नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ संख्याबल के आधार पर सदन में सरकार को चुनौती देने की स्थिति में पहुंच गया है, लेकिन उसके सामने आंतरिक चुनौतियां भी कम नहीं हैं। क्षेत्रीय दलों के बीच अपना प्रभाव और अस्तित्व साबित करने की प्रतिस्पर्धा के मध्य, विपक्षी समूह का पहला परीक्षण लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव में होगा। उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में शामिल न किए जाने पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की असंतुष्टि ने विपक्षी एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने इस मुद्दे पर अपनी पार्टी के रुख के बारे में पूछे जाने पर कहा कि अंतिम निर्णय ममता बनर्जी लेंगी। उन्होंने आगे कहा, “दुर्भाग्यवश, यह एकपक्षीय निर्णय था। किसी ने भी इस बारे में टीएमसी से परामर्श नहीं किया।” हालांकि, ‘इंडिया’ गठबंधन के अन्य दलों ने इस मामले में कोई विरोध या असहमति नहीं जताई।
टीएमसी को मनाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संसद परिसर में अभिषेक से बातचीत की। जब उनसे इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने केवल “जय संविधान” कहकर जवाब दिया।
सूत्रों का कहना है कि अगर टीएमसी समर्थन के बजाय तटस्थ रहती है, तो इसका सीधा लाभ सत्तापक्ष को मिलेगा। इस स्थिति से बचने के लिए विचार-विमर्श जारी है। उल्लेखनीय है कि जब के. सुरेश ने लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया, तब टीएमसी का कोई भी नेता हस्ताक्षर करने के लिए उपस्थित नहीं था। शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद अरविंद सावंत ने कहा, “हम महा विकास आघाड़ी (एमवीए) के साथ हैं।”
सूत्र बताते हैं कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को फोन करके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार ओम बिरला के लिए समर्थन मांगा है। विपक्षी दलों के अलावा, एनडीए निर्दलीय सदस्यों के माध्यम से भी अपनी संख्या बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।
विपक्षी गठबंधन की एकजुटता परीक्षा: लोकसभा स्पीकर चुनाव में टीएमसी की नाराजगी से उभरी चुनौतियां
RELATED ARTICLES
Recent Comments