पहलगाम (पब्लिक फोरम)। जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पर्यटन स्थल पहलगाम में मंगलवार को हुए एक दिल दहलाने वाले आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस जघन्य हमले में कई बेगुनाह पर्यटकों की जान चली गई, जबकि कई अन्य गंभीर रूप से घायल हुए हैं। यह घटना न केवल मानवता पर हमला है, बल्कि कश्मीर में सामान्य स्थिति के दावों की कड़वी हकीकत को भी सामने लाती है। हम इस दुखद घड़ी में मृतकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं।
क्या हुआ पहलगाम में?
22 अप्रैल की दोपहर, जब पहलगाम की वादियां पर्यटकों की चहल-पहल से गूंज रही थीं, अचानक आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। यह हमला इतना अप्रत्याशित और क्रूर था कि मासूम पर्यटक, जो प्रकृति की गोद में सुकून तलाशने आए थे, अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावरों ने बिना किसी भेदभाव के लोगों पर गोलियां चलाईं। सुरक्षाबलों ने त्वरित कार्रवाई करते हुए जवाबी हमला किया, लेकिन तब तक कई जिंदगियां छिन चुकी थीं।
कश्मीर में शांति की राह में बाधा
यह हमला कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल होने के दावों पर एक बड़ा सवालिया निशान है। केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन बार-बार दावा करते रहे हैं कि घाटी में शांति और स्थिरता कायम हो रही है। लेकिन हाल के महीनों में आम नागरिकों, प्रवासी मजदूरों और अब पर्यटकों पर लगातार हो रहे हमले इन दावों की पोल खोल रहे हैं। भारी सैन्य उपस्थिति के बावजूद आतंकी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।
केन्द्रीय कमेटी, भाकपा (माले) लिबरेशन ने अपने बयान में कहा, “यह हमला मोदी सरकार की नीतियों की विफलता को दर्शाता है। कश्मीर में लोकतांत्रिक आवाजों का दमन और आक्रामक बयानबाजी शांति की राह में सबसे बड़ी बाधा बन रही है।” जानकारों का मानना है कि कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए केवल सैन्य उपाय पर्याप्त नहीं हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास जीतना और उनकी समस्याओं का समाधान करना भी उतना ही जरूरी है।
मानवीय दृष्टिकोण: एक परिवार की त्रासदी
इस हमले ने कई परिवारों को हमेशा के लिए तोड़ दिया। दिल्ली से पहलगाम घूमने आए रमेश शर्मा (बदला हुआ नाम) ने बताया, “हम अपनी बेटी की शादी की खुशी में पहलगाम आए थे। लेकिन अब हमारी बेटी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है।” ऐसी कहानियां सुनकर हर भारतीय का दिल दहल उठता है। ये पर्यटक न केवल कश्मीर की खूबसूरती का आनंद लेने आए थे, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर रहे थे। लेकिन इस हमले ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया।
क्या कहते हैं आंकड़े?
पिछले एक साल में जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों की संख्या में कमी जरूर आई है, लेकिन इस तरह की बड़ी घटनाएं घाटी में अस्थिरता की गंभीरता को दर्शाती हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024 में कश्मीर में 50 से अधिक आतंकी हमले दर्ज किए गए, जिनमें दर्जनों नागरिक और सुरक्षाकर्मी शहीद हुए। पहलगाम जैसे पर्यटन स्थलों पर हमले न केवल स्थानीय पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि कश्मीर की छवि को भी धूमिल करते हैं।
सावधानी और एकजुटता की जरूरत
इस दुखद घटना के बाद देश में कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कुछ लोग इसे साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, जो घाटी के लिए और भी खतरनाक साबित हो सकता है। भाकपा (माले) ने अपने बयान में चेतावनी दी है कि “हमें युद्धोन्मादी और विभाजनकारी ताकतों से सावधान रहना होगा।” यह समय एकजुट होने का है, न कि समाज को बांटने का।
अब क्या है आगे की राह?
कश्मीर में शांति और स्थिरता के लिए सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। विशेषज्ञों का सुझाव है कि:
– स्थानीय युवाओं को रोजगार और शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाएं।
– कश्मीरी लोगों की शिकायतों को सुनने के लिए एक प्रभावी तंत्र स्थापित हो।
– पर्यटन स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया जाए।
– आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई के साथ-साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाए।
पहलगाम का यह आतंकी हमला केवल एक घटना नहीं, बल्कि कश्मीर में गहरे जड़ें जमाए बैठी समस्याओं का प्रतीक है। यह हम सभी के लिए एक चेतावनी है कि शांति की राह आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। इस मुश्किल घड़ी में हमें एकजुट होकर न केवल आतंकवाद के खिलाफ लड़ना है, बल्कि उन कारणों को भी दूर करना है जो इसे जन्म देते हैं। आइए, हम सब मिलकर कश्मीर को फिर से वह स्वर्ग बनाएं, जो कभी इसकी पहचान हुआ करता था।
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