कोरबा (पब्लिक फोरम)। पुरानी चीजों का महत्व कभी नगण्य नहीं होता, और वे अपनी उपयोगिता साबित ही करती हैं। यही साक्ष्य है विकासखंड कोरबा के जूनाडीह बरपाली का, जहां बारिश के मौसम में पुराना प्राथमिक शाला भवन विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए सहारा बना हुआ है। कारण? लाखों की लागत से बने नए भवन में छत से पानी रिसने की समस्या उत्पन्न हो गई है।
वर्षों से संचालित प्राथमिक शाला भवन में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने और भवन से जुड़ी समस्याओं को देखते हुए इसका उपयोग बंद कर दिया गया था। लेकिन, पुराने भवन का अस्तित्व अभी भी कायम है। बारिश के सीजन में यह भवन अपनी मजबूती साबित कर रहा है, और कक्षाएं यहाँ संचालित की जा रही हैं।
हालांकि इस भवन की दीवारों में मामूली दरारें हैं, लेकिन अन्य कोई बड़ी समस्या नहीं है। इस कारण इसे कक्षाओं के संचालन के लिए उपयुक्त माना गया है। वहीं दूसरी ओर, बरपाली में तैयार किया गया नया स्कूल भवन बारिश के पानी से तर-बतर हो गया है, और छत से रिसाव के कारण कक्षाएं लगाने में बाधा उत्पन्न हो रही है। लगातार बारिश ने नई समस्याएं खड़ी कर दी हैं, जिससे विद्यालय प्रशासन को वैकल्पिक उपाय अपनाने पर मजबूर होना पड़ा।
स्थानीय संस्था प्रमुख ने इस वैकल्पिक प्रयास के बारे में अधिकारियों को सूचित किया है। विद्यार्थियों के अभिभावकों को भी विश्वास में लेने की कोशिश की गई है ताकि परिस्थितियां सामान्य बनी रहें, प्रशासन के इस लचर व्यवस्था के विरोध में कोई अभिभावक आवाज ना उठाएं और शिक्षा की राह में कोई बाधा न आए।
इस पूरे मामले में एक बार फिर साबित हो गया है कि “पुराना सोना और नया पानी” के मुहावरे का महत्व क्या होता है। जब नई व्यवस्था असफल हो जाती है, तो पुरानी व्यवस्था ही सहारा बनती है। यह घटनाक्रम मानवीय मूल्यों और सामाजिक न्याय की दृष्टि से भी विचारणीय है, क्योंकि शिक्षा का अधिकार सभी के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है।
पुराने भवन का पुनः उपयोग न केवल व्यावहारिक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विकास और प्रगति के नाम पर पुराने संसाधनों को नजरअंदाज करना हमेशा सही नहीं होता। जब नई चुनौतियाँ सामने आती हैं, तो पुरानी व्यवस्थाएँ ही मददगार साबित होती हैं।
कोरबा: नए भवन की छत से रिसाव, पुराने स्कूल में लौटी कक्षाएं; शिक्षा की राह में बाधा या समाधान?
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