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शुक्रवार, जुलाई 25, 2025
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शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यानमाला में उर्मिलेश का उद्बोधन: अंबेडकर सिर्फ दलितों के नहीं, पूरी मानवता के मार्गदर्शक!

मुकेश चंद्राकर के लिए पूनम वासम ने ग्रहण किया लोकजतन सम्मान

कनक तिवारी ने भी दिया विचारोत्तेजक वक्तव्य

रायपुर (पब्लिक फोरम)। “बाबा साहेब आंबेडकर दलितों के नहीं, मानवता के मसीहा थे। उन्हें संविधान सभा का अध्यक्ष गांधीजी की सलाह पर बनाया गया था, जबकि गांधीजी और अंबेडकर की वैचारिकी एकदम अलग थी। इसके बावजूद वे दोनों आधुनिक भारत के निर्माण और उसके लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष भविष्य के बारे में साझा दृष्टिकोण रखते थे। आंबेडकर के बिना संविधान नहीं बन सकता था। वे बहुत कुछ करना चाहते थे, लेकिन वह संभव नहीं था, क्योंकि संविधान सभा में कांग्रेस का बहुमत था। इसके बावजूद आंबेडकर ने एक शानदार संविधान दिया। इस संविधान और इसके बुनियादी मूल्यों की रक्षा करना आज सबसे बड़ी लड़ाई है, क्योंकि आज केंद्र की सत्ता में जो पार्टी है, वह इन मूल्यों को मानने के लिए तैयार नहीं है। ये मूल्य हमारी स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई के दौरान विकसित हुए थे और संघ-भाजपा न केवल इस लड़ाई से दूर थी, बल्कि अंग्रेजी उपनिवेशवाद की समर्थक ही थी।”

उक्त विचार वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कल शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान माला में “लोकतांत्रिक भारत में पत्रकारिता की चुनौतियां” विषय पर बोलते हुए रखे। उन्होंने कहा कि हमारे स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए समझौता और संघर्ष की रणनीति अपनाई। यह हमारी आजादी की लड़ाई का यूनिक फीचर था। इसी संघर्ष के दौरान धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, गणराज्य, सामाजिक न्याय, भाईचारे की आधुनिक अवधारणा का विकास हुआ, जिसे हमारे संविधान में समाहित किया गया। उन्होंने संघ भाजपा के इस दुष्प्रचार का कड़ा प्रतिवाद किया कि हमारे मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द का उल्लेख नहीं था और संविधान के अनुच्छेद 25 (2) (ए) का हवाला देते हुए बताया कि हमारा संविधान किसी भी धर्म को राजधर्म घोषित नहीं करता।

उर्मिलेश ने कहा कि बाबा साहेब ने साफ साफ कहा था कि यदि संविधान को क्रियान्वित करने वाले लोग बुरे होंगे, तो यह संविधान भी बुरा ही साबित होगा। आज जो लोग सत्ता में हैं, वे आज इस संविधान के रहते ही आम जनता को इसके बुनियादी मूल्यों से अलग करने की साजिश रच रहे हैं। जैसे जैसे ये मूल्य कमजोर हो रहे हैं, भारत में लोकतंत्र भी कमजोर हो रहा है और वह लोकतांत्रिक गणराज्य से कॉर्पोरेट राज में बदल रहा है। इसका असर मीडिया और प्रेस पर भी पड़ रहा है। कॉर्पोरेट मीडिया आम जनता के सामने झूठ परोसने का माध्यम बन गया है। वह आरक्षण विरोधी और मंदिर समर्थक हो गया है। उन्होंने जोर दिया कि राष्ट्रवाद वह है, जो जाति और धर्म के ढांचे से बाहर निकलकर देश की जनता को सहनशीलता और सहिष्णुता के आधार पर मोहब्बत करना सीखाता है। लोकतंत्र के इस स्वरूप को मीडिया और समाज में बचाए रखना ही आज की सबसे बड़ी चुनौती है।

