रांची (पब्लिक फोरम)। झारखंड की राजधानी रांची में 8 और 9 जून को आदिवासी संघर्ष मोर्चा के बैनर तले एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कन्वेंशन का आयोजन होने जा रहा है। HDC हॉल में होने वाले इस कार्यक्रम में देशभर के आदिवासी आंदोलनों, पर्यावरण संघर्षों और जल-जंगल-जमीन के अधिकारों के लिए संघर्षरत नेता भाग लेंगे। इसका उद्देश्य आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट मंच बनाना और आगे की रणनीति तय करना है।
महेंद्र सिंह भवन में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस, सरकारों पर उठे सवाल
रांची के महेंद्र सिंह भवन (भाकपा माले राज्य कार्यालय) में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आदिवासी संघर्ष मोर्चा के नेताओं ने कन्वेंशन की घोषणा की। मोर्चा के राष्ट्रीय प्रभारी क्लिफ्टन, भाकपा माले राज्य सचिव मनोज भक्त, राष्ट्रीय संयोजक देवकीनंदन बेदिया, राज्य संयोजक जगरनाथ उरांव और आदिवासी नेता सुशीला तिग्गा ने संयुक्त रूप से संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासी अधिकारों पर लगातार हमला हो रहा है।
उन्होंने कहा कि केंद्र और झारखंड में भाजपा-संघ की नीतियों से जल, जंगल और जमीन की लूट बढ़ी है। कॉरपोरेट घरानों को प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा दिया जा रहा है, जबकि उन पर पारंपरिक अधिकार रखने वाले आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है।
आदिवासी संस्कृति पर भी हमला, परंपराओं को खत्म करने की कोशिश
आदिवासी नेताओं ने कहा कि आदिवासी समाज सिर्फ जमीन और जंगल से नहीं, बल्कि अपनी भाषा, संस्कृति और धर्म से भी जुड़ा है। लेकिन मौजूदा सरकारें इन पर भी हमला कर रही हैं। “पर्यटन परियोजनाओं” और “सुरक्षा अभियानों” के नाम पर आदिवासियों को उनकी जमीनों से खदेड़ा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ जैसे इलाकों में माओवाद के नाम पर आदिवासियों पर दमन चल रहा है, जो वास्तव में कॉरपोरेट हितों के लिए एक साजिश है। साथ ही, भाजपा और संघ परिवार आदिवासी समाज के बीच सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने में लगा है। उनकी परंपराओं को हिंदू धर्म में समाहित करने की कोशिश की जा रही है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान खत्म हो रही है।
संघर्ष की परंपरा: बिरसा मुंडा से लेकर अंबेडकर तक की विरासत
प्रेस कॉन्फ्रेंस में आदिवासी नेताओं ने कहा कि आदिवासी समाज ने हमेशा अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। बिरसा मुंडा, सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव से लेकर जयपाल सिंह मुंडा और भीमराव अंबेडकर तक की विरासत यही सिखाती है कि जब भी राज्य और पूंजीपतियों की मिलीभगत से जनता के अधिकारों पर हमला होता है, तब संघर्ष ही एकमात्र रास्ता होता है।
इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए यह कन्वेंशन आदिवासी अधिकारों के संघर्ष को एक नई दिशा देने की कोशिश करेगा।
कन्वेंशन में भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, देशभर के आदिवासी आंदोलनों के नेता, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, पर्यावरण संघर्षों से जुड़े लोग और झारखंड के विभिन्न हिस्सों से जन आंदोलनों से जुड़े लोग भाग लेंगे।
कन्वेंशन का उद्देश्य: एकजुटता और संघर्ष की दिशा
कन्वेंशन के आयोजकों का कहना है कि यह समय संगठित होकर प्रतिरोध का है। जब सरकारें संविधान की धज्जियां उड़ा रही हैं, जब पर्यावरण को व्यापार के हवाले किया जा रहा है, और जब आदिवासी समाज की अस्मिता और ज़मीन पर हमला हो रहा है, तब यह ज़रूरी है कि हम सब मिलकर एक मजबूत राष्ट्रीय प्रतिरोध खड़ा करें।
कन्वेंशन का उद्देश्य जल-जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृति, पर्यावरण, संविधान और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक साझा मंच बनाना और आगे की रणनीति तय करना है।
एक ऐसा मंच, जो देश के भविष्य को बदल सकता है
आदिवासी समाज की लड़ाई देश के भविष्य से जुड़ी है। उनके अधिकारों की रक्षा न केवल उनके लिए बल्कि पूरे देश के लिए ज़रूरी है। आदिवासी संघर्ष मोर्चा का यह कन्वेंशन न केवल एक सम्मेलन है, बल्कि एक नई उम्मीद की शुरुआत है – एक ऐसी उम्मीद, जो संघर्ष से जुड़े हर व्यक्ति के दिल में जिंदा रहे।
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