नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। लोकसभा में पेश वक़्फ बोर्ड विधेयक को लेकर जारी बहस कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह न केवल धर्म और संप्रदाय के मुद्दों पर सरकार और विपक्ष की लड़ाई है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के मूल स्वरूप पर भी सवाल उठाता है।
विधेयक पर जारी बहस में विपक्ष ने एकजुट होकर सरकार पर संविधान और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डीएमके, माकपा, भाकपा, वाईएसआर कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने इस विधेयक का जोरदार विरोध किया है। उनका कहना है कि यह विधेयक मुसलमानों पर हमला है और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर आक्रमण है।
वहीं, शिवसेना, जद(यू), तेलुगु देशम जैसे सत्ताधारी गठबंधन के दल इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यह विधेयक वक़्फ प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए लाया गया है। लेकिन विपक्ष का कहना है कि इसके पीछे मुसलमानों को निशाना बनाने का एजेंडा छिपा है।
सेकुलर प्रजातंत्र पर सवाल
विपक्ष का आरोप है कि सरकार देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की कोशिश कर रही है और इस विधेयक के माध्यम से मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह विधेयक संविधान विरोधी है और एक समुदाय के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है। उन्होंने कहा कि संविधान में हर समुदाय को अधिकार है कि वह अपनी धार्मिक, चैरिटेबल आधार पर चल अचल संपत्ति रखे।
समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव का कहना है कि यह विधेयक ‘सोची समझी राजनीति’ से लाया गया है। उन्होंने कहा कि जब वक़्फ बोर्ड में सदस्यों को लोकतांत्रिक ढंग से चुना जा सकता है, तो मनोनयन करने की क्या जरूरत है? यह प्रश्न उठाते हुए उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि भाजपा हताश और निराश है और चंद कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए यह विधेयक लाई है।
द्रमुक की कनिमोझी ने कहा कि यह विधेयक संविधान, संघीय ढांचे और मानवता पर खुला अतिक्रमण है और न्याय का हनन है। उन्होंने कहा कि इससे तमाम पुरानी मस्जिदों पर खतरा आएगा क्योंकि कुछ पुरातत्वविद कहेंगे कि अमुक मस्जिद पहले मंदिर थी।
वस्तुतः यह मुद्दा केवल मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों का नहीं है, बल्कि इससे भारतीय लोकतंत्र और सेकुलर प्रजातंत्र पर भी सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि सरकार धर्म और जाति के आधार पर देश को बांटने की कोशिश कर रही है, जो संविधान और देश के मूल ढांचे के खिलाफ है।
ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि सरकार देश को फिर से बांटने की कोशिश कर रही है। समाजवादी पार्टी के मोहिबुल्लाह का कहना है कि हिन्दुओं के चारधाम, सिखों के गुरुद्वारों में प्रबंधन समिति में गैर समुदायिक लोग नहीं होते, लेकिन मुसलमानों के साथ अन्याय किया जा रहा है।
वक़्फ संपत्तियों पर नकेल
विपक्ष का कहना है कि सरकार वक़्फ की संपत्तियों को हड़पने की कोशिश कर रही है और इस तरह से देश के सेकुलर ढांचे का ध्वस्त कर रही है। कांग्रेस नेता वेणुगोपाल ने कहा कि वक़्फ संपत्तियां सैकड़ों वर्ष पुरानी हैं और उन पर विवाद खड़ा किया जाएगा।
वहीं, राकांपा नेत्री सुप्रिया सुले ने कहा कि इस विधेयक में वक़्फ अधिनियम के कई धाराओं को समाप्त करने का प्रस्ताव है और वक़्फ पंचायत को भी कमजोर किया गया है।
ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लमीन के नेता ओवैसी ने कहा कि वक़्फ एक अनिवार्य मजहबी गतिविधि है और नए विधेयक के प्रावधानों में तमाम विसंगतियां हैं। उन्होंने कहा कि कलेक्टर को अधिकार देने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि वक़्फ कोई सार्वजनिक या सरकारी संपत्ति नहीं है।
संविधान और मौलिक अधिकारों पर सवाल
विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक संविधान और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर आक्रमण है और संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर हमला है।
तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंद्योपाध्याय और कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह विधेयक संविधानिक नैतिकता के भी खिलाफ है। द्रमुक की कनिमोझी ने कहा कि यह विधेयक संविधान, संघीय ढांचे और मानवता पर खुला अतिक्रमण है और न्याय का हनन है।इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के ईटी मोहम्मद बशीर ने कहा कि यह संविधान एवं उसमें वर्णित मौलिक अधिकारों का हनन है। उन्होंने कहा कि यह गलत मंशा और गंदे एजेंडे के तहत लाया गया है।
वक़्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्य
इस विधेयक में वक़्फ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की बात कही गई है। कांग्रेस नेता वेणुगोपाल ने सवाल किया कि क्या अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास में गैर हिन्दू हो सकते हैं।
समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा कि जब वक़्फ बोर्ड में सदस्यों को लोकतांत्रिक ढंग से चुना जा सकता है तो मनोनयन करने की क्या जरूरत है। उन्होंने कहा कि क्यों गैर बिरादरी का व्यक्ति बोर्ड में होना चाहिए।
वहीं, ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बोर्ड में कोई गैर मुस्लिम सदस्य बन सकता है लेकिन संपत्ति दान करने के लिए उसका पांच साल से इस्लाम का अनुपालन अनिवार्य किया गया है, जो कि उचित नहीं है।
सरकार का पक्ष
वहीं, सरकार का कहना है कि यह विधेयक वक़्फ प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए लाया गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अध्यक्ष के अधिकार पूरे सदन के अधिकार हैं और अखिलेश यादव उन अधिकारों के संरक्षक नहीं हैं।
शिवसेना के श्रीकांत एकनाथ शिंदे ने विपक्ष पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि जो देश की व्यवस्थाओं को जाति एवं धर्म के आधार पर चलाना चाहते हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने का प्रयास है लेकिन संविधान पर भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है।
इस तरह, वक़्फ बोर्ड विधेयक पर चल रही बहस में दोनों पक्षों के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिल रही है। यह न केवल धार्मिक मुद्दों पर सरकार और विपक्ष की लड़ाई है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और सेकुलरिज़्म पर भी गंभीर सवाल उठाता है। देखना होगा कि आखिर इस विवाद का क्या नतीजा निकलता है।
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