कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ किसान सभा और रोजगार एकता संघ द्वारा भू-विस्थापित किसानों की लंबित रोजगार मांगों को लेकर एसईसीएल के खदानों के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन शुरू करने की घोषणा की गई थी। 23 अगस्त को कुसमुंडा, गेवरा और दीपका खदानों को बंद कर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई गई थी। हालांकि, आंदोलन से पहले एसईसीएल कुसमुंडा के महाप्रबंधक राजीव सिंह ने भू-विस्थापितों के प्रतिनिधि मंडल के साथ एक बैठक बुलाई, जिसमें आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया गया।
बैठक में भू-विस्थापितों के प्रतिनिधियों, जिनमें प्रशांत झा, दामोदर श्याम, रेशम यादव, बृजमोहन, फणींद्र, माणिक दास, सुमेंद्र सिंह कंवर, कृष्णा, दीना, और रघुनंदन शामिल थे, ने महाप्रबंधक के साथ गहन चर्चा की। महाप्रबंधक राजीव सिंह ने आश्वासन दिया कि 2 सितंबर तक भू-विस्थापितों के लंबित रोजगार प्रकरणों की फाइलों को बिलासपुर मुख्यालय भेजा जाएगा। इस सकारात्मक आश्वासन के बाद, 23 अगस्त के खदान बंद आंदोलन को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। हालांकि, यदि समय पर कार्यवाही नहीं हुई, तो 5 सितंबर को खदान में महाबंद की चेतावनी भी दी गई है।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश संयुक्त सचिव प्रशांत झा ने बैठक में एसईसीएल के अधिकारियों पर आरोप लगाया कि भू-विस्थापितों को रोजगार देने में जानबूझकर देरी की जा रही है। उन्होंने कहा कि जमीन अधिग्रहण के बाद विस्थापितों को रोजगार से वंचित रखा गया है, और सभी खातेदारों को न्याय मिलना चाहिए। महाप्रबंधक राजीव सिंह ने इस पर सहमति जताई और आश्वासन दिया कि 2 सितंबर तक पुराने लंबित मामलों का निपटारा कर फाइलें बिलासपुर मुख्यालय भेज दी जाएंगी।
बैठक के बाद किसान सभा ने अपने रुख को स्पष्ट करते हुए कहा कि भू-विस्थापितों की समस्याओं का समाधान अब अपरिहार्य हो गया है। विकास के नाम पर गांवों और जमीनों से बेदखल किए गए विस्थापित परिवारों की जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है। 40-50 साल पहले कोयला उत्खनन के लिए किसानों की हजारों एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था, लेकिन विस्थापित परिवारों की स्थिति पर ध्यान देने की कोई पहल नहीं की गई है। सरकार और एसईसीएल ने केवल खानापूर्ति के नाम पर कुछ लोगों को रोजगार और बसावट दी है, जबकि अन्य को उनके स्थाई रोजगार के साधन से वंचित कर दिया गया है।
भू-विस्थापित रोजगार एकता संघ के नेता रेशम यादव, दामोदर श्याम, और सुमेंद्र सिंह कंवर ने भी स्पष्ट किया कि वे बिना किसी शर्त के जमीन के बदले रोजगार देने की मांग करते हैं और अपने इस अधिकार के लिए अंतिम सांस तक लड़ने के लिए तैयार हैं। 23 अगस्त के आंदोलन को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है, लेकिन भू-विस्थापितों के हक की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।
इस आंदोलन का स्थगन एक सकारात्मक कदम है, जो कि दोनों पक्षों के बीच संवाद की संभावनाओं को जीवित रखता है। यह मुद्दा केवल रोजगार का नहीं, बल्कि विस्थापित किसानों के सम्मान और उनके भविष्य की सुरक्षा का है। आंदोलन का स्थगन हालांकि तात्कालिक राहत प्रदान करता है, लेकिन 5 सितंबर की चेतावनी इस बात का संकेत है कि अगर समय रहते समाधान नहीं निकला तो स्थिति फिर से गंभीर हो सकती है। सरकारी और संस्थागत ढांचे को चाहिए कि वे इस मुद्दे का समाधान प्राथमिकता के आधार पर करें, ताकि आने वाले समय में टकराव की नौबत न आए और प्रभावित परिवारों को उनका हक मिल सके।
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