प्यार करने से ही प्यार बढ़ता है और नफ़रत से नफ़रत ही बढ़ती है। दरअसल हम सभी होमोसैपिएंस की संतानें हैं और मानव हमारी जाति और मानवता ही धर्म है। बाकी तमाम जातियों और धर्मों की बातें केवल बकवास हैं, बेमानी हैं। हमें जातियों और धर्मों में बॉटने का काम कुछ धूर्त और हैवानियत के पुजारी जाति-धर्म के ठेकेदारों (पादरियों, मौलवियों, पुरोहित-पुजारियों और तमाम धर्मों के ठेकेदारों) ने किया है ताकि हम जाति-धर्म के नाम पर आपस में लड़ते रहें, एक-दूसरे से नफ़रत करते रहें और इन धूर्तों को अपना मसीहा समझकर पूजते रहें और इनकी चरणवंदना करते रहें।
हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि प्रकृति ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। ०धरती ने सभी को निरपेक्ष भाव से धारण किया हुआ है। ०जल कभी जाति-धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता, वह निस्पृह भाव से सभी की प्यास बुझाता है, मेह सभी पर बराबर बरसता है। ०पावक अर्थात् आग कभी जाति और धर्म नहीं देखता, भोजन पकाने में हम सभी की समान भाव से मदद करता है। आग किसी को जाति-धर्म के आधार पर नहीं जलाता। ०आकाश सबके लिए समान रूप से पूरी तरह खुला हुआ है। और ०हवा सबके लिए बराबर उपलब्ध है। पूरी मानव जाति या अन्य जीव-जंतुओं को प्राणवायु हवा से ही मिलती है। प्रत्येक मनुष्य को जीवन के लिए ऑक्सीजन चाहिए। दुनिया का कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं जिसे ऑक्सीजन की ज़रूरत न पड़ती हो। बरगद पीपल, नीम के वृक्ष बिना भेदभाव किए हम सभी को ऑक्सीजन देते हैं। सूर्य सबको बराबर प्रकाश देता है और उसकी तपिस भी सभी को बराबर महसूस होती है। चंद्रमा सभी को धवल रोशनी और शीतलता प्रदान करता है। पेड़ किसी को जाति-धर्म के आधार पर छाया व फल नहीं देते।
फिर हम मनुष्यों में भेदभाव कहाँ से उत्पन्न हो गया?
दुनिया का हर मनुष्य अपनी मॉ के गर्भ में लगभग नौ महीने पलता है और हर एक की पैदाइश योनि से होती है। कोई भी ऐसा नहीं जो अन्य किसी रास्ते से पैदा हुआ हो। दुनिया के तमाम मनुष्य के जीवनकाल में जीवन की तमाम प्रक्रियाओं में भी कोई अंतर नहीं है। इसीलिए संत कबीर ने सैकड़ों साल पहले हिंदू-मुस्लिम के नाम पर आपस में झगड़ने और नफ़रत फैलाने वालों को फटकारते हुए कहा था:
“जो तू बाम्हन-बाम्हनी जाया, अन्य बाट से क्यों नहि आया?
जो तू तुरक-तुरकिनि जाया, भीतर खतना क्यों न कराया?
उन्होंने दोनों को फटकारते हुए यह भी कहा–
“पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहाड़।
तासे तो चक्की भली, पीस खाय संसार।
धर्म कभी हमें मानव होने या मानवता का अहसास नहीं कराता। वह हमेशा यही कहता है कि तुम हिंदू हो, तुम ईसाई हो, तुम मुसलमान हो, तुम सिख हो, जैन हो, बौद्ध हो, पारसी हो आदि आदि…। वह कभी मनुष्य को दुनिया के तमाम मनुष्यों से प्यार करना नहीं सिखाता, क्योंकि धर्म और उसके ठेकेदार जानते हैं कि लोग मनुष्य और मानवता को सर्वोपरि मान एक-दूसरे से प्यार करने लगेंगे तो उनकी दुकानदारी तो पूरी तरह चौपट हो जाएगी, फिर उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा का क्या होगा? फिर तो उनकी श्रेष्ठता जाती रहेगी और देवत्व मिट्टी में मिल जाएगा! फिर उन्हें पूजेगा कौन?
