भारत में चुनावी प्रक्रिया लोकतंत्र की आत्मा मानी जाती है, लेकिन जब किसी निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक ही उम्मीदवार बचता है, तो उसे निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। यह स्थिति आदर्श रूप में चुनाव प्रक्रिया को आसान बनाती है, लेकिन जब यह दबाव, रणनीति या प्रशासनिक हेरफेर का परिणाम होती है, तो यह लोकतंत्र की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
निर्विरोध निर्वाचन की प्रक्रिया क्या है?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 53(3) के तहत, यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में नामांकन वापसी की अंतिम तिथि के बाद केवल एक उम्मीदवार बचता है, तो उसे बिना मतदान के निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है।
1. नामांकन दाखिल करना – उम्मीदवार तय समयसीमा में नामांकन पत्र भरते हैं।
2. नामांकन पत्रों की जांच – रिटर्निंग अधिकारी (RO) दस्तावेजों की वैधता की समीक्षा करता है।
3. अस्वीकृति या स्वीकृति – किसी त्रुटि या तकनीकी खामी के कारण नामांकन रद्द हो सकता है।
4. नाम वापसी – उम्मीदवार अपनी मर्जी से या दबाव में नामांकन वापस ले सकते हैं।
5. निर्विरोध निर्वाचन – अंतिम तिथि के बाद केवल एक उम्मीदवार बचने पर उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।
राजनीतिक खेल और लोकतंत्र पर खतरा
निर्विरोध निर्वाचन एक सहज प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन कई बार इसे राजनीतिक हथकंडों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हाल के उदाहरण बताते हैं कि यह लोकतंत्र को कमजोर करने का जरिया भी बन सकता है।
सूरत लोकसभा चुनाव 2024 – भाजपा का निर्विरोध विजय
सूरत लोकसभा सीट से भाजपा के मुकेश दलाल निर्विरोध निर्वाचित हो गए, क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवारों के नामांकन पत्र तकनीकी खामियों के चलते रद्द कर दिए गए।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह पूर्व नियोजित रणनीति थी, जिससे विपक्ष को चुनावी दौड़ से बाहर किया जा सके।
इस घटना ने मतदाताओं के अधिकारों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया और लोकतंत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के अभाव को उजागर किया।
पंजाब पंचायत चुनाव 2023 – 3000 निर्विरोध उम्मीदवार!
पंजाब पंचायत चुनावों में 3000 से अधिक उम्मीदवार बिना मतदान के ही निर्वाचित हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताते हुए इसे “लोकतांत्रिक असमान्यता” करार दिया।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि धमकी और प्रलोभन देकर सत्ताधारी दल ने विरोधियों को नामांकन वापस लेने के लिए मजबूर किया।
क्या निर्विरोध निर्वाचन लोकतंत्र के लिए खतरा है?
यदि निर्विरोध निर्वाचन स्वाभाविक रूप से होता है, तो यह लोकतंत्र की सुचारू प्रक्रिया हो सकती है। लेकिन जब यह अनैतिक तरीकों, जबरदस्ती, लालच या प्रशासनिक चालबाजी के कारण होता है, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा बन जाता है।
संभावित दुरुपयोग के तरीके
1. राजनीतिक दबाव – विरोधी उम्मीदवारों को धमकाकर या प्रलोभन देकर पीछे हटने पर मजबूर किया जाता है।
2. प्रशासनिक हेरफेर – चुनाव अधिकारियों के माध्यम से नामांकन पत्रों में त्रुटियां ढूंढकर उन्हें अस्वीकार करवाया जाता है।
3. मतदाताओं का हाशिए पर जाना – जब कोई चुनाव ही नहीं होता, तो जनता के पास अपनी राय व्यक्त करने का कोई माध्यम नहीं रहता।
4. लोकतंत्र की निष्पक्षता पर सवाल – जब एकतरफा चुनाव होने लगते हैं, तो लोकतंत्र की आधारभूत संरचना कमजोर पड़ने लगती है।
समाधान और सुधार की संभावनाएं
लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने और निर्विरोध निर्वाचन के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुधार किए जा सकते हैं।
1. मतदान की अनिवार्यता – निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति में भी मतदान करवाया जाए, ताकि जनता की भागीदारी बनी रहे।
2. NOTA विकल्प लागू हो – यदि केवल एक उम्मीदवार हो, तब भी मतदाता को “None of the Above” (NOTA) का विकल्प मिलना चाहिए।
3. निर्वाचन प्रक्रिया की स्वतंत्र निगरानी – चुनाव आयोग को निर्विरोध निर्वाचन के मामलों की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करनी चाहिए।
4. कानूनी सख्ती – राजनीतिक दबाव, जबरदस्ती नामांकन वापस करवाने या तकनीकी खामियों का फायदा उठाने वालों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।
5. प्रत्याशियों की संख्या बढ़ाने के उपाय – राजनीतिक दलों को चुनावी प्रक्रियाओं में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने के लिए अधिक प्रत्याशियों को मैदान में उतारने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
निर्विरोध निर्वाचन लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन जब यह राजनीतिक रणनीति, प्रशासनिक हेरफेर या विरोधी उम्मीदवारों पर दबाव डालने का माध्यम बन जाता है, तो यह लोकतंत्र की निष्पक्षता को खतरे में डालता है।
सूरत और पंजाब की घटनाएं इस बात की चेतावनी हैं कि भारत की चुनाव प्रणाली को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए कड़े सुधारों की जरूरत है।
लोकतंत्र केवल चुनाव जीतने का साधन नहीं है, बल्कि यह जनता की भागीदारी और उसकी आवाज को सुनने की प्रक्रिया भी है। अगर निर्विरोध निर्वाचन का चलन इसी तरह बढ़ता रहा, तो भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों की जड़ें कमजोर होने का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए, सुधारों और सख्त निगरानी के बिना, यह प्रक्रिया भविष्य में एक गंभीर लोकतांत्रिक संकट का रूप ले सकती है। -दिलेश उईके
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