श्रम सुधार के नाम पर मजदूरों के अधिकारों का हनन
कोरबा (पब्लिक फोरम)। मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए श्रम कानूनों (लेबर कोड) से देश के करोड़ों मजदूरों के हितों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इन कानूनों से मजदूरों की आज़ादी और अधिकारों को कुचला जा रहा है, जो उनकी आधुनिक गुलामी की ओर ले जा रहा है। इसलिए, इन कानूनों का विरोध किया जाना चाहिए।
नए लेबर कोड में मजदूरों के कार्य घंटों को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया गया है, जबकि पहले यह सीमा 9 घंटे थी। इसके अलावा, कुछ परिस्थितियों में मजदूरों को 12 घंटे से भी अधिक काम करना पड़ सकता है। यह मजदूरों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए घातक है।
इन कानूनों से मजदूरों की सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा को भी नुकसान पहुंचेगा। उदाहरण के लिए, 49 मजदूरों वाले ठेकेदारों को श्रम विभाग में पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे उनकी जवाबदेही कम हो जाएगी। साथ ही, ठेकेदारों द्वारा जमा की गई सुरक्षा राशि बहुत कम है, जिससे मजदूरों की बकाया मजदूरी का भुगतान करना मुश्किल होगा।
नए कानूनों में 300 से कम मजदूरों वाली इकाइयों को छंटनी या बंदी के लिए सरकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है, जिससे मजदूरों की नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी। इसके अलावा, घरेलू सेवा के कार्य करने वाले मजदूरों को औद्योगिक संबंध कानून से बाहर रखा गया है, जिससे उनके अधिकार प्रभावित होंगे।
न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए श्रमिक संघों की भूमिका को भी समाप्त कर दिया गया है, जिससे मजदूरों की आवाज दबी रहेगी। सरकार ने न्यूनतम मजदूरी की जगह ‘फ्लोर रेट वेज’ की बात की है, जो न्यूनतम मजदूरी से भी कम है।
इन सभी प्रावधानों से स्पष्ट है कि नए श्रम कानून मजदूरों के हितों के विपरीत हैं और उनकी गुलामी की ओर ले जा रहे हैं। इसलिए, सरकार को इन कानूनों पर पुनर्विचार करना चाहिए और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
मोदी की सरकार में वापसी मजदूरों की आधुनिक गुलामी की गारंटी: सीपीआई
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