इसीलिए धर्म हमें एक-दूसरे से प्यार करने, भाईचारा रखने रोकता है। वह हमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और विभिन्न धर्मों में बॉटकर कहता है कि अमुक धर्म तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन है। वह हमें नफ़रत की ऐसी-ऐसी घुट्टी पिलाता है कि हम इंसान बने रहने के बजाय हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,…. आदि आदि बने रहें। कोई भी धर्म का ठेकेदार (पादरी, मौलवी, पंडित,….) कभी यह नहीं कहता कि हम सब मनुष्य हैं और मानव प्रजाति की संतानें हैं। कभी यह नहीं बताता कि मानव–मानव एक समान हैं और हमारा असली दुश्मन कोई जाति या धर्मविशेष नहीं, बल्कि उनके ठेकेदार ही असली दुश्मन हैं। यह नहीं बताता कि हमारे असली दुश्मन वे धन-कुबेर या सरमाएदार और इज़ारेदार हैं जिन्होंने हमारे श्रम को लूटकर हमें कंगाल बनाए रखा है।
मनुष्य पहले केवल मनुष्य ही था, लेकिन जब से मनुष्य ने जाति और धर्म के इन धूर्त ठेकेदारों के बहकावे में आकर खुद को मनुष्य और मनुष्यता की ज़मात से अलग कर अपने को हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,…आदि आदि कई धर्मों से जोड़ रखा है और धर्म के इन धूर्त ठेकेदारों को अपना गुरू, अपना मसीहा और अपना आदर्श मानना शुरू किया है तभी से मनुष्य फिर से हैवान बनने के रास्ते पर चल पड़ा है जहाँ उसे नफ़रत, मार-काट, खून-खराबा और ज़हालत के सिवाय कुछ न मिलेगा। अगर उसे फिर से मनुष्य बनना है तो उसे हैवानियत के उस रास्ते को त्यागना होगा और दुनिया की सारी मनुष्य जाति से बेपनाह प्यार करना होगा। उसे यह समझ विकसित करनी होगी कि वह केवल मनुष्य है, बाकी कुछ भी नहीं। उसे यह तय करना होगा कि उसे अमन-चैन, सुख-शांति और मानव जाति की समृद्धि व खुशहाली चाहिए या फिर नफ़रत, मार-काट और ज़हालत भरी जिंदगी। उसे यह अच्छी तरह समझ लेना होगा कि कौन सा रास्ता सही है और कौन सा गलत।
यह तो तय है कि नफ़रत, भेदभाव, मारकाट व एक-दूसरे को मिटाकर खुद को श्रेष्ठ बताकर खुद की सत्ता स्थापित करने की चाहत न तो हमें मनुष्य बने रहने देगी और न ही सुख-शांति व भाईचारे को फलने-फूलने देगी। किसी को तबाह कर उसकी क़ब्र पर विकास के सोपान कभी भी नहीं गढ़े जा सकते। जिस तरह बाग में एक ही तरह के फूलों से उसके सौंदर्य में निखार नहीं आता, उसका सौंदर्य निष्प्रभ ही रहता है। तरह-तरह के फूलों और उनके गंधों से ही बाग़ के सौंदर्य में निखार आता है। ठीक उसी तरह यह दुनिया भी है। किसी को मिटाकर या ज़मीदोज़ कर अपनी इबारत लिखने की सोच मनुष्य की कभी हो ही नहीं सकती। यह सोच केवल हैवानों की हो सकती है।
अगर किसी को खत्म कर अपनी सत्ता निष्कंटक कायम रखने, सुख-शांति व समृद्धि का अचूक फार्मूला होता तो यह धरती अनेकों बार लहूलुहान नहीं होती। एक बार सत्ता स्थापित होने के बाद वह अज़र और अमर हो जाती। और सचमुच ऐसा होता तब तो पूरी दुनिया में केवल एक ही कौम का राज चलता, एक ही हुकूमत चलती, लेकिन ऐसा नहीं है। इतिहास गवाह है कि दुनिया के अनेक इलाकों में कई क्रूर आक्रांताओं ने लूटपाट की, मारकाट मचाया और लोगों में दहशत फैलाकर अपनी सत्ता निष्कंटक बनाने की कोशिश की, लेकिन वे यह भूल गए कि उनकी यह कोशिश नेकनीयती पर नहीं, बदनीयती पर कायम थी, जो कभी निष्कंटक हो ही नहीं सकती थी। और यही कारण है कि कालांतर में उसे तबाह होते देर नहीं लगी। आज इतिहास के पन्नों में दर्ज़ ऐसे अनेक क्रूर आक्रांताओं के नाम तो हैं, लेकिन उन पर गर्व करने लायक कोई निशानदेही नहीं बची है। आज लोग ऐसे लोगों को लेकर फिकरे कसते हैं।
पूंजीपति भी श्रम की लूट को जायज ठहराने के लिए जाति और धर्म का सहारा लेता है और पूंजीवादी लूट-झूठ, शोषण-दमन पर कायम सत्ता भी उसी के सहारे लोगों को लंबे समय तक मूर्ख बनाए रखती है। पूंजीवादी सत्ता हमेशा यह कोशिश करती है कि लोग ज्यादा शिक्षित न हों, उनमें वैज्ञानिक व तार्किक समझ का विकास न हो, लोग राजनीतिक समझ से परे ही रहें और जाति-धर्म के बखेड़ों में उलझे रहें, उनमें अंधविश्वास बना रहे और हर तरह की आपदाओं को दैवीय या ईश्वरीय प्रकोप और खुद की नियति मानकर सरकार को घेरने व उस सवाल खड़े करने के बजाय चुपचाप ज़हालत भरी जिंदगी जीते रहें।
इसलिए, साथियों आइए हम आपस में प्यार व भाईचारे को बढ़ावा दें। हर तरह की नफ़रतों और नफरत फैलाने वालों से दूर रहें। धर्म और जाति के नाम पर नफ़रत फैलाकर वोटों का ध्रुवीकरण करने और एन-केन-प्रकारेण महज़ सत्ता हासिल करने की कोशिश करने वाले वहशी दरिंदों को बिल्कुल अलग-थलग और उपेक्षित करें। आइए, हम एक बेहतर मानव समाज बनाने के लिए दृढ़ संकल्प लें और हर सामाजिक विद्रूपताओं व शोषण, दमन, लूट-झूठ के खिलाफ एकजुट होकर आवाज़ बुलंद करें।
–श्याम लाल साहू
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