रायपुर/कोरबा (पब्लिक फोरम)। राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील पहल करते हुए प्रदेश भर में जनजातीय सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी किया है। इस सर्वे का उद्देश्य आदिवासी समुदाय की वास्तविक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति का गहराई से मूल्यांकन करना है ताकि उनके जीवन को बेहतर बनाने वाली योजनाएं जमीनी हकीकत के अनुरूप बनाई जा सकें।
राज्य के सामाजिक न्याय एवं आदिवासी कल्याण विभाग द्वारा इस संबंध में सभी जिलों के कलेक्टरों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं। यह सर्वे जनजातीय समुदाय के जीवन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और पारंपरिक संसाधनों से जुड़े अहम बिंदुओं पर केंद्रित होगा।
जनजातीय समुदाय के लिए क्यों है यह सर्वे जरूरी?
राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में लंबे समय से यह महसूस किया जा रहा था कि नीतियों और योजनाओं का लाभ अधिकांश लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है, क्योंकि वास्तविक आंकड़े और जरूरतें दर्ज नहीं हो सकीं। इस सर्वे के माध्यम से सरकार पहली बार आदिवासी समुदाय की जमीनी परिस्थिति, समस्याएं और संसाधनों तक पहुंच का व्यापक दस्तावेज तैयार करने जा रही है।
यह पहल न केवल एक नीति निर्माण का आधार बनेगी, बल्कि यह आदिवासी समाज के सशक्तिकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम भी साबित हो सकती है।
क्या-क्या होगा सर्वे में शामिल?
सर्वेक्षण के दौरान निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा:
पारंपरिक जमीन और जल-जंगल-जमीन पर अधिकार की स्थिति।
शिक्षा की पहुंच और ड्रॉपआउट दर।
स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और पोषण स्तर।
आवास, पेयजल, शौचालय और बिजली की स्थिति।
पारंपरिक रोजगार और आजीविका के स्रोत।
सांस्कृतिक पहचान, रीति-रिवाज और जीवनशैली।
इस सर्वे में स्थानीय ग्राम पंचायतों, जनप्रतिनिधियों और स्वयंसेवी संगठनों को भी सहभागी बनाया जाएगा ताकि आंकड़े सटीक और भरोसेमंद हों।
संवेदनशीलता और विश्वास की नींव पर होगा कार्य
राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह सर्वे पूर्णतः संवेदनशील और गैर-राजनीतिक तरीके से किया जाएगा। इसमें जनजातीय समुदाय की गोपनीयता और सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाएगा। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे सहज, संवादपूर्ण और मानवीय दृष्टिकोण अपनाएं ताकि समुदाय के लोग निःसंकोच होकर अपने अनुभव साझा कर सकें।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता?
जनजातीय मामलों के विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका मानना है कि यदि यह सर्वे ईमानदारी से किया गया, तो यह आदिवासी समाज के लिए एक सामाजिक दस्तावेज बन सकता है, जो उनकी समस्याओं को नीति निर्माताओं तक सही तरीके से पहुंचा पाएगा।
सामाजिक कार्यकर्ता मीरा बाई नेताम कहती हैं, “यह पहल केवल एक आंकड़ा संग्रहण नहीं है, यह हमारी पहचान और अधिकार की दस्तावेज़ीकरण है। उम्मीद है कि इसे सही दृष्टिकोण और गंभीरता से अंजाम दिया जाएगा।”



भरोसे का पुल, विकास की राह
यह जनजातीय सर्वे न केवल एक प्रशासनिक कवायद है, बल्कि यह आदिवासी जीवन को समझने और सुधारने की संवेदनशील कोशिश है। इससे मिलने वाली जानकारी जनजातीय समाज के सशक्तिकरण, संरक्षण और समावेशन की दिशा में उपयोगी सिद्ध होगी।
यदि इसे ईमानदारी, मानवीय संवेदना और सामाजिक दृष्टि के साथ अंजाम दिया गया, तो यह सर्वे भविष्य में राज्य के विकास मॉडल को जनजातीय केंद्रित और समावेशी बनाने में मील का पत्थर साबित होगा।
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