उल्लेखनीय है कि यह व्याख्यान माला 24 जुलाई से शुरू होकर 7 अगस्त तक चलेगी। यह पहला दिन था और इसी दिन देश के किसी पत्रकार को पत्रकारिता में उसके उल्लेखनीय योगदान के लिए लोकजतन सम्मान से अभिनंदित किया जाता है। इस समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध ने की। इस वर्ष का लोकजतन सम्मान बीजापुर के शहीद पत्रकार मुकेश चंद्राकर को दिया गया, जो छत्तीसगढ़ में कॉरपोरेट विरोधी पत्रकारिता के आइकॉन थे। मुकेश की ओर से यह सम्मान उनकी बहन और प्रसिद्ध कवियित्री पूनम वासम ने ग्रहण किया। इस अवसर पर सम्मान ग्रहण करते हुए उन्होंने मुकेश की मानवीय खूबियों और उसकी पत्रकारिता के गुणों की विशेष चर्चा की तथा उन्हें पूरे समाज का हीरो बताया।

रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने विस्तार से बताया कि एक छोटे से गांव बासेगुड़ा से निकलकर, झंझावातों का सामना करते हुए, सलवा जुडूम आंदोलन के दौर में विस्थापन और उत्पीड़न का शिकार होते हुए किस तरह मुकेश ने पत्रकारिता जगत में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने बताया कि अपने जीवंत संपर्कों और संबंधों के आधार पर मुकेश ने कई लोगों को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाया। मुकेश में अकेले संघर्ष करने का माद्दा भी था और वे किसी भी सही मुद्दे पर अकेले धरने पर भी बैठ सकते थे। छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता की चुनौती का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पिछली सरकार की तरह इस सरकार में भी पत्रकारों को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है, जो दुर्भाग्यजनक है।

वरिष्ठ अधिवक्ता, लेखक और संविधान विशेषज्ञ कनक तिवारी ने भी इस अवसर पर विचारोत्तेजक वक्तव्य दिया। उन्होंने स्वयं को गांधीवादी-वामपंथी और कॉमरेड बताते हुए कहा कि संविधान में “हम भारत के लोग” संप्रभु हैं, न कि कोई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या अन्य कोई अधिकारी। यह आंबेडकर ही थे, जिन्होंने प्रेस की आजादी को नागरिक आजादी से जोड़ा और उन्होंने ही देश को लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया। उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान प्रेस ने बड़ी कुर्बानियां दी थीं और उस समय गांधीजी सबसे बड़े पत्रकार थे।आज इस पत्रकारिता पर जो खतरा है, वह अजीत अंजुम और हेमंत मालवीय पर हो रहे हमलों के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश में लोकतंत्र और अंबेडकर के संविधान की रक्षा करके ही जन पक्षधर पत्रकारिता को बचाया जा सकता है।

वरिष्ठ फोटो पत्रकार विनय शर्मा के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने और सुदीप ठाकुर, रमेश अनुपम, कमल शुक्ल, सुधीर तंबोली और अरविंद आदि के द्वारा अतिथियों के सम्मान के साथ कार्यक्रम की शुरुआत में लोकजतन के संपादक बादल सरोज ने इसके संस्थापक संस्थापक शैलेन्द्र शैली के देश की राजनीति और जन आंदोलनों को संगठित करने में उनके महत्वपूर्ण योगदान को सामने रखते हुए इस सम्मान और व्याख्यान माला के महत्व का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि मुकेश चंद्राकर वो जुगनू थे, जिनमें घोर अंधकार को तिरोहित करने की क्षमता थी। उनकी शहादत का सम्मान करते हुए लोकजतन स्वयं को सम्मानित महसूस कर रहा है। इस अंधकारपूर्ण दौर में लोकजतन भी जुगनू का ही काम कर रहा है। जनवादी लेखक संघ के राज्य सचिव पूर्णचंद्र रथ ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया। इस अवसर पर मुकेश चंद्राकर के सहयोग से और रौनक शिवहरे तथा प्रसून गोस्वामी के निर्देशन में बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म का भी प्रदर्शन किया गया।

अभी तक डॉ. राम विद्रोही (ग्वालियर), कमल शुक्ला (बस्तर-रायपुर), लज्जाशंकर हरदेनिया (भोपाल), अनुराग द्वारी (भोपाल),  राकेश अचल (ग्वालियर), पलाश सुरजन (भोपाल) आदि प्रमुख पत्रकारों को इस सम्मान से अभिनंदित किया जा चुका है। लोकजतन द्वारा रायपुर में पहली बार इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें बिलासपुर, जगदलपुर, दुर्ग, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जांजगीर, कांकेर, कोरबा से आए पत्रकार और बुद्धिजीवी भारी संख्या में उपस्थित थे।
(लोकजतन की ओर से संजय पराते द्वारा जारी विज्ञप्ति)

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