रायपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में जिंदल पावर लिमिटेड की गारे पेल्मा 4/1 कोयला खदान परियोजना के लिए चल रही जंगल कटाई को लेकर ग्रामीणों का विरोध उग्र होता जा रहा है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) ने इस अवैध जंगल कटाई की कड़ी आलोचना करते हुए इसे राज्य सरकार और प्रशासन की मिलीभगत का नतीजा बताया है। सीबीए ने सरकार से जंगल कटाई के आदेश को तुरंत वापस लेने की मांग की है।
नागरामुड़ा के ग्रामीण पिछले 45 दिनों से जंगल कटाई के खिलाफ धरना दे रहे हैं। इस विरोध में शामिल ग्रामीणों का कहना है कि बिना उनकी सहमति के जंगल काटे जा रहे हैं। 19 जनवरी को छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधि, जिनमें संजय पराते, आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे और अन्य सदस्य शामिल थे, ने धरना स्थल पर पहुंचकर ग्रामीणों के संघर्ष का समर्थन किया।

जंगल पर अधिकार और प्रशासन की मिलीभगत का आरोप
ग्रामीणों ने बताया कि जिंदल पावर लिमिटेड ने जंगल कटाई का काम शुरू किया था, लेकिन उनके विरोध के चलते यह फिलहाल रुका हुआ है। वन विभाग द्वारा जारी आदेश में खुलासा हुआ कि अक्टूबर 2023 में छत्तीसगढ़ सरकार ने 297 हेक्टेयर भूमि को खनन के लिए जिंदल को पट्टे पर दिया था। जुलाई 2023 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना के लिए वन स्वीकृति दी थी।
ग्रामसभा की सहमति न होने का दावा
जनपद सदस्य कन्हाई पटेल ने बताया कि जंगल कटाई के लिए ग्रामसभा की कोई सहमति नहीं दी गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि ग्रामीणों के सामुदायिक और व्यक्तिगत वन अधिकारों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है। दो किसानों की भूमि पर जबरन कब्जा कर खनन कार्य शुरू किया गया, जबकि कई ग्रामीणों को अब तक वनाधिकार पत्र भी नहीं मिले हैं।
आंदोलनकारियों की मांग और आंदोलन की रणनीति
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा, “प्रदेश में आदिवासी और किसान कानूनों की अनदेखी कर खनन कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। यह सरकार और प्रशासन का पूंजीपतियों के साथ साठगांठ का नतीजा है।” उन्होंने कहा कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खनन कंपनियों को स्वीकृतियां दी जा रही हैं, जिससे आदिवासियों और ग्रामीणों के अधिकारों का हनन हो रहा है।
आंदोलन को और मजबूत बनाने का आह्वान करते हुए रमाकांत बंजारे ने रायगढ़ में विभिन्न विस्थापन आंदोलनों को एकजुट करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
सरकार पर तीखे आरोप
छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष संजय पराते ने कहा, “सरकार की कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के कारण प्राकृतिक संसाधनों की लूट हो रही है। कानूनों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और ग्रामीणों को विस्थापित होने के लिए मजबूर किया जा रहा है।” उन्होंने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि इस संघर्ष में सभी जन आंदोलनों का समर्थन रहेगा।
ग्रामीणों का संकल्प और समर्थन का आह्वान
धरने पर बैठे ग्रामीण अपने जंगलों और अधिकारों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। उनका कहना है कि उनकी जमीन और जंगल उनकी पहचान हैं, और वे इसे बचाने के लिए संघर्ष जारी रखेंगे।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने इस संघर्ष को पूरे प्रदेश में व्यापक बनाने का आह्वान किया है। उन्होंने राज्य सरकार से अपील की है कि वह तुरंत जंगल कटाई के आदेश को रद्द करे और आदिवासियों के अधिकारों को मान्यता दे।
नागरामुड़ा का संघर्ष यह दिखाता है कि जब जनता अपने अधिकारों और पर्यावरण को बचाने के लिए एकजुट होती है, तो वे बड़े से बड़े पूंजीपतियों को चुनौती देने का साहस रखती है।
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