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ईसाइयों पर हिंसा के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन: राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा ने राष्ट्रपति को सौंपा ज्ञापन, संवैधानिक सुरक्षा की मांग

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। भारत में ईसाइयों, विशेषकर मूलनिवासी बहुजन (अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय के लोगों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और भेदभाव के विरोध में राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा (आरसीएम) ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 9 जून, 2025 को भारत मुक्ति मोर्चा और अन्य संबद्ध सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर, देश के विभिन्न जिलों में एक साथ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन और धरने आयोजित किए गए।

इन विरोध प्रदर्शनों का समापन जिलाधिकारियों के माध्यम से भारत की माननीय राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपने के साथ हुआ। इस ज्ञापन में व्यवस्थागत अन्याय को संबोधित करने और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है। प्रतिनिधिमंडल में ईसाई और बहुजन नेतृत्व के कार्यकर्ताओं का एक विविध वर्ग शामिल था, जो इस मुद्दे की व्यापकता को दर्शाता है।

रणनीतिक समय और स्पष्ट संदेश
इस विरोध प्रदर्शन का समय अत्यंत रणनीतिक था। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह के दिन आयोजित किया गया, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर चल रही महत्वपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों के बीच इस मुद्दे को अधिक दृश्यता और प्रमुखता मिली।

काउंसिल ऑफ इवेंजेलिकल चर्च इन इंडिया और प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलायंस से मिले इनपुट के आधार पर तैयार किए गए इस ज्ञापन में विशिष्ट चिंताओं पर प्रकाश डाला गया। इस आयोजन के माध्यम से गरिमा, एकता, न्याय, संवैधानिक समानता और धार्मिक स्वतंत्रता की स्पष्ट मांग की गई।

बदलती राजनीति और अंतर-सामुदायिक एकजुटता
यह प्रदर्शन भारतीय ईसाइयों, विशेष रूप से स्वदेशी बहुजन समुदायों के लोगों को लक्षित करके की जा रही हिंसा के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक सक्रियता में एक बदलाव का भी संकेत है, जो बढ़ते राष्ट्रवादी प्रभाव के बीच अधिक दृश्यता और जवाबदेही की मांग की ओर बढ़ रहा है।विशेष रूप से, इस आयोजन को कई गैर-ईसाई समूहों का भी समर्थन मिला, जो अंतर-सामुदायिक एकजुटता की बढ़ती ताकत और सामूहिक हितों की वकालत करने की इसकी क्षमता को दर्शाता है।

विशेष रूप से, इस आयोजन को कई गैर-ईसाई समूहों का भी समर्थन मिला, जो अंतर-सामुदायिक एकजुटता की बढ़ती ताकत और सामूहिक हितों की वकालत करने की इसकी क्षमता को दर्शाता है।

भविष्य की दिशा और प्रभाव
हालांकि यह आयोजन लोगों का ध्यान खींचने और प्रमुख चिंताओं को उठाने में सफल रहा, लेकिन इसका स्थायी प्रभाव निरंतर नागरिक सक्रियता, व्यापक मीडिया कवरेज और सरकार की ठोस प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा। फिर भी, यह न्याय के लिए एक सशक्त आह्वान और भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर चल रही बहस में एक सार्थक योगदान के रूप में स्थापित हुआ है।

निष्कर्षतः, 9 जून का यह ज्ञापन सौंपना केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह राष्ट्र की अंतरात्मा के लिए एक अपील थी। यह इस बात का एक शक्तिशाली अनुस्मारक था कि उत्पीड़ितों की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता है और सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इस पहल ने भारतीय ईसाई समुदाय की बढ़ती संगठनात्मक शक्ति और राजनीतिक परिपक्वता को भी प्रदर्शित किया है।

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