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शुक्रवार, फ़रवरी 7, 2025
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पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या: सीबीआई जांच की मांग, सीपीआई ने उठाए गंभीर सवाल!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। बस्तर के जुझारू पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या ने छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र, संविधान और मानवाधिकारों पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। यह हत्या न केवल भ्रष्टाचार को उजागर करने के प्रयासों पर हमला है, बल्कि आदिवासी, दलित, पिछड़े और किसान वर्ग के अधिकारों की आवाज को दबाने का प्रयास भी है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने इस हत्या की कड़ी निंदा करते हुए इसे राजनेताओं, अधिकारियों और माफियाओं के गठजोड़ का परिणाम बताया है और मामले की सीबीआई जांच की मांग की है।

सीपीआई की मांग: सीबीआई जांच जरूरी
सीपीआई के जिला सचिव पवन कुमार वर्मा ने इस हत्या को जनपक्षधर पत्रकारिता पर हमला करार दिया। उन्होंने कहा, “मुकेश चंद्राकर ने बस्तर में आदिवासियों के साथ हो रहे अन्याय, फर्जी गिरफ्तारियों, और फर्जी मुठभेड़ों को उजागर किया था। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेट्स के हवाले करने की साजिशों और माओवादियों के नाम पर चल रहे भ्रष्टाचार को भी बेनकाब किया था।”
हालिया रिपोर्टिंग में उन्होंने गंगालूर से मिरतुल तक हो रहे सड़क निर्माण में घटिया गुणवत्ता का पर्दाफाश किया। उनकी रिपोर्टिंग के बाद भ्रष्टाचार की पोल तो खुली, लेकिन दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सीपीआई का आरोप है कि यह हत्या राजनेताओं और माफियाओं के बीच की सांठगांठ और भ्रष्टाचार का नतीजा है।

पवन कुमार वर्मा ने कहा, “यह हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि लोकतंत्र और जनपक्षधर पत्रकारिता की हत्या है। मुकेश चंद्राकर ने जिन मुद्दों को उठाया, वे केवल एक पत्रकार का कर्तव्य नहीं थे, बल्कि आदिवासियों, किसानों और मजदूरों की पीड़ा को उजागर करने का साहसिक प्रयास थे।”
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिला परिषद, कोरबा ने मुकेश चंद्राकर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके शोकाकुल परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की है। पार्टी ने कहा कि चंद्राकर जैसे साहसी पत्रकारों की आवाज को दबाना लोकतंत्र को कमजोर करने के समान है।

सीपीआई ने मांग की है कि इस मामले की जांच सीबीआई के माध्यम से कराई जाए ताकि राजनेताओं, माफियाओं और भ्रष्ट अधिकारियों के गठजोड़ को बेनकाब किया जा सके। पार्टी ने जनता से अपील की है कि वे इस मामले में न्याय की मांग को मजबूती से उठाएं।
यह मामला सिर्फ एक हत्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र, स्वतंत्र पत्रकारिता और सामाजिक न्याय की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है। सीपीआई की सीबीआई जांच की मांग इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मुकेश चंद्राकर की मौत ने समाज को झकझोर दिया है और यह जरूरी है कि दोषियों को सख्त सजा मिले ताकि भविष्य में कोई भी आवाज को दबाने की कोशिश न कर सके।

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