रायपुर (पब्लिक फोरम)। विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार आगामी 18 फरवरी 2023, शनिवार, महाशिवरात्रि दिन के दिन विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन मिलकर एक पद यात्रा निकालने जा रहे हैं, जिसे “हिंदू स्वाभिमान जागरण संत पदयात्रा” का नाम दिया गया है। इस पूरी यात्रा में देशभर से 500 से ज्यादा संत जुटेंगे, जो छत्तीसगढ़ की अलग-अलग जगहों से यात्राएं निकालेंगे।

उसके बाद 19 मार्च को रायपुर में एक बड़ी धर्म सभा का आयोजन किया जाएगा। धर्म सभा के मौके पर संत भारत को संवैधानिक रूप से हिंदू राष्ट्र घोषित करने की अपील करेंगे। इस यात्रा के माध्यम से हिन्दुत्व जागरण, हिंदुओं को जोड़ने के साथ-साथ ही मतांतरण और धर्म विरोधियों के विरुद्ध अभियान चलाया जाएगा। पदयात्रा मे मतांतरण और लव जिहाद के खिलाफ आवाज़ बुलंद होगी।
उपरोक्त पदयात्रा के संदर्भ मे पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीस (छत्तीसगढ़), छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति तथा छत्तीसगढ़ प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलाएन्स के द्वारा संयुक्त रूप से प्रदेश के 20 से अधिक वाम जनवादी एवं नागरिक संगठनों के साथ मिलकर, जिला दंडाधिकारी, जिला रायपुर के माध्यम से मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन को ज्ञापन सोंपा गया।
ज्ञापन मे कहा गया है कि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस प्रकार के आयोजनों का लक्षित उद्देश्य न केवल प्रदेश के सामजिक सौहार्द को बिगाड़ना वरन प्रदेश में शांति व्यवस्था के लिए भी संकट उत्पन्न करना रहा है। यह विशुद्ध रूप से एक धर्म विशेष का प्रचार-प्रसार नही बल्कि एक लक्षित राजनितिक उद्देश्य से कानून व्यवस्था और संविधान के मूल आधारों पर ही आघात पँहुचाने का प्रयास है। इसलिए छत्तीसगढ़ जैसे शांतिपूर्ण प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही इस किस्म की गतिविधियाँ तेजी से ही बढ़ रहीं है, जो प्रदेश के सभी धर्मों के मानने वाले शांतिप्रिय नागरिकों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के साथ ही प्रदेश मे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बड़ा है। वर्ष 2018 मे राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद से दक्षिणपंथी सांप्रदायिक संगठन ईसाई अल्पसंख्यको विशेषकर ईसाई आदिवासियों के खिलाफ लगातार अधिक सक्रीय हुये है। प्रदेश में ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ वर्ष 2022 मे हिंसा व प्रताड़ना की 100 से अधिक घटनाये घटित हुयी हैं।
विगत नवम्बर व दिसम्बर माह में नारायणपुर, कोंडागांव व कांकेर जिलों मे ईसाई आदिवासियों के खिलाफ हिंसा, प्रताड़ना व सामाजिक बहिष्कार की 60 से अधिक घटनाएं हुई हैं। विगत दिसम्बर माह में नारायणपुर जिले के लगभग 2,000 प्रभावित ईसाई आदिवासियों को बलपूर्वक अपने गाँवों से भागने के लिए मजबूर किया गया।
प्रभावित जिलों के अधिकारियों के मुताबिक इस पूरे क्षेत्र में छल, बल या धन के माध्यम से धर्मांतरण का एक भी मामला सामने नहीं आया है। इसलिये इस साल के अंत में राज्य विधानसभा के चुनाव के कार्यक्रम को देखते हुए स्पष्ट रूप से ऐसी पदयात्राओं के पीछे एक सुनिश्चित राजनीतिक एजेंडा है।
आशंका है कि इस पदयात्रा की आड़ मे घृणित और भड़काऊ भाषणों, झूठी सूचनाओं और अफवाहों और सांप्रदायिक प्रचार का उपयोग करके सांप्रदायिक तनाव को भड़काने की कोशिश की जा सकती है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां सहिष्णुता, विविधता, गरिमा, समानता, बंधुत्व और न्याय के मूल्य भारतीय संविधान में गहराई से निहित हैं। जबकि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ बनाने और सभा करने की संविधान के तहत मौलिक स्वतंत्रता की गारंटी है, इन स्वतंत्रताओं का प्रयोग करने की आड़ में नफरत फैलाने वाली भाषा तथा सांप्रदायिक घृणा और हिंसा को उकसाने का अपराध नहीं किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ राज्य में समन्वयवाद और धर्मनिरपेक्षता का एक लंबा इतिहास रहा है, जहां विभिन्न समुदायों ने सौहार्दपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व बनाये रखा है। पहले भी राज्य को साम्प्रदायिक बनाने और हिंसा भड़काने के प्रयासों के लोगों पर विनाशकारी परिणाम हुए हैं। इसे पुनः होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
पूरे प्रदेश मे सांप्रदायिक सौहाद्र, सामाजिक शांति व बंधुत्व की भावना बहाल करने व बड़ाने हेतु शासन के स्तर पर गंभीर प्रयास किया जाना आवश्यक है, जिसमे विभिन जन संगठनों, नागरिक व सामाजिक संगठनों का भी सहयोग लिया जाये।
यह सुनिश्चित करना राज्य शासन की जिम्मेदारी है कि, नफरत फैलाने वाली भाषा को रोका जाए और दोषियों को दंडित किया जाए, बजाय इसके कि उन्हें दण्डमुक्ति और खुली छूट दी जाए।
ज्ञापन के माध्यम से संविधानसम्मत कानून के राज की रक्षा, सभी धर्मावलम्बियों की सुरक्षा तथा लोक शांति बनाए रखने के लिए, मुख्यमंत्री से इस पूरे मामले का संज्ञान लेकर, तत्काल शासन एवं प्रशासन के स्तर पर उचित कार्यवाही का आग्रह किया गया है.
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