजागर करने के लिए अपने उज्ज्वल करियर को जोखिम में डालकर बहुत साहस का परिचय दिया था। पहलवानों ने भाजपा के सबसे शक्तिशाली सांसदों में से एक, कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृज भूषण सिंह का, दृढ़ता से सामना किया था। इन खिलाड़ियों ने उन पर यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना का आरोप लगाया था। जंतर-मंतर पर उनके धरने को देश भर के महिला संगठनों, किसान संगठनों और नागरिक समाज समूहों से भारी समर्थन मिला था। दिल्ली पुलिस को देर से ही सही, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर, सिंह के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज करनी पड़ी।

लेकिन इस लड़ाई की कीमत चुकानी पड़ी। साक्षी मलिक, जो एक ओलंपियन और साथी आंदोलनकारी हैं, ने कुश्ती से संन्यास ले लिया, जबकि फोगट को हर कदम पर दुश्मनी का सामना करना पड़ा। (इसके बाद भी) फोगट ने एक दिन में तीन बेहतरीन पहलवानों को हराकर अपनी ताकत साबित की, जिसमें अपराजित जापानी विश्व चैंपियन युई सुसाकी पर रोमांचक जीत भी शामिल है। लेकिन स्वर्ण पदक पर पक्की दावेदारी की खुशी कुछ ही घंटों बाद निराशा में बदल गई।

देशवासियों के मन में अभी कई सवाल हैं — जिनके संतोषजनक उत्तर दिए जाने की जरूरत है। सबसे पहले, फोगाट ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के तुरंत बाद ही अपने डर को जाहिर कर दिया था। उन्हें डर था कि महिला पहलवानों के यौन शोषण के खिलाफ आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए अधिकारी उन्हें डोपिंग मामले में फंसा सकते हैं।

कंगना रनौत जैसे भाजपा नेताओं द्वारा अपनी पार्टी से छूट पाकर की गई सार्वजनिक टिप्पणियों से फोगट के खिलाफ़ मजबूत आधिकारिक पूर्वाग्रहों की बू आती है। इसके अलावा, खेल मंत्री द्वारा संसद में फोगट के प्रशिक्षण पर खर्च किए गए धन का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करना अरुचिकर था, जबकि देशवासी उनकी अयोग्यता से बहुत दुखी थे और जवाबदेही तय करने की मांग कर रहे थे।

प्रसिद्ध अमेरिकी पहलवान जॉर्डन बरोज़ ने मुकाबलों के कार्यक्रम में एक दिन से दो दिन तक के परिवर्तन को देखते हुए, वजन को नियंत्रित करने वाले तकनीकी नियमों में तत्काल बदलाव का सुझाव दिया है।

जो भी हो, खेल अभी खत्म नहीं हुआ है ; अभी कई मुकाबले होने बाकी हैं। विनेश, आप तकनीकी मुद्दों पर भले ही हार गई हों, लेकिन यह न्याय को नकारने वाली व्यवस्था और उसे पाने की चाहत रखने वाले लोगों के बीच की जंग है। हम सब मिलकर इस जंग को जीतेंगे — न्याय, समानता और आत्म-सम्मान पर आधारित व्यवस्था बनाने के लिए।
(आलेख : जगमती सांगवान, इंद्रजीत सिंह ; अनुवाद : संजय पराते)
(जगमती सांगवान अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की उपाध्यक्ष और पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी हैं। इंद्रजीत सिंह अखिल भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। अनुवादक संजय पराते छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।)

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