कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ की राजनीति में उस वक्त एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया, जब भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम आदिवासी नेता और पूर्व गृह मंत्री ननकीराम कंवर, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई आदिवासी मध्य नगरीय विकास प्राधिकरण की महत्वपूर्ण बैठक से अनुपस्थित रहे। इस हाई-प्रोफाइल बैठक में जहाँ मुख्यमंत्री और कैबिनेट के कई मंत्री मौजूद थे, वहीं कोरबा के सबसे बड़े आदिवासी चेहरे की गैरमौजूदगी ने कई अनकही कहानियों को जन्म दे दिया है। कंवर ने अपनी अनुपस्थिति का कारण प्रशासन द्वारा सम्मानजनक निमंत्रण न देना बताया है, जिससे सरकार और प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लग गए हैं।
जब सम्मान पर आई आंच
एक अनुभवी राजनेता की पीड़ा उनके शब्दों में साफ झलक रही थी। ननकीराम कंवर ने पूरी स्पष्टता से कहा कि उन्हें कोरबा के कलेक्टर अजीत बसंत की ओर से इस महत्वपूर्ण बैठक के लिए न तो कोई सम्मानजनक आमंत्रण पत्र मिला और न ही किसी भी माध्यम से सूचित किया गया। उन्होंने कहा, “जब आपको बुलाया ही न जाए, तो किसी शासकीय कार्यक्रम में जाना उचित नहीं लगता।” यह केवल एक नेता की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि एक वरिष्ठ जनप्रतिनिधि के सम्मान का भी सवाल है, जिसने अपना जीवन इसी क्षेत्र के लोगों के लिए समर्पित कर दिया।
आदिवासियों के विकास की बैठक, और उन्हीं का नेता बाहर
इस घटना का सबसे दुखद पहलू यह है कि यह बैठक विशेष रूप से आदिवासी वर्ग और क्षेत्र के विकास के लिए बुलाई गई थी। श्री कंवर ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा, “यह कार्यक्रम आदिवासियों के उत्थान के लिए था, लेकिन मुझे ही इससे दूर रखा गया। इससे प्रशासन की कार्यशैली और सरकार की मंशा को आसानी से समझा जा सकता है।” उनकी यह पीड़ा सिर्फ उनकी अपनी नहीं है, बल्कि यह उस आदिवासी समाज की आवाज भी है, जिसे लगता है कि उनके सबसे बड़े नेता को ही नजरअंदाज किया जा रहा है।
प्रशासन और आदिवासी नेता के बीच बढ़ती खाई
ननकीराम कंवर की नाराजगी और बैठक से उनकी दूरी ने कोरबा में प्रशासन और वरिष्ठ नेताओं के बीच चल रहे तनाव को सतह पर ला दिया है। यह घटना इस बात का संकेत है कि सरकार और उसके अपने वरिष्ठ नेताओं के बीच संवाद की कमी है। कंवर की अनुपस्थिति ने न केवल स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी दर्शाया है कि कैसे एक छोटे से प्रशासनिक प्रोटोकॉल की अनदेखी एक बड़े राजनीतिक विवाद का कारण बन सकती है। यह मामला अब सिर्फ एक बैठक तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सरकार और आदिवासी समाज के बीच के रिश्ते की एक परीक्षा बन गया है। इस घटना ने राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा छेड़ दी है कि क्या पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक है और क्या प्रशासन वरिष्ठ नेताओं के सम्मान और अनुभव को महत्व दे रहा है।
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