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सोमवार, नवम्बर 17, 2025
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एनटीपीसी कोरबा अस्पताल दोषी करार: इलाज में भेदभाव पर कोर्ट की सख्त चेतावनी, मरीज को मिला इंसाफ!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। कोरबा जिले में मानवता और समानता के अधिकारों की गूंज सुनाई दी, जब जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने एनटीपीसी कोरबा अस्पताल को इलाज में भेदभाव का दोषी करार दिया। आयोग ने अस्पताल प्रबंधन को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सख्त चेतावनी दी है और भविष्य में ऐसा न करने के निर्देश दिए हैं।

यह ऐतिहासिक फैसला 17 अप्रैल 2025 को आयोग की अध्यक्ष श्रीमती रंजना दत्ता एवं सदस्य पंकज कुमार देवड़ा की पीठ ने प्रकरण क्रमांक सीसी/24/110 में सुनाया। यह फैसला आम नागरिकों के लिए न्याय की उम्मीद और समानता की जीत बन गया है।

क्या है पूरा मामला?

जमनीपाली निवासी मोहम्मद सादिक शेख ने अस्पताल के शल्य चिकित्सक डॉ. धर्मेंद्र प्रसाद और सीएमओ डॉ. विनोद काल्हाटकर पर इलाज में भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए जिला उपभोक्ता आयोग में परिवाद दायर किया था।

2 अगस्त 2024 को छत से गिरने के कारण उनकी पसली में चोट लग गई थी। उन्होंने इलाज के लिए एनटीपीसी अस्पताल में निर्धारित शुल्क जमा कर डॉक्टर से संपर्क किया। डॉक्टर ने उन्हें दवा दी और एक्स-रे कराने को कहा, लेकिन उस समय एक्स-रे कक्ष बंद हो चुका था।

अगले दिन, जब वह एक्स-रे रिपोर्ट लेकर अस्पताल पहुंचे, तो उनका दूसरा नंबर था। लेकिन डॉक्टर ने एनटीपीसी के कर्मचारियों को प्राथमिकता देते हुए उन्हें नजरअंदाज किया। जब उन्होंने आपत्ति जताई और प्रोटोकॉल का लिखित प्रमाण मांगा, तो डॉक्टर नाराज हो गए और दुर्व्यवहार करते हुए सीएमओ से मिलने को कहा।

सीएमओ डॉ. काल्हाटकर ने भी वही रुख अपनाया और इलाज से इनकार कर दिया। मोहम्मद सादिक ने पहले दर्री थाने में शिकायत की, लेकिन वहां से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। अंततः उन्होंने उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया।

कोर्ट ने क्या कहा?

आयोग ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि:

अस्पताल प्रबंधन ने सेवा में भारी कमी और पेशेवर कदाचार किया है।
एनटीपीसी अस्पताल ने अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन किया है।
मरीजों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार न केवल अमानवीय है, बल्कि यह असंवैधानिक भी है।
अस्पताल अपनी नीतियों को नैतिक और कानूनी मानकों के अनुरूप बनाए।

इस आदेश के साथ आयोग ने अस्पताल प्रबंधन को चेतावनी दी है कि भविष्य में किसी भी मरीज के साथ ऐसा व्यवहार दोहराया गया, तो गंभीर परिणाम होंगे।

दोनों पक्षों की पेशी और दलीलें

परिवादी की ओर से अधिवक्ता अब्दुल नफीस खान ने मामले को मजबूती से प्रस्तुत किया और संवेदनशीलता के साथ न्याय की गुहार लगाई। वहीं अस्पताल प्रबंधन की ओर से अधिवक्ता आर.एन. राठौर ने पैरवी की, लेकिन आयोग ने अस्पताल का पक्ष कमजोर और अव्यवस्थित पाया।

क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?

यह फैसला केवल एक मरीज की जीत नहीं है, बल्कि हर उस नागरिक की आवाज है जिसे इलाज के नाम पर अनदेखा किया गया। यह एक कड़ा संदेश है उन संस्थानों के लिए, जो सरकारी या निजी संरक्षण के नाम पर नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन करते हैं।

यह आदेश न केवल संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि चिकित्सा व्यवस्था में मानवता, समानता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत कदम है।

एनटीपीसी कोरबा अस्पताल मामले में उपभोक्ता आयोग का यह फैसला न्याय, मानवाधिकार और संवेदनशीलता की मिसाल है। यह हर उस व्यक्ति को प्रेरणा देता है, जो अन्याय के खिलाफ खड़ा होने का साहस रखता है। यह घटना दिखाती है कि अगर आवाज उठाई जाए, तो बदलाव मुमकिन है।

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