गुरूवार, नवम्बर 21, 2024
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बचपन, मेरा बचपन!

– कविता

मेरा बचपन सुहाना
था, हर गम से बेगाना।
याद आ – आकर
करते हैं, मुझे विकल।
वो खट्टे – मीठे सारे पल।

वो गाँव की गलियाँ
और हम संगी – साथियों की टोलियाँ।
जहाँ करते थे मस्ती,
डगर – डगर, बस्ती -बस्ती।
नुकीली काँटों में उलझी खट्टी -झरबेरियाँ।
पेड़ों पर पकी मीठी-मीठी निम्बौरियाँ।

वो सावन की फुहार,
ले आती थी जीवन में बहार।
जब लगते थे, गाँव में मेले,
ठेलम-ठेल, लोगों के रेले।
जहाँ लगते थे
रंग-बिरंगे दुकान, 
और बिकते थे,
चूड़ी फीते पानजाम।

अल्हड़ बचपन के खेल- खिलौने।
फलीर, बाँटी, गुल्ली -डंडे।
अब यादों में ही आते हैं।
गया ज़माना वह बचपन का,
अब कहाँ उसे ढूँढ़ पाते हैं।

सुनहरे ख्वाबों में ही है उसे महकाना।
मेरा बचपन सुहाना
था हर गम से बेगाना।

– हेमलता जायसवाल

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