CAA के पीछे क्या है?
पूरा देश इन दिनों कोरोना वायरस के दुष्प्रभावों से गुजर रहा है । इस बीमारी से बड़ी संख्या में मौतें हुई। हॉस्पिटलों में दवाओं, ऑक्सीजन और बिस्तरों की कमी से लेकर डॉक्टरों तक की गंभीर कमी सामने आई है।
इस भयानक दौर में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू करने की कवायद शुरू कर दी है मंत्रालय ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश की गैर मुस्लिम शरणार्थियों से आवेदन पत्र आमंत्रित किया है। ज्ञातव्य है कि CAA को संसद की मंजूरी काफी विवादास्पद परिस्थितियों में प्राप्त हुई थी यह बहुत ही दिलचस्प है कि मंत्रालय के द्वारा जारी अधिसूचना में जिन देशों के ऐसे प्रताड़ित अल्पसंख्यकों से आवेदन बुलाए गए हैं जो कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा पंजाब और छत्तीसगढ़ आदि 13 जिलों में निवासरत है। ध्यान देने की बात है कि अधिसूचना में पश्चिम बंगाल और असम में रह रहे शरणार्थियों की कोई चर्चा नहीं है। जबकि इन राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में का मुद्दा प्राथमिकता से उठाया गया था केरल में कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ( आई.यू.एम.ए ) ने सरकार की इस विवादास्पद निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है याचिका में कहा गया है कि नागरिकता अधिनियम के खण्ड 5 (1) (क) से (छ) सह पठित खण्ड 6, धर्म के आधार पर आवेदकों के वर्गीकरण की इजाजत नहीं देता और इसलिए सरकार का हालिया आदेश अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता है खंड 5 (1) (क) से (छ) में रजिस्ट्रीकरण के द्वारा नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदकों की पात्रताओं का वर्णन करता है जबकि खण्ड 6 में देशीयकरण ( नेशनलाइजेशन ) के द्वारा ऐसे व्यक्तियों को देश की नागरिकता देने की बात कही गई है जो अवैध प्रवासी नहीं है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि अगर केंद्र सरकार का यह आदेश लागू कर दिया गया और धर्म के आधार पर लोगों को नागरिकता दे दी गई और उसके बाद अदालत के द्वारा CAA और उसके अधीन जारी इस आदेश को रद्द कर दिया गया तब संबंधित व्यक्तियों से उनकी नागरिकता वापस लेना बहुत मुश्किल होगा। सीएए से संबंधित मामले उच्चतम न्यायालय में लंबित रहने के बाद भी सरकार इसे लागू करने की इतनी जल्दी में क्यों है? इसे समझना मुश्किल नहीं है। दरअसल CAA के बहाने मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए सरकार समस्याएं खड़ी करना चाहती है।
प्रथमतः तो इस बात में संदेह है कि हमारा संविधान नागरिकता प्रदान करने के मामले में धर्म के आधार पर भेदभाव करने की इजाजत देता है। पड़ोसी देशों में प्रताड़ना के शिकार लोगों को नागरिकता देना पूरी दुनिया में आम है। हम सभी जानते हैं कि पाकिस्तान में कई मुस्लिम अल्पसंख्यकों जैसे अहमदियाओं आदि को प्रताड़ित किया जाता है। यह भी आश्चर्य की बात है कि श्रीलंका में प्रताड़ना के शिकार हिंदू तमिलों को CAA के दायरे से बाहर रखा गया है। दुनिया के इस इलाके में जो समुदाय सबसे भयानक प्रताड़ना के शिकार हैं वह है म्यांमार के रोहिंग्या। लेकिन वह भी इस अधिनियम के बाहर कर दिए गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी CAA की कड़ी आलोचना की गई है सीएए के पारित होने के बाद यू एन हाई कमिश्नर मिशेल बैचलेट ने उच्चतम न्यायालय में इस अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक याचिका दाखिल की थी उन्होंने इस अधिनियम की कड़ी आलोचना की थी। इसकी प्रतिक्रिया में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उनकी आलोचना का खंडन करते हुए कहा था कि वे जिस संस्था ( संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ) से जुड़ी हैं वह सीमा पार के आतंकवाद की समस्याओं को नजरअंदाज कर रहा है उन्होंने यह भी कहा गया कि CAA भारत की एक आंतरिक मामला है जो कि देश की प्रभुसत्ता से जुड़ा हुआ है जहां तक प्रभुसत्ता का सवाल है यह स्पष्ट करना जरूरी है कि आज के समय में किसी भी प्रभुसत्ता संपन्न देश के लिए इंटरनेशनल कन्वेंट ऑन सिविल एंड पॉलीटिकल राइट्स आईसीसीपीआर की धारा 26th के अनुपालन में नागरिकता के मामले में गैर भेदभाव का सिद्धांत अपनाना आवश्यक है भारत में सीआईए और एनपीआर का जबरदस्त विरोध हुआ आरंभ में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया में हुए विरोध प्रदर्शन पर सरकार ने जमकर डंडा चलाया पुलिस ने विश्वविद्यालयों के परिसरों के अंदर घुस कर विद्यार्थियों को बेरहमी से पीटा इसके बाद मुस्लिम महिलाओं ने अपना आंदोलन शुरू किया जो भारत के सबसे बड़े सबसे प्रजातांत्रिक और सबसे शांतिपूर्ण आंदोलनों में से एक था शाहीन बाग आंदोलन जल्दी ही देश के अलग-अलग हिस्सों में फैल गया और उसने देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया दिल्ली में हुए दंगे इस आंदोलन को दबाने के प्रयास से कोरोना के प्रसार ने भी इस आंदोलन को प्रभावित किया है।
यह ऐतिहासिक आंदोलन मुस्लिम समुदाय के वर्षों के भरे हुए गुस्से से फट पड़ने का प्रतीक भी था मुसलमानों को सांप्रदायिक हिंसा और गौ मांस के नाम पर चीन चीन के द्वारा और लव जिहाद कोरोनावायरस कई तरह के जिहाद करने के आरोप में समाज के हाशिए पर धकेल दिया गया इस आंदोलन में नागरिकता के मामले में सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ बराबरी का व्यवहार किए जाने की वकालत की या आंदोलन सी ए ए और एन आर सी के खिलाफ सबसे बुलंद प्रजातांत्रिक आवास थी सी ए ए के मामले को अकेले देखना ठीक नहीं होगा गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया था पहले हम नागरिकता संशोधन विधेयक पारित करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि पड़ोसी देशों से भारत आए सभी शरणार्थियों को देश की नागरिकता मिल जाए इसके बाद एनआरसी बनाया जाएगा और हम हमारी मातृभूमि में रह रहे हर एक घुसपैठिए का पता लगाकर उसे देश से बाहर खदेड़ देंगे।
एनआरसी के मामले में असम के अनुभव के बाद हमें इस तरह की कोई भी कवायद करने का इरादा पूरी तरह से त्याग देना चाहिए असम के लोगों के लिए एनआरसी एक अत्यंत ही कष्टकारी प्रक्रिया थी झुग्गी वासियों और ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों के लिए कागजात से सार संभाल करना बहुत मुश्किल होता है इसके बाद भी पूरे राज्य में केवल 95 पॉइंट 500000 लोग ऐसे पाए गए जिनके पास नागरिकता संबंधी दस्तावेज ही नहीं थे दिलचस्प बात यह है कि इनमें से करीब 12 लाख हिंदू थे इस कवायद से भारतीय जनता पार्टी और उसके साथियों के इस दावे की हवा निकल गई कि बांग्लादेश के करीब 5000000 घुसपैठियों असम में रह रहे हैं।
बांग्लादेश से भारत में जो भी पलायन हुआ उसका मुख्य कारण था तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में सेना के अत्याचार कुछ लोगों ने रोजगार पाने के लिए भी पलायन किया इसका कोई अंदाजा नहीं है इन आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों का तकाजा है कि हमारे पड़ोसी देशों में प्रताड़ित किए जा रहे समुदायों को अपने यहां शरण देनी चाहिए अब बांग्लादेश से आर्थिक कारणों से लोगों के भारत में पलायन करने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि बांग्लादेश आर्थिक सूचकांकों पर भारत से काफी आगे निकल गया है। (जनचौक से साभार)
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