बुधवार, फ़रवरी 5, 2025
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प्रकाश कोर्राम: कोयले की धूल में दबे गांव की तकदीर बदलने की उम्मीद; सिरकीखुर्द का संघर्ष और युवा नेतृत्व!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। सिरकीखुर्द गांव की कहानी आज भी हज़ारों भारतीय गांवों की तरह है, जहां “विकास” के नाम पर प्रकृति और आदिवासी समाज की बलि चढ़ा दी गई। 20 साल पहले SECL (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की कोयला खदान ने यहां कदम रखा था। कंपनी ने गांव वालों को रोज़गार, मुआवज़ा और बुनियादी सुविधाओं के सुनहरे वादे किए थे। लेकिन आज, यह गांव प्रदूषण, बेरोजगारी और उजड़े जंगलों की मार झेल रहा है। 

जब वादे हुए धूल-धूसरित
सिरकीखुर्द के लोगों की ज़मीनें अधिग्रहित की गईं, घने जंगलों को काटकर खदानें बनाई गईं। लेकिन कंपनी के वादे “कागज़ी फूल” साबित हुए। अधिकांश परिवारों को न तो पर्याप्त मुआवज़ा मिला, न ही स्थायी रोज़गार। युवाओं के हाथ में अब खेती के लिए ज़मीन नहीं, नौकरी के लिए डिग्री नहीं। गांव की हवा में कोयले की धूल और पानी में ज़हर घुल गया। 

अंधेरे में जलती मशाल: प्रकाश कोर्राम 
इसी उम्मीदों के मरुस्थल में 32 वर्षीय प्रकाश कोर्राम एक क्रांति का नाम बन गए हैं। वे खुद भी उन हज़ारों लोगों में शामिल हैं, जिनकी ज़मीन खदानों की भेंट चढ़ गई। लेकिन प्रकाश ने नियति को चुनौती देते हुए संघर्ष का रास्ता चुना। उनका साफ़ संदेश है: “हम विकास के नाम पर अपना अस्तित्व नहीं खोएंगे।” 
प्रकाश ने सबसे पहले गांव के बेरोजगार युवाओं को संगठित किया। उन्होंने SECL के दफ्तरों से लेकर जिला प्रशासन तक, हर मंच पर भूविस्थापितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। धीरे-धीरे, यह व्यक्तिगत संघर्ष एक जनआंदोलन बन गया। आज सिरकीखुर्द का हर युवा नारा लगाता है: “रोज़गार दो, हक़ दो, सम्मान दो!” 

नेतृत्व की मिसाल
  प्रकाश की निष्ठा और संगठन क्षमता उनके समाजसेवा के इतिहास में झलकती है। वे सर्वआदिवासी समाज युवा प्रभाग, कोरबा के पूर्व महासचिव और वर्तमान में कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। इसके अलावा, गोंडवाना महासभा जैसे संगठनों में उनकी सक्रिय भूमिका ने आदिवासी युवाओं को राजनीतिक चेतना दी है। 

सरपंच पद की उम्मीदवारी: गांव की तकदीर बदलने का संकल्प 

अब प्रकाश ने गांव की सत्ता को बदलने का फैसला किया है। वे सिरकीखुर्द के सरपंच पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। उनका एजेंडा स्पष्ट है: 
1. खदान प्रभावित परिवारों को न्याय दिलाना। 
2. युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर बनाना। 
3. गांव में स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण की व्यवस्था सुधारना। 

गांव की बुजुर्ग महिला सुशीला बाई कहती हैं, “प्रकाश हमारे बेटे की तरह हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि चुप रहना अपराध है।”

चुनौतियां और आशाएं 
प्रकाश का रास्ता आसान नहीं। खदान माफियाओं और सत्ता के गठजोड़ से टकराव तय है। लेकिन गांव के युवाओं का जज्बा बुलंद है। 21 वर्षीय रीना कोर्राम कहती हैं, “हमने अपना जंगल खोया, लेकिन अब हम अपना भविष्य नहीं खोएंगे।” 
सिरकीखुर्द की कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि उस भारत की है जहां विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन की लड़ाई जारी है। प्रकाश कोर्राम जैसे युवा नेता इस लड़ाई में मशाल की तरह हैं। चुनाव नतीजे चाहे जो हों, लेकिन इस गांव ने साबित कर दिया है कि “संगठित समाज ही सच्ची ताकत है।”

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