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बस्तर में आदिवासियों की हत्याएं: न्याय की मांग और संघर्ष की आवाजें!

जगदलपुर (पब्लिक फोरम)। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (PUCL) की छत्तीसगढ़ इकाई ने “बस्तर में आदिवासियों की हत्याएं कैसे रोकें” विषय पर 24 से 26 अगस्त 2024 को जगदलपुर में एक जन-सुनवाई और परिचर्चा का आयोजन किया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में बस्तर के विभिन्न क्षेत्रों से 100 से अधिक पीड़ितों ने भाग लिया, जिन्होंने अपने दर्द और पीड़ा की कहानी साझा की।

जन-सुनवाई का उद्देश्य और प्रमुख चर्चाएं
इस जन-सुनवाई का मुख्य उद्देश्य बस्तर में निर्दोष आदिवासियों की हत्याओं, फर्जी मुठभेड़ों, और अवैध हिरासत के मामलों की जांच और उनके निवारण के उपाय खोजना था। पीड़ितों और प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस और सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए अपनी आपबीती साझा की। इन घटनाओं ने स्थानीय प्रशासन की भूमिका और उसकी निष्क्रियता पर गंभीर सवाल खड़े किए।

जन-सुनवाई के पहले सत्र में वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं सोनी सोरी और हिडमे मरकाम ने बस्तर में हो रही न्यायोत्तर हत्याओं और आदिवासियों की अवैध हिरासत पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि 2024 में अब तक 46 मुठभेड़ों में 168 आदिवासियों की जान जा चुकी है। ये आंकड़े बस्तर के आदिवासियों के सुरक्षा अधिकारों पर गंभीर चिंता प्रकट करते हैं।

दूसरे, पांचवें, और छठे सत्र में पीड़ितों ने अपनी कहानियां साझा कीं। इन सत्रों में 70 से अधिक पीड़ितों के वीडियो बयान दर्ज किए गए, जिनमें महिलाओं, पुरुषों, युवाओं और बच्चों ने बताया कि कैसे उन्हें माओवादी होने के शक में प्रताड़ित किया गया, झूठे मामलों में फंसाया गया, और उनके परिजनों की हत्या कर दी गई।

वक्ताओं के सुझाव और निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. कॉलिन गोन्साल्वेज ने तीसरे सत्र में कहा कि बस्तर के हालात मणिपुर जैसे बन गए हैं, जहां पुलिस और अर्धसैनिक बलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश से विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया था। उन्होंने बस्तर के लिए भी मणिपुर जैसी योजना अपनाने का सुझाव दिया और स्वतंत्र जांच की मांग की।

पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान ने चौथे सत्र में आदिवासियों से अपील की कि वे एकजुट होकर हिंसा और उत्पीड़न का सामना करें। उन्होंने राज्य की जिम्मेदारी तय करने और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया।

अंतिम सत्र में निष्कर्ष निकाला गया कि बस्तर में हो रही हत्याओं की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाएगी। इसमें बस्तर में पुलिस, डीआरजी और अर्धसैनिक बलों द्वारा मानवाधिकारों के हनन की जांच की मांग की जाएगी। यदि न्याय नहीं मिला, तो यह मामला अंतरराष्ट्रीय मंचों, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र संघ, तक भी ले जाया जाएगा ताकि आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल
वक्ताओं ने छत्तीसगढ़ में पुलिस और सुरक्षा बलों की कार्यप्रणाली पर गंभीर आरोप लगाए, विशेषकर माइनिंग कंपनियों के लिए वॉचमैन की तरह काम करने और निर्दोष आदिवासियों को निशाना बनाने के लिए। उन्होंने मांग की कि पुलिस के कार्यों का ऑडिट हो और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए।

आदिवासी महिलाओं की आवाज़ और संघर्ष की दिशा
इस जन-सुनवाई में आदिवासी महिलाओं ने गोंडी और हिंदी में अपने द्वारा लिखे गीत प्रस्तुत किए, जिनमें उन्होंने न्याय, आत्म-सम्मान, और शांतिपूर्ण जीवन की अपनी आकांक्षाएं प्रकट कीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे अब अन्याय को और सहन नहीं करेंगी और अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होकर संघर्ष करेंगी।

बस्तर में आदिवासियों की हत्याएं और उत्पीड़न लंबे समय से जारी हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इस जन-सुनवाई ने पीड़ितों की आवाज़ को एक मंच प्रदान किया और बस्तर में न्याय की बहाली की नई उम्मीद जगाई है। यह समय है कि सरकार और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी को समझें और आदिवासियों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं।

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