कोरबा (पब्लिक फोरम)। सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सेवक राम मरावी की अध्यक्षता में तिलक भवन स्थित प्रेस क्लब में एक महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता आयोजित की गई। इस दौरान मरावी ने आदिवासी समाज के प्रति सरकारों की उदासीनता पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की, दोनों के शासन में आदिवासी समुदाय का शोषण और उपेक्षा लगातार जारी रही है। वर्तमान में प्रदेश के मुखिया विष्णु देव साय, जो खुद आदिवासी समाज से आते हैं, भी इस समस्या पर कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।
सेवक राम मरावी ने प्रेस के माध्यम से सरकार के सामने कुछ महत्वपूर्ण मांगे रखीं, और चेतावनी दी कि यदि इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो सर्व आदिवासी समाज प्रदेश स्तरीय उग्र आंदोलन करने के लिए मजबूर होगा।
सर्व आदिवासी समाज की प्रमुख मांगे
1. हसदेव जंगल की सुरक्षा: हसदेव जंगल में हो रही अवैध कटाई और कोयला ब्लॉक आवंटन को रद्द करने के लिए सरकार को तुरंत प्रभाव से कार्रवाई करनी चाहिए। इस जंगल का संरक्षण आदिवासी समाज के अस्तित्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
2. आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा: आदिवासियों की जमीन की खरीद-बिक्री पर लगे सरकारी आदेश को वापस लिया जाए। यह आदेश उनके मौलिक अधिकारों का हनन करता है। साथ ही, आदिवासियों के भूमि और संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
3. हाथी उत्पात के पीड़ितों को मुआवजा: फोरक जिले में हाथियों द्वारा किए गए उत्पात के शिकार लोगों को पर्याप्त मुआवजा राशि दी जाए, और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचाव के लिए ठोस उपाय किए जाएं।
4. आदिवासी समाज का विकास: आदिवासी समाज के उत्थान के लिए शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाओं में व्यापक सुधार किया जाना चाहिए। आदिवासी समाज की प्रगति के बिना प्रदेश का समग्र विकास संभव नहीं है।
5. पंचायतों को सशक्त बनाना: पंचायतों को सशक्त बनाने और उनकी भूमिका को बढ़ावा देने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने चाहिए, जिससे निचले स्तर तक आदिवासी समाज की समस्याओं का समाधान हो सके।
इस प्रेस वार्ता में प्रस्तुत मांगें आदिवासी समाज की दशकों पुरानी उपेक्षा और शोषण की कहानी बयां करती हैं। चाहे हसदेव जंगल का मुद्दा हो या जमीन से जुड़े अधिकारों की रक्षा, ये सभी मुद्दे आदिवासियों के अस्तित्व और उनके जीवन से सीधे जुड़े हुए हैं। हाथी उत्पात से प्रभावित लोगों के लिए मुआवजा और आदिवासी समाज के लिए शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की मांगें भी उनकी दयनीय स्थिति की तरफ इशारा करती हैं।
यहां सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रदेश के मुखिया स्वयं एक आदिवासी होते हुए भी इस दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं कर पाए हैं। यह साफ दर्शाता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और प्रशासनिक उदासीनता ने इस समाज को हाशिए पर धकेल रखा है।
“यह मामला सरकार और प्रशासन दोनों के लिए गंभीर विचारणीय है। यदि समय रहते इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो प्रदेश में सामाजिक असंतोष और बढ़ सकता है, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। आदिवासी समाज की मांगें न केवल वैध हैं, बल्कि प्रदेश के समग्र विकास के लिए भी आवश्यक हैं। सरकार को त्वरित और प्रभावी कदम उठाकर आदिवासी समाज का भरोसा जीतना होगा।”
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