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रविवार, सितम्बर 28, 2025
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कल राष्ट्रव्यापी हड़ताल: मज़दूर-किसान एकजुट, लोकतंत्र-नागरिक अधिकारों की लड़ाई का बिगुल फूँका

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। देश भर की ट्रेड यूनियनें और किसान संगठन कल, 9 जुलाई को एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान कर चुके हैं। इस महा-एकजुटता के प्रदर्शन में असंगठित और संगठित क्षेत्र के श्रमिक, किसान और विभिन्न जन संगठन शामिल होंगे, जो सरकार की मजदूर-किसान विरोधी, कॉर्पोरेट-परस्त नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे। इस हड़ताल को “इंडिया गठबंधन” से जुड़े राजनीतिक दलों ने भी समर्थन दिया है, और बिहार में “बिहार बंद” का आह्वान किया गया है। यह हड़ताल सिर्फ़ श्रम अधिकारों तक सीमित नहीं, बल्कि देश में लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की रक्षा की लड़ाई का भी प्रतीक बन गई है।

क्या हैं प्रमुख माँगें?

संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, हड़ताल की मुख्य माँगें इस प्रकार हैं:-

श्रम संहिताओं को निरस्त करना: ट्रेड यूनियनों का मानना है कि सरकार द्वारा लाई गई चार श्रम संहिताएं सामूहिक सौदेबाजी को कमजोर करेंगी, यूनियन गतिविधियों को बाधित करेंगी और नियोक्ताओं को लाभ पहुँचाएंगी।

सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोकना: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और सेवाओं के निजीकरण, आउटसोर्सिंग और संविदा रोजगार की नीतियों का कड़ा विरोध किया जाएगा।

रोजगार में ठेका प्रथा समाप्त करना: नियोक्ताओं द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन को गैर-अपराधीकरण और ठेका प्रथा को समाप्त करने की मांग की जाएगी।

न्यूनतम वेतन में वृद्धि: न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 26,000 रुपये प्रति माह करने की मांग की गई है।

रोजगार सृजन और भर्ती: स्वीकृत पदों पर भर्ती, अधिक नौकरियाँ सृजित करने और मनरेगा के कार्यदिवस व मज़दूरी में वृद्धि की मांग की जा रही है।

प्रवासी मजदूरों के अधिकार: प्रवासी मजदूरों के मताधिकार को छीनने की कथित साजिश का कड़ा विरोध किया जाएगा।

एमएसपी@सी2+50% की गारंटी: किसानों की मांग है कि सभी फसलों की खरीद की गारंटी के साथ एमएसपी@सी2+50% के लिए कानून बनाया जाए।

ऋण माफी और किसानों की सुरक्षा: किसानों को कर्ज के जाल से मुक्त करने और आत्महत्याओं को समाप्त करने के लिए व्यापक ऋण माफी की मांग की गई है।

कृषि नीतियों में सुधार: कृषि बाजार पर राष्ट्रीय नीति के मसौदे को वापस लेना और भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते का विरोध भी शामिल है।

लोकतंत्र पर खतरे का साया? बिहार से शुरू हुआ ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ बना मुख्य मुद्दा

ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों के साथ-साथ “भारत जोड़ो अभियान” ने भी इस हड़ताल को अपना समर्थन दिया है। अभियान का मानना है कि यह हड़ताल सिर्फ़ श्रमिक हितों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की रक्षा की भी लड़ाई है। अभियान ने बिहार में मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ को लोकतंत्र पर सबसे बड़ा संकट बताया है।

उनका कहना है कि चुनाव आयोग द्वारा पुरानी मतदाता सूची को रद्द कर नए सिरे से नागरिकों से अपने वोट के अधिकार को साबित करने की जिम्मेदारी डालना अभूतपूर्व और असंवैधानिक है। अभियान के अनुसार, इस प्रक्रिया में हर मतदाता को जन्म और नागरिकता के प्रमाण पत्र जमा करने होंगे, जबकि आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे सामान्य दस्तावेजों को मान्यता नहीं दी जा रही है। यह गरीब, ग्रामीण, महिलाओं, दलितों और प्रवासी मजदूरों को प्रभावित करेगा।

सरकार पर कॉर्पोरेट हित साधने का आरोप

ट्रेड यूनियनों ने आरोप लगाया है कि सरकार पिछले 10 वर्षों से भारतीय श्रम सम्मेलन का आयोजन नहीं कर रही है और श्रमिकों के हितों के खिलाफ लगातार निर्णय ले रही है। चार श्रम संहिताओं को लागू करने के प्रयासों को सामूहिक सौदेबाजी को कमजोर करने और नियोक्ताओं को लाभ पहुँचाने की मंशा के रूप में देखा जा रहा है।

सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण बेरोजगारी में वृद्धि, आवश्यक वस्तुओं की महँगाई, मजदूरी में गिरावट और सामाजिक क्षेत्र के खर्च में कटौती हो रही है, जिससे गरीबों और मध्यम वर्ग के लिए असमानता और दुःख-तकलीफें बढ़ रही हैं। यूनियनों का कहना है कि सरकार ने कल्याणकारी राज्य की भूमिका त्याग दी है और उसकी नीतियाँ स्पष्ट रूप से देशी-विदेशी कॉरपोरेट्स के हित में चलाई जा रही हैं।

सभी क्षेत्रों की एकजुटता

रक्षा क्षेत्र के कर्मचारियों से लेकर रेलवे, कोयला, इस्पात, बैंक, एलआईसी, बिजली, डाक विभाग, दूरसंचार, सार्वजनिक परिवहन और विभिन्न सरकारी विभागों के कर्मचारी भी इस हड़ताल में भाग ले रहे हैं। निर्माण, बीड़ी, आंगनवाड़ी, आशा, मिड डे मील, घरेलू कामगार, फेरीवाले, रिक्शा, ऑटो, टैक्सी जैसे असंगठित क्षेत्रों के श्रमिक भी जन संघर्ष में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेंगे।

छात्र, युवा, शिक्षक, महिला संगठनों और सामाजिक संगठनों ने भी हड़ताल को समर्थन दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने भी श्रमिकों की आम हड़ताल को भावपूर्ण समर्थन देने की अपील की है और अपनी मांगों के लिए तहसील स्तर पर प्रदर्शन करने तथा ट्रेड यूनियनों के साथ समन्वय करने की घोषणा की है।

यह राष्ट्रव्यापी हड़ताल देश के मेहनतकश वर्ग की एकजुटता का एक शक्तिशाली प्रदर्शन होने की उम्मीद है, जो अपनी जायज मांगों और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरेगा। आम जनता से भी अपील की गई है कि हड़ताल के दिन होने वाली असुविधा को राष्ट्रहित में सहन करें और नैतिक समर्थन प्रदान करें।

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