नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। दिल्ली विश्वविद्यालय के वीर सावरकर कॉलेज (नजफगढ़) के शिलान्यास को लेकर राजनीतिक विवाद ने जोर पकड़ लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को इस कॉलेज का शिलान्यास कर सकते हैं। वहीं, कांग्रेस के छात्र संगठन, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) ने इस पर कड़ा विरोध जताते हुए कॉलेज का नाम पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम पर रखने की मांग की है।
NSUI की तीन प्रमुख मांगें
NSUI ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर तीन प्रमुख मांगें सामने रखी हैं:
1. मनमोहन सिंह के नाम पर एक विश्वस्तरीय कॉलेज: दिल्ली विश्वविद्यालय के भीतर एक ऐसा कॉलेज स्थापित किया जाए, जो पूर्व प्रधानमंत्री के योगदान को समर्पित हो।
2. केंद्रीय विश्वविद्यालय का नामकरण: उनके नाम पर एक केंद्रीय विश्वविद्यालय का निर्माण किया जाए।
3. जीवन सफर को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए: डॉ. सिंह के विभाजन के बाद के संघर्ष से लेकर वैश्विक नेता बनने तक की यात्रा को शैक्षणिक और राजनीतिक पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए।
कांग्रेस का कहना है कि वीर सावरकर के नाम पर कॉलेज का नामकरण करना ऐतिहासिक रूप से विवादास्पद है। कांग्रेस सांसद डॉ. सैयद नसीर हुसैन ने कहा, “देश के स्वतंत्रता संग्राम में कई नेताओं ने अपनी जान कुर्बान की। सरकार उनमें से किसी के नाम पर कॉलेज का नाम रख सकती थी। लेकिन BJP इतिहास के उन नायकों को बढ़ावा दे रही है, जिनकी भूमिका ब्रिटिश राज के समर्थन में थी।”
वीर सावरकर पर राजनीतिक ध्रुवीकरण
वीर सावरकर को लेकर BJP और कांग्रेस के बीच लंबे समय से वैचारिक मतभेद रहे हैं। BJP सावरकर को स्वतंत्रता संग्राम का महानायक मानती है, जबकि कांग्रेस उन्हें ब्रिटिश समर्थक के रूप में देखती है।
यह विवाद अब सियासी रंग ले चुका है। NSUI ने मनमोहन सिंह को याद करते हुए कहा कि उनके नाम पर शैक्षणिक संस्थान का नामकरण करना न केवल उनके योगदान को सम्मान देना होगा, बल्कि यह युवाओं को उनके जीवन संघर्ष और उपलब्धियों से प्रेरणा देगा।
सरकार की चुनौती
सरकार के लिए यह मुद्दा अब एक बड़ी चुनौती बन गया है। क्या कॉलेज का नाम वीर सावरकर के नाम पर ही रखा जाएगा, या NSUI की मांगों को ध्यान में रखते हुए मनमोहन सिंह को यह सम्मान दिया जाएगा? इस पर फैसला आने वाले दिनों में होगा।
यह विवाद केवल एक नामकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में इतिहास और विचारधारा के टकराव को भी उजागर करता है। वीर सावरकर और मनमोहन सिंह, दोनों ही अलग-अलग दौर और धाराओं के प्रतीक हैं। जहां एक ओर वीर सावरकर को हिंदुत्व की विचारधारा से जोड़ा जाता है, वहीं मनमोहन सिंह आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता के प्रतीक माने जाते हैं।
यह विवाद आने वाले दिनों में और गहराने की संभावना है। दोनों दल अपनी-अपनी विचारधारा के समर्थन में खड़े हैं, और इस मुद्दे पर तीखी बहस और नोकझोंक देखने को मिल सकती है।
इस बहस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में ऐतिहासिक नायकों को लेकर धारणाएं कितनी भिन्न हो सकती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले में क्या निर्णय लेती है और यह मुद्दा भारतीय राजनीति को किस दिशा में ले जाता है।